दशमत का मान बढ़ाकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने समाज को दिया बड़ा संदेश

दीपाली शुक्ला

प्रदेश के मुखिया की जिम्मेदारी संभालने के पहले ही दिन से उन्होंने मनुष्यता का सम्मान सुनिश्चित किया है। गरीबों, वंचितों एवं वयोवृद्धों के मान-सम्मान को बढ़ाते हुए शिवराज सिंह चौहान हजारों तस्वीरों में मिल जाएंगे। उन्हें नजदीक से जिसने भी देखा है, ऐसा ही सहज-सरल पाया है।
ऐसा माना जाता है कि सत्ता व्यक्ति को दंभी बनाती है। कुर्सी पर बैठा व्यक्ति अपने आप को खुदा समझने लगता है। अहंकार का स्तर इतना अधिक होता है कि संवेदनाएं उसे छू नहीं पातीं। जनता के मर्म से परे, वह सत्ता के मद में चूर रहता है। परंतु मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने आचार-व्यवहार से बार-बार इस सोच को गलत साबित किया है। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में अपना चौथा कार्यकाल पूरा करने जा रहे शिवराज सिंह चौहान के आस-पास भी अहंकार फटकता नहीं है, आज भी संवेदनशीलता, विनम्रता, कृतज्ञता एवं सरलता ही उनके संगी-साथी हैं। सीधी जिले के शर्मनाक कृत्य के बाद मुख्यमंत्री ने जिस तरह अपनी संवेदनाएं व्यक्त की हैं, उनमें गहरा संदेश छिपा है। मनुष्य का आत्मसम्मान सर्वोपरि है। प्रत्येक व्यक्ति को उसे वह सम्मान देना ही होगा, मनुष्य होने के नाते जिसका वह अधिकारी है। सामर्थ्यशाली व्यक्ति का पुरुषार्थ कमजोर और असहाय व्यक्ति का शोषण करने में नहीं है अपितु उसकी जिम्मेदारी है कि वह पीड़ित व्यक्ति का हाथ पकड़कर, साथ बैठकर सुख-दु:ख की बात करके और आत्मीयता से गले लगाकर उसका साहस बने। शिवराज सिंह चौहान यही कर रहे हैं। एक मुखिया को कैसा होना चाहिए, अनुसूचित जनजाति समुदाय के बंधु दशमत को हृदय से लगाकर, उन्होंने अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। पीड़ित के दु:ख को बाँटने के साथ ही मुख्यमंत्री ने यह भी संदेश दिया है कि अपराधी कोई भी हो, मानवता को शर्मसार करने के बाद वह बच नहीं सकता। अपने किए की सजा उसे भोगनी ही पड़ेगी।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से असहमति रखने वाले और उनके राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी यह कह रहे होंगे कि पहले भाजपा का कार्यकर्ता किसी व्यक्ति पर पेशाब करे और फिर मुख्यमंत्री उसके पैर धोयें, यह प्रायश्चित्त नहीं बल्कि सरकार की बदनामी को ढंकने के लिए की गई नौटंकी है। निकट भविष्य में विधानसभा चुनाव न होते, तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह सब नहीं कर रहे होते। कहने को कुछ भी कहा जा सकता है, किसी को कोई रोक नहीं सकता। लेकिन क्या कहने वाले यह बता सकते हैं कि इससे पहले अमानवीय अपराध का प्रायश्चित्त करते हुए उन्होंने किसी और मुख्यमंत्री को देखा है? उत्तर है- नहीं। जिस व्यक्ति का मान-मर्दन किया गया हो, समाज में उसके सम्मान को रेखांकित और सुनिश्चित करने के लिए किस-किस मुख्यमंत्री ने कब-कब पीड़ित के चरण धोये हैं? इसके लिए सत्ता का दंभ, श्रेष्ठ और विशिष्ट होने का अहंकार छोड़ना पड़ता है। अंगुलियां उठाने वाले खेमे में कौन है, जो संवेदनशीलता एवं विनम्रता में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पासंग भी ठहरता हो?

प्रदेश के मुखिया की जिम्मेदारी संभालने के पहले ही दिन से उन्होंने मनुष्यता का सम्मान सुनिश्चित किया है। गरीबों, वंचितों एवं वयोवृद्धों के मान-सम्मान को बढ़ाते हुए शिवराज सिंह चौहान हजारों तस्वीरों में मिल जाएंगे। उन्हें नजदीक से जिसने भी देखा है, ऐसा ही सहज-सरल पाया है। किसी के पैर धोकर शिवराज अपनी विनम्रता पहली बार प्रकट नहीं कर रहे हैं। अपने जन्मदिन पर वे सफाईकर्मियों के पैर धोकर उनका सम्मान कर चुके हैं। कन्यापूजन के दौरान वे विभिन्न जाति-बिरादरी की कन्याओं के पैर प्रतिवर्ष पखारते हैं। यह सब वे वोटों की राजनीति के लिए भी नहीं करते हैं। याद हो कि 19 जुलाई 2019 को झारखंड में प्रवास के दौरान उन्होंने एक जनजातीय परिवार में भोजन किया और वहीं एक वृद्ध महिला के पैर धोकर, आत्मीयता प्रकट की थी। झारखंड में तो उन्हें न चुनाव लड़ना था और न ही वे वहाँ मुख्यमंत्री बनने वाले थे। दरअसल, मनुष्यता का सम्मान करने का यह उनका अपना तरीका है, जो उन्हें अपनी सनातन संस्कृति से विरासत में मिला है।

सीधी के दशमत के साथ बुधवार को जब उन्होंने पौधा रोपा, तब उन्होंने ट्वीट में कहा- “एक ही चेतना सब में हैं। वृक्ष बिना किसी भेदभाव के सबको प्राणवायु देते हैं। हम भी वृक्ष जैसे बनें। दशमत जी के साथ पौधारोपण किया”। इसके अलावा उन्होंने इस संबंध में बुधवार को दो और ट्वीट किए, जिनमें उनकी संवेदनाओं को स्पष्टतौर पर अनुभव किया जा सकता है। मुख्यमंत्री लिखते हैं- “मन दु:खी है; दशमत जी आपकी पीड़ा बाँटने का यह प्रयास है, आपसे माफी भी माँगता हूँ, मेरे लिए जनता ही भगवान है”। अपने राज्य के एक व्यक्ति के अपमान पर मुखिया का इस प्रकार द्रवित होना, बड़े दिलवाले मुखिया की पहचान है। दशमत के पाँव धोने का वीडियो साझा करते हुए उन्होंने लिखा है- “यह वीडियो मैं आपके साथ इसलिए साझा कर रहा हूँ कि सब समझ लें कि मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान है, तो जनता भगवान है। किसी के साथ भी अत्याचार बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। राज्य के हर नागरिक का सम्मान मेरा सम्मान है”। यह जो भाव है, यही मुख्यमंत्री की संवेदनाओं के केंद्र में है। ऐसे राजनेता विरले ही होते हैं, जिनके लिए राजनीति में भावनाएं एवं संवेदनाएं सर्वोपरि होती हैं।

जरा सोचिए, सरकार का क्या काम है? अपराधी के विरुद्ध कानून सम्मत कार्रवाई करना और पीड़ित को न्याय दिलाना। यह काम तो मुख्यमंत्री एक ही दिन में कर चुके थे। जैसे ही घृणित अपराध का वीडियो सामने आया, मुख्यमंत्री ने घटना के मर्म एवं संवेदनशीलता को समझते हुए तत्काल प्रशासन को कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश जारी कर दिए। रात बीतने से पहले ही आरोपी को दबोच कर सलाखों के पीछे डाल दिया गया। निष्पक्षता के साथ आरोपी के अवैध निर्माण को ढहा दिया गया। इस मामले को जातीय रंग देने वाले परंपरागत विघ्नसंतोषी भी सरकार की निष्पक्ष एवं कठोर कार्रवाई से संतुष्ट हो गए। परंतु मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए यह मामला इतना भर नहीं था। अपने ही राज्य में मानवता के घोर अपमान पर एक मुखिया का हृदय कैसे शांत रह सकता था। मुख्यमंत्री आवास में हम सबने जो दृश्य देखा, उससे दो व्यथित हृदयों (दशमत और शिवराज सिंह चौहान) को शांति मिली होगी। हालांकि, अब तक सामने आई जानकारी के अनुसार यह घटना उस समय की है, जब राज्य में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री नहीं थे। लगभग तीन वर्ष पहले हुए अपराध का वीडियो अब क्यों जारी किया गया, इसकी पड़ताल अवश्य होनी चाहिए। बहरहाल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने आचरण से एक बड़ी लकीर खींचकर समाज को संदेश दिया है कि मनुष्यता का अपमान करने से बड़ा अपराध कोई नहीं है। हमारा स्वभाव बनना चाहिए कि हम जिस तरह का व्यवहार अपने लिए चाहते हैं, वैसा ही दूसरों के साथ करें। अपनी संस्कृति के इस दर्शन को कभी न भूलें- “अहं ब्रह्मास्मि – मैं ब्रह्म हुँ। तत्वमसि – वह ब्रह्म तु है”।

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