आतंकवाद को लेकर सऊदी अरब में मक्का से लेकर अलकासिम तक सौ मौलवी इमाम किया बर्खास्त

 

भारत इतने वर्षों से आतंकवाद की मार झेल रहा है, लेकिन पिछली सरकारें इस्लामिक आतंकवाद को संरक्षण देने “हिन्दू आतंकवाद” और “भगवा आतंकवाद” के नाम से हिन्दू धर्म को कलंकित करने में व्यस्त रहीं। परन्तु 2014 में सत्ता परिवर्तन होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद के मुद्दे पर विश्व स्तर पर पुरजोर तरीके से उठाने के कारण विश्व इस गंभीर मुद्दे पर एकजुट होना शुरू ही नहीं हुआ, बल्कि आतंकवाद के विरुद्ध पाकिस्तान और अन्य आतंकवाद समर्थक देशों के विरुद्ध खड़े होने शुरू हो गए। 

परन्तु भारत में अभी भी कुर्सी के भूखे और तुष्टिकरण पुजारी आतंकवाद के विरुद्ध कार्यवाही करने पर चीख-पुकार करने लगते हैं। अब इन सभी को सऊदी अरब से शिक्षा लेनी चाहिए, जिसने आतंकवाद के विरुद्ध न बोलने वाले इमाम और मौलवियों को बर्खास्त कर दिया। आज विश्व मोदी के पद-चिन्हों पर चल रहा है, लेकिन भारत में मोदी विरोधी आतंकवाद के विरुद्ध कार्यवाही को मुस्लिम विरोधी करार देकर मुस्लिमों को भड़काने में व्यस्त हैं। अब इनसे पूछा जाए कि “क्या सऊदी अरब भी मुस्लिम विरोधी है?”
सऊदी अरब की सरकार ने 100 इमामों और मौलवियों को बरख़ास्त कर दिया है। इन सभी ने कट्टरपंथी इस्लामी संगठन ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ की आलोचना करने या उसकी हरकतों की निंदा करने से इनकार कर दिया था। इनमें से अधिकार ऐसे मौलवी हैं, जो मक्का और अल-कासिम में उपदेश दिया करते थे। इस्लामी मामलों के मंत्रालय ने इन मौलवियों को निर्देश जारी किया था कि ये समाज को बाँटने वाले ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ की आलोचना करें।

लेकिन, इन सभी ने कट्टरपंथी संगठन की हरकतों की निंदा करने से इनकार कर दिया। इससे पहले ‘सऊदी काउंसिल ऑफ सीनियर स्कॉलर्स’ ने निर्देश दिया था कि शुक्रवार को जुमे के दिन होने वाली नमाज के दौरान ये सभी मौलवी मुस्लिमों को ये बताएँ कि ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ एक आतंकी संगठन है जो इस्लाम की सच्ची शिक्षाओं को जनता तक पहुँचाने की बजाए अपने हितों के लिए उसके साथ छेड़छाड़ करता है। मौलवियों को लोगों को बताना था कि ये संगठन इस्लाम की शिक्षाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता।

 

2014 में ही सऊदी अरब ने ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ को आतंकी संगठन घोषित करते हुए मुल्क में इसे प्रतिबंधित कर दिया था। 1950 के दशक में सऊदी अरब ने संगठन के हजारों कार्यकर्ताओं को शरण दी थी, जिन्हें मिस्र और सीरिया सहित कई इलाकों में प्रताड़ित किया जा रहा था। जल्द ही उन्होंने सऊदी में प्रभाव कायम करना शुरू कर दिया। 1990 में इराक का कुवैत पर हमला और अमेरिका का इराक पर हमले में सऊदी अरब के शामिल होने से संगठन के साथ उसके रिश्ते खराब हो गए।

इस समूह ने मुल्क में अमेरिकी सेना की मौजूदगी की निंदा करते हुए सुधारों की वकालत की। इसके बाद इस संगठन को मुल्क में ‘बुराइयों की जड़’ बताते हुए इसका दमन शुरू कर दिया गया। 2013 में मिस्र में आंदोलन हुआ और ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ से आने वाले मोहम्मद मोर्सी को राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा देना पड़ा। इस आंदोलन के पीछे सऊदी अरब का हाथ बताया गया। सऊदी का इस्लामी मंत्रालय इस मामले में सख्त है और उसने कहा है कि मजहब की आड़ में वो इस संगठन को पनपने नहीं देगा।

इससे पहले सऊदी अरब ने बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोगों (NRIs) को वापस प्रत्यर्पित किया था। ये सभी खाड़ी मुल्क में रहते हुए CAA के खिलाफ विरोध-प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहे थे। इन्होंने दिल्ली के शाहीन बाग़ विरोध प्रदर्शन से प्रेरित होकर वहाँ भी सड़क पर उतर कर मोदी सरकार के इस कानून के खिलाफ जम कर प्रदर्शन किया था। बाद में सऊदी अरब ने इन सभी को भारत को सौंपने का निर्णय लिया।

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