बिखरे मोती-भाग 97 गतांक से आगे….दुर्भाव से सद्भाव के,मिटते जायें संबंध।जैसे बदबू की हवा,खाती जाय सुगंध ।। 929 ।। व्याख्या :-हृदय की शुद्घि सद्भाव से होती है। हृदय में प्रसन्नता भी सद्भाव से ही रहती है। यदि किसी कारणवश हृदय में दुर्भाव पैदा हो जाए तो वह गोखरू के कांटे की तरह बढ़ता जाता है, […]
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