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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

भाई दयालाजी, भाई सतीदास और गुरू तेगबहादुर के बलिदान

वैदिक धर्म की महानता मूलत: इस्लाम हिंदू विरोधी है। वह संसार में केवल इस्लाम की सत्ता चाहता है। औरंगजेब इसी इस्लामिक सोच को व्यावहारिक रूप देना चाहता था इसीलिए वह गुरू तेगबहादुर को मुसलमान बनाकर इस्लाम को सार्वभौमिक धर्म बना देना चाहता था। यह अलग बात है कि कोई भी मत या संप्रदाय सार्वभौमिक नही […]

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गुरू तेगबहादुर चल दिये अपना बलिदान देने दिल्ली

‘धर्मवीरों’ की दृष्टि गुरू तेगबहादुर पर पड़ी कश्मीर और कश्मीरी संस्कृति को विनष्ट करने की सौगंध उठा लेने वाले शेर अफगान के विरूद्घ कश्मीरी पंडितों में विरोध का लावा उबल रहा था पर विरोध में प्रतिरोध का अभाव था। इसलिए विरोध प्रतिरोध के लिए किसी का बोध (मार्गदर्शन) प्राप्त करने का अभिलाषी था। तब इन […]

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अपनी वीरता के कारण बालक त्यागमल बन गया था तेगबहादुर

भारतीय वीर परंपरा का मूल स्रोत पंजाब की गुरूभूमि के प्रति औरंगजेब और उसके अधिकारियों की कोप-दृष्टि बढ़ती ही जा रही थी। पर पंजाब की गुरू परंपरा जनता में औदास्यभाव को समाप्त कर स्वराज्य भाव की ज्योति को ज्योतित किये जा रही थी। मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है :- ”आने न दो अपने निकट औदास्यमय […]

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औरंगजेब नही झुका पाया था गुरू हरिराय के स्वाभिमान को

गुरू हरिराय का अपने पुत्र रामराय के प्रति व्यवहार गुरू हरिराय के लिए यह असीम वेदना और कष्ट पहुंचाने वाली बात थी कि उनका पुत्र बादशाह औरंगजेब की चाटुकारिता करने लगे। जबकि उन्होंने अपने पुत्र रामराय को दिल्ली जाने से पूर्व भली प्रकार समझाया था कि बादशाह के समक्ष कोई भी ऐसी बात ना तो […]

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दारा शिकोह के कारण गुरू हरिराय पर किये गये तीन आक्रमण

‘सर्व संप्रदाय समभाव’ में विश्वास रखने वाला दारा दाराशिकोह का नाम मुगल वंश के एक ऐसे नक्षत्र का नाम है जिसने विपरीत, परिस्थितियों और विपरीत परिवेश मंज जन्म लेकर भी ‘सर्व संप्रदाय समभाव’ की मानवोचित और राजोचित व्यवस्था में अपना विश्वास व्यक्त किया था और उसके विषय में यह भी सत्य है कि अपने इसी […]

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शिवाजी का व्यक्तित्व आज भी हर भारतीय को देता है प्रेरणा

स्वजनों का रक्त पिपासु -औरंगजेब औरंगजेब के काल की ही घटना है। धौलपुर के मैदान में औरंगजेब और दाराशिकोह की सेनाएं आमने-सामने आ गयीं। यह युद्घ हिन्दुस्थान पर राज करने के लिए व मुगल तख्त का उत्तराधिकारी बनने के लिए लड़ा जा रहा था। औरंगजेब किसी भी मूल्य पर किसी भी ऐसे व्यक्ति को जीवित […]

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हठ करके बलिदान देने की रही है भारत की अनूठी परंपरा

‘सदगुण विकृति’ करती रही हमारा पीछा औरंगजेब ने अपने शासनकाल में चित्तौड़ पर कई आक्रमण किये, पर इस बार के आक्रमण की विशेषता यह थी कि बादशाह स्वयं सेना लेकर युद्घ करने के लिए आया था। मुगलों का दुर्भाग्य रहा कि बादशाह की उत्साहवर्धक उपस्थित भी युद्घ का परिणाम मुगलों के पक्ष में नही ला […]

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शिवाजी ने अपने कृतित्व से सिद्घ किया कि वह उस समय के नायक थे

शिवाजी के राज्य विषयक सिद्घांत शिवाजी के राज्य विषयक सिद्घांत ‘आज्ञापत्र’ या ‘शिवराज की राजनीति’ से स्पष्ट होते हैं। उसके अध्याय 3 में कहा गया है-”परस्पर विरोध उत्पन्न होकर जिससे विनाश हो ऐसा नही करना चाहिए। सकल प्रजा सुरक्षित और संरक्षित रहनी चाहिए। धर्म पथ-प्रवत्र्तक बनना चाहिए। इस प्रजा की करूणा के लिए ईश्वर ने […]

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स्वदेशी राज्य की स्थापना कर शिवाजी ने बना दिया असंभव को संभव

निराले व्यक्तित्व के धनी शिवाजी शिवाजी भारतीयता का प्रतीक थे, वीरता के पुंज थे और इसके उपरांत भी युद्घ में वह दुष्ट के साथ दुष्टता के तो पक्षधर थे, परंतु अपनी ओर से दुष्टता की पहल करने के विरोधी थे। इस भावना को आप युद्घ में सतर्कतापूर्ण मानवीय व्यवहार के रूप में समाहित कर सकते […]

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औरंगजेब के सामने भी सुरक्षित रखा था शिवाजी ने स्वाभिमान

शिवाजी के पत्र का जयसिंह पर नही पड़ा कोई प्रभाव हमने पिछले आलेख में शिवाजी के उस पत्र को उल्लेखित किया था, जो उन्होंने जयपुर के राजा जयसिंह के लिए लिखा था। उस पत्र के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि शिवाजी मराठाभक्त नहीं हिंदू और हिंदूस्थान के भक्त थे। पर दुर्भाग्य की बात […]

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