समर्थ भारत आखिर नारी सम्मान करने में समर्थ क्यों नहीं हो पा रहा ?

ललित गर्ग

मणिपुर में 19 जुलाई को दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर गांव में घुमाने का वीडियो वायरल हुआ था, उस घटना ने देश-विदेश के सभ्य समाजों को झकझोर दिया है। अब ऐसी ही एक घटना पश्चिम बंगाल के मालदा में सामने आई है। यहां भीड़ ने दो महिलाओं की पिटाई की, फिर उन्हें अर्धनग्न कर दिया गया। यह घटना मालदा के बामनगोला पुलिस स्टेशन के पाकुआ हाट इलाके में हुई। दोनों पीड़ित महिलाएं आदिवासी हैं। जब उनकी पिटाई हो रही थी और कपड़े उतारे जा रहे थे तो पुलिस वहां मूकदर्शक बनी खड़ी हुई थी। बात केवल आदिवासी महिलाओं की नहीं है, बात केवल महिलाओं पर हो रहे अपराधों, यौन-उत्पीड़न, बलात्कार, हिंसा की भी नहीं है, बल्कि अधिक विचलित करने वाली बात महिलाओं एवं बच्चियों के लापता होने की है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की ओर से संकलित आंकड़ों के अनुसार 2019 से 2021 के बीच यानी मात्र तीन वर्षों में देश भर में 13 लाख से अधिक लड़कियां और महिलाएं लापता हुई हैं। इन लापता होने वाली लड़कियों और महिलाओं में दलित, आदिवासी जनजाति की संख्या ज्यादा है। एक आदिवासी महिला के देश के राष्ट्रपति होने के बावजूद महिलाओं पर बढ़ते अपराध एवं लापता होने की घटनाएं अधिक चिन्ता का सबब है।

विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर एवं दुनिया की तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था का दावा करने वाले देश की महिलाएं मध्ययुग से भी ज्यादा सामंती सोच, असंवेदना, असुरक्षा, हिंसा, वीभत्स अपराधों और हवस की शिकार बन रही हैं। आज जब देश में हर मुद्दे पर बहस छिड़ जाना आम बात हो गई है, दर्जनों टी.वी. चैनल एक से ही सवाल पर घंटों बहस करते हैं, आम चुनाव की चौखट पर खड़े देश के राजनीतिक दल ज्वलंत मुद्दों के नाम पर सरकार को घेरने की तलाश में रहते हैं तो इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं के लापता होने एवं यौन-उत्पीड़न के सवाल पर बहस क्यों नहीं छेड़ी जाती? बहस इस बात पर भी होनी चाहिए कि दिल्ली के निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित कानूनों को कठोर किया गया लेकिन कानून बन जाने के बाद भी स्थितियां क्यों नहीं सुधरी हैं? चिन्ता का कारण है कि महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में कोई विशेष कमी आती नहीं दिख रही है। वे पहले की ही तरह यौन अपराधियों का शिकार बन रही हैं, लापता हो रही है। छेड़छाड, बलात्कार, अपहरण, लापता होने और दुष्कर्म के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।

बड़ा प्रश्न है कि तमाम कानून एवं सुरक्षा व्यवस्थाएं होने के बावजूद आखिर इतनी बड़ी संख्या में लड़कियां और महिलाएं कहां गायब हो रही हैं? यह वह प्रश्न है, जिसका उत्तर नीति-नियंताओं के साथ ही समाज को भी देना होगा, क्योंकि यह ऐसा मामला नहीं, जिसके लिए केवल सरकारों को कठघरे में खड़ा कर कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाए। गायब होती लड़कियों और महिलाओं के मामले में समाज भी उत्तरदायी है। स्वयं को देश का भाग्य निर्माता मानने वाले राजनीतिक दल भी इसके दोषी हैं। इन सबको अपने अंदर झांकना होगा और स्वयं से यह प्रश्न करना होगा कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि देश के कई हिस्सों में अभी बालक-बालिकाओं का अनुपात संतुलित नहीं हुआ है, क्योंकि कन्या भ्रूण हत्या का सिलसिला कायम है। यह सिलसिला कानूनों को कठोर करने के बाद भी कायम है।

गायब होने वाली लड़कियों में अच्छी-खासी संख्या नाबालिग लड़कियों की भी है। इसका मतलब है कि नारी सुरक्षा का मामला बहुत ही गंभीर है। यह मानने का कोई कारण नहीं कि 2021 के बाद स्थितियों में सुधार आया होगा, क्योंकि लड़कियों और महिलाओं के लापता होने या उनका अपहरण किए जाने अथवा बहला-फुसलाकर भगा ले जाने के समाचार आए दिन आते ही रहते हैं। महिलाओं के प्रति यह संवेदनहीनता एवं बर्बरता कब तक चलती रहेगी? भारत विकास के रास्ते पर तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन अभी भी कई हिस्सों में महिलाओं को लेकर गलत धारणा है कि महिलाएं या बेटियां शोषण एवं उत्पीड़न के लिये ही हैं। एक विकृत मानसिकता भी कायम है कि वे भोग्य की वस्तु है? उन्हें पांव के नीचे रखा जाना चाहिए। यों लापता होने की घटनाएं आए दिन होने वाले जघन्य अपराधों की ही अगली कड़ी है, मगर यह पुरुषवादी सोच और समाज के उस ढांचे को भी सामने करती है, जिसमें महिलाओं की सहज जिंदगी लगातार मुश्किल बनी हुई है, संकटग्रस्त एवं असुरक्षित है। भले ही महिलाओं ने अपनी जंजीरों के खिलाफ बगावत कर दी है, लेकिन देश में ऐसा वर्ग भी है जहां आज भी महिलाएं अत्याचार का शिकार होती है। देश के अन्य हिस्सों की ही भांति गुजरात एवं मध्य प्रदेश में आदिवासी महिलाएं बड़ी संख्या में लापता हो रही हैं। भले एक खास महिला वर्ग ने आर्थिक मोर्चे पर आजादी हासिल की है, लेकिन एक बड़ा महिला वर्ग आज भी पुरुषप्रधान समाज की संकीर्ण एवं विकृत सोच का शिकार है। ऐसा माहौल कायम है तभी आजादी के अमृत महोत्सव मना चुके राष्ट्र की तमाम महिलाएं अपनी अस्मिता एवं अस्तित्व की सुरक्षा की गुहार लगातीं हुई दिखाई देती है। इसलिये कि उन्हें सदियों से चली आ रही मानसिकता, साजिश एवं सजा के द्वारा भीतरी सुरंगों में धकेल दिया जाता है, अत्याचार भोगने को विवश किया जाता है।

बात मणिपुर की दो महिलाओं या बंगाल के मालदा में दो महिलाओं को नग्न करने या समूचे देश में महिलाओं के लापता होने से अधिक चिन्ता की बात यह है कि इन शर्मसार करने एवं झकझोर देने वाली घटनाओं पर भी राजनीतिक दल राजनीति करने से बाज नहीं आते। इन अति संवेदनशील मुद्दों पर राजनीतिक लाभ की रोटियां सेंकना दुर्भाग्यपूर्ण है। अच्छा हो सभी मिलकर नारी सम्मान के प्रति सचेत और संवेदनशील होकर उनके लापता होने, उन पर लगातार हो रहे अत्याचारों को रोकने की दिशा में कोई प्रभावी एवं सार्थक पहल करें। गायब होती लड़कियों और महिलाओं की बड़ी संख्या यही बताती है कि भारतीय समाज उनके प्रति अनुदार है। इस अनुदारता को दूर करने के लिए सबसे अधिक राजनीतिक वर्ग को ही आगे आना होगा और अनिवार्य रूप से समाज को भी।

नरेन्द्र मोदी की पहल पर निश्चित ही महिलाओं पर लगा दोयम दर्जा का लेबल हट रहा है। हिंसा एवं अत्याचार की घटनाओं में भी कमी आ रही है। बड़ी संख्या में छोटे शहरों और गांवों की लड़कियां पढ़-लिखकर देश के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। वे उन क्षेत्रों में जा रही हैं, जहां उनके जाने की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। वे टैक्सी, बस, ट्रक से लेकर जेट तक चला-उड़ा रही हैं। सेना में भर्ती होकर देश की रक्षा कर रही है। अपने दम पर व्यवसायी बन रही हैं। होटलों की मालिक हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की लाखों रुपये की नौकरी छोड़कर स्टार्टअप शुरू कर रही हैं। वे विदेशों में पढ़कर नौकरी नहीं, अपने गांव का सुधार करना चाहती हैं। अब सिर्फ अध्यापिका, नर्स, बैंकों की नौकरी, डॉक्टर आदि बनना ही लड़कियों के क्षेत्र नहीं रहे, वे अन्य क्षेत्रों में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। इस तरह नारी एवं बालिका शक्ति ने अपना महत्व तो दुनिया समझाया है, लेकिन नारी एवं बालिका के प्रति हो रहे अपराधों में कमी न आना, घरेलू हिंसा का बढ़ना, आदिवासी-दलित महिलाओं एवं बालिकाओं पर अत्याचारों का बढ़ना एवं उनका लापता होना, उनकी सुरक्षा खतरे में होना- ऐसे चिन्तनीय प्रश्न हैं, जिन पर सरकार को कठोर बनना होगा, सख्त व्यवस्था बनानी होगी। सरकार ने सख्ती बरती है, लेकिन आम पुरुष की सोच को बदलने बिना नारी एवं बालिका सम्मान की बात अधूरी ही रहेगी। इस अधूरी सोच को बदलना नये भारत का संकल्प हो, इसीलिये तो इस देश के सर्वोच्च पद पर द्रौपदी मुर्मू को आसीन किया गया हैं। लेकिन उनके सर्वोच्च पद पर होने के बावजूद उनके समुदाय की महिलाओं की सुरक्षा एवं अस्मिता खतरे में रहे, यह अधिक गंभीर मामला है।

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