मानव को मानव का विशेष यौन धर्म समझाकर उसके जीवन को संतुलित, मर्यादित और साधनामय बनाने की आवश्यकता है, इससे सभ्य समाज का निर्माण होगा। इसी से विश्व का कल्याण होगा और इसी आवश्यकता की पूत्र्ति से समाज की अस्त-व्यस्त अव्यवस्था ठीक होगी। मानव को मानव बना दें, यह सबसे बड़ा उपकार है। मानव स्वयं […]
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इस प्रकार भारत का निर्धन वर्ग भारतीय परंपरा का निर्वाह करते हुए संतानोत्पादन करता है। वह यह भी जानता है कि जो भी जीव गर्भ में आ गया उसे समय से पहले बलात् बाहर निकालना अर्थात उसका गर्भपात कराना-एक हत्या करना है। जबकि धनिक वर्ग के लोग निरोध आदि से वीर्य नाश तो करते ही […]
अत: पश्चिम का आज का भौतिकवाद जिस प्रकार की श्रंगारप्रिय सामग्री मानव को परोस रहा है उसमें कामचेष्टा बलवती होनी स्वाभाविक है। तेल, उबटन, स्नान, इत्र, माला, आभूषण, अट्टालिका आदि के मध्य रहकर कोई स्त्री प्रसंग का निषेध करेगा भी तो कुण्ठा और मानसिक तनाव की अन्य व्याधियों से ग्रसित होगा ही। जैसे-खाली मन इंसान […]
अन्नोत्पादन से कितने ही जीवों की हत्या हलादि से होती है। वनों का संकुचन होता है। फलत: पर्यावरण का संकट आ खड़ा होता है। इसलिए प्राकृतिक और स्वाभाविक रूप से जो कुछ हमें मिल रहा है वही हमारा स्वाभाविक भोजन है। अत: अन्न से रोटी बनाना और उसे भोजन में ग्रहण करना तो एक बनावट […]