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स्वर्णिम इतिहास हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 14 ( ग ) सिंहावलोकन

सिंहावलोकन       भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की महानता इसी में निहित है कि भारत भूमि को पुण्य भूमि व पितृ भूमि बनाने में श्रीराम का महत्वपूर्ण योगदान है। उस योगदान को भारत का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अपनी मौलिक चेतना का एक महत्वपूर्ण और अजस्र स्रोत मानता है। श्री रामचंद्र जी के योगदान को भारत की पुण्य […]

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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 14 ( ख ) सिंहावलोकन

सिंहावलोकन     राजनैतिक विचारक एंथोनी डी. स्मिथ ने राष्ट्र को कुछ इस तरह परिभाषित किया है, ‘मानव समुदाय जिनकी अपनी मातृभूमि हो, जिनकी समान गाथाएं और इतिहास एक जैसा हो, समान संस्कृति हो, अर्थव्यवस्था एक हो और सभी सदस्यों के अधिकार व कर्तव्य समान हों।’          यदि एंथोनी के इस कथन पर विचार किया जाए […]

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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 14 ( क ) सिंहावलोकन

सिंहावलोकन श्रीराम को भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की चेतना का एक महत्वपूर्ण स्रोत कहा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि श्रीराम ही इस चेतना के एकमात्र स्रोत हैं। क्योंकि भारतीय चेतना का यह स्रोत तो सृष्टि के आदि से प्रवाहित होता चला आ रहा है। इसके महत्वपूर्ण संरक्षक के रूप में श्रीराम हमारे लिए बहुत […]

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स्वर्णिम इतिहास

पूर्वोत्तर भारत और महाभारत का सम्बन्ध

डॉ. सुधा कुमारी भारत का पूर्वोत्तर हिस्सा जो सात राज्यों का समूह है, मुख्य भाग से काफी दूर माना जाता है। आज की तारीख में इस हिस्से में भेजा जानेवाला व्यक्ति थोड़ा असहज महसूस करेगा और इतनी दूर जाने से हिचकेगा। किन्तु यहाँ प्रवास करनेवाले को धीरे धीरे मालूम होता है कि यह भाग प्राचीन […]

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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 13 ग श्रीराम का औदार्य

श्रीराम का औदार्य धर्म भारतीय जन गण में आज भी बहुत सम्मान प्राप्त करता है। जब कोई व्यक्ति किसी गलत कार्य में फँसता या फँसाया जाता है तो लोग उसको धर्म की सौगंध उठाकर अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए कहते हैं । यदि ऐसा व्यक्ति धर्म की सौगंध उठाकर अपनी बात कह देता है […]

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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 13 ख श्रीराम का औदार्य

श्रीराम का औदार्य    जिस समय भरत और शत्रुघ्न अपनी ननिहाल से अयोध्या पहुंचकर वहां अपनी अनुपस्थिति में घटी सारी घटनाओं से परिचित होते हैं तो रामचंद्र जी की उदारता का उल्लेख करते हुए भरत अपने भाई शत्रुघ्न से कहते हैं कि -” स्त्रियां अवध्य होती हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो मैं पापी दुष्टाचारिणी […]

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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 13 क श्रीराम का औदार्य

श्रीराम का औदार्य किसी भी शासक की महानता और उसके शासन की उत्तमता की कसौटी केवल यह मानी गई है कि उसके राज्य में प्रजा  सुखी रहे। यदि प्रजा किसी शासक के शासन में दु:खी है तो उसके शासन को उत्तम नहीं माना जा सकता। प्रजा शांतिपूर्वक सुखानुभूति करते हुए अपना जीवन यापन करे और […]

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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 12 (ग) संपूर्ण भारत ही बन जाए श्रीराम मंदिर

श्रीराम की शरणागत वत्सल भावना    श्रीराम की शरणागत वत्सल भावना भी प्रशंसनीय है। उनकी शरण में जो भी आया उसी को उन्होंने गले लगाया । यद्यपि कई लोगों ने विभीषण के उनकी शरण में आने पर आपत्ति उठाई थी और यह शंका भी व्यक्त की थी कि यह व्यक्ति क्योंकि शत्रु पक्ष से आया […]

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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 12( ख) संपूर्ण भारत ही बन जाए श्रीराम मंदिर

         आज हम जब श्री राम जन्मभूमि पर अयोध्या में मंदिर बना रहे हैं तो वह मंदिर श्रीराम के अथक और गंभीर प्रयासों का प्रतीक है। जिनके चलते हमने संपूर्ण भूमंडल को ही मंदिर में परिवर्तित कर दिया था। आज उनका यह प्रतीकात्मक मंदिर अपनी भव्यता और विशालता को तभी प्राप्त कर पाएगा जब यह […]

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इतिहास के पन्नों से स्वर्णिम इतिहास हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 12 (क) संपूर्ण भारत ही बन जाए श्रीराम मंदिर

संपूर्ण भारत ही बन जाए श्रीराम मंदिर मंदिर भारतीय संस्कृति में एक विशेष पवित्र स्थल का नाम है। जहां भीतरी बाहरी पवित्रता को स्थान दिया जाता है। यह वह स्थल है जहां जाकर बाहरी दुनिया की चहल-पहल और कोलाहल सब शांत हो जाता है । व्यक्ति के भीतर का संसार मुखरित होकर उसका मार्गदर्शन करने […]

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