वेदों का पुराना प्रसिद्ध सिद्धांत है, दंड के बिना कोई सुधरता नहीं है | आज संसार के लोग बिगड़े हुए दिखाई देते हैं । इसके कारण है कि लोग दंड व्यवस्था को भूल चुके हैं । कुछ ही अपवाद रूप लोगों को छोड़कर शेष सभी लोग दंड व्यवस्था को समझ नहीं रहे । उन्हें ना […]
श्रेणी: आज का चिंतन
आचार्य अनूपदेव संसार में प्रायः अवतारवाद को लेकर यह अवधारणा बनी हुई है कि भगवान या ईश्वर अवतार यानी कि जन्म लेता है। यहाँ विचार करने वाली बात यह है कि, यदि कहा जाये कि मनुष्य अवतार लेता है, तो यह सम्भव है, क्योकि अवतार तो केवल वही ले सकता है जो एकदेशी अणु हो, […]
राजेंद्र सिंह कदाचित् मध्यकालीन भारत के सन्तों और सिद्धों की श्रेणी में गुरु नानकदेव अकेली ऐसी विभूति हैं जिन्होंने इस प्राचीन राष्ट्र को एक सांस्कृतिक और राजनैतिक इकाई के रूप में देखा। उल्लेखनीय है कि आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में जिन तीस से अधिक जिन महापुरुषों की वाणी संकलित है, उनमें से केवल […]
मनुष्य को अपने जीवन की रक्षा के लिए ईंट पत्थर से बने भौतिक मकान की आवश्यकता तो होती ही है। और प्रायः लोग अपने अपने मकान में रहते भी हैं। संसार में कुछ निर्धन व्यक्ति भी हैं, जिनके पास अपना मकान नहीं है। वे भी कहीं-न-कहीं सिर छुपाने की जगह ढूंढ लेते हैं, और जैसे […]
ओ३म् स्वभाव से मनुष्य सुख प्राप्ति का इच्छुक रहता है। वह नहीं चाहता कि उसके जीवन में कभी किसी भी प्रकार का दुःख आये। सुख प्राप्ति के लिये सद्कर्म व धर्म के कार्य करने होते हैं। अतः सत्कर्मों से युक्त प्राचीन वेदों पर आधारित वैदिक धर्म का पालन करते हुए मनुष्य अपने जीवन में सुखों […]
प्रस्तुति – देवेंद्र सिंह आर्य (चेयरमैन ‘उगता भारत’ समाचार पत्र) भारत पर सभ्यतागत आक्रमणों में एक बडा आक्रमण यहां की ज्ञान परंपरा पर किया गया था। भारतीय ज्ञान परंपरा का सबसे बडा आधार थे वेद और इसलिए अंग्रेजों सहित समस्त यूरोपीय बौद्धिक जगत ने वेदों को निरर्थक साबित करने के लिए एडी-चोटी एक कर दिया […]
[नोट- आज हम डा.रघुवीर वेदालंकार जी का दिनांक 1-8-2018 को देहरादून के गुरुकुल पौंधा में दिया गया व्याख्यान प्रस्तुत कर रहे हैं। यह व्याख्यान ज्ञानवर्धक, प्रेरक एवं कर्तव्य-बोध में सहायक है। हम आशा करते हैं कि हमारे मित्र व पाठक इसे पसन्द करेंगें। -मनमोहन आर्य।] श्रीमद्दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल, देहरादून के वार्षिकोत्सव में दिनांक 1 […]
प्रस्तुति – देवेंद्र सिंह आर्य (चेयरमैन ‘उगता भारत’ समाचार पत्र) प्राचीन भारतीय अर्थशास्त्रियों के आर्थिक विचारों से आधुनिक युग के अर्थशास्त्री सर्वथा अपरिचित से प्रतीत होते हैं। जिस एक ‘श्रम सिद्धान्त’के कारण ही ‘एडमस्मिथ’को अर्थशास्त्र का पिता कहा जाता है, वह श्रम विभाजन भी प्राचीन भारतीय आर्थिक विचारकों के लिए कोई नवीन विचार एवं नवीन […]
वैदिक संपत्ति गतांक से आगे… दो प्रकार की विद्याएं हैं,एक परा दूसरी अपरा। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष आदि अपरा विद्याए हैं और जिससे वह अक्षर प्राप्त होता है, वह परा विद्या है। इस वर्णन से ज्ञात होता है कि, वेदों में परा विद्या का वर्णन नहीं है, अर्थात वेद […]
ओ३म् हमारा यह संसार लाखों व करोड़ो वर्ष पूर्व बना है। यह अपने आप नहीं बना और न ही स्वमेव बिना किसी कर्ता के बन ही सकता है। इसका बनाने वाला अवश्य कोई है। जो भी चीज बनती है उसका बनने से पहले अस्तित्व नहीं होता। इस संसार का भी बनने से पहले इस दृश्यरूप […]