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अन्य कविता

मंजिल अपनी पहचान

क्यों हो गया रक्त पिपासु? आणविक रासायनिक अस्त्रों से,क्या तेरे बुझेगी प्यास? मायावाद की मरूभूमि में, तुझे कहां मिलेगी घास? संभूति और असंभूति का,मिलन ही पूर्ण विकास। है मंजिल यही तेरे जीवन की, तुझे कब होगा अहसास? क्या कभी सोचकर देखा?निकट है काल की रेखा। जीवन बीत रहा पल-पल, जीवन बदल रहा पल-पलअरे मनुष्य! तेरे […]

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संपादकीय

‘बाबा’ को लौटा दो उसकी पहचान

हिंदी विश्व की समृद्घतम संस्कृत भाषा की उत्तराधिकारिणी है। इसके एक-एक अक्षर का वैज्ञानिक अर्थ है। एक-एक शब्द कुछ ऐसा अर्थ रखता है जिसमें झलकती है-आत्मीयता और टपकता है-स्नेह रस। आज हम कुछ ऐसे शब्दों पर चर्चा करते हैं जो दिखाते हैं हमारे संबंधों को और जिनके कारण हम बंध जाते हैं प्रेम की डोर […]

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