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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

छलपूर्ण प्रेम की आड़ में कश्मीर धर्मांतरण की ओर बढऩे लगा

‘कश्मीरी पंडित’ का वास्तविक अर्थ कश्मीर को पंडितों की भूमि कहा जाता है। पंडित का अर्थ यहां किसी जाति विशेष से न होकर विद्घानों से है। कश्मीर सदा से ही ऋषियों की तप: स्थली रहा है। यहां लोग लोक-परलोक को सुधारने और मोक्ष की प्राप्ति के लिए आत्मसाधना हेतु जाया करते थे। इसलिए ऐसे आत्म […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

कश्मीर की कश्मीरियत के लिए आत्म बलिदान देने वाली कोटारानी

पिछले लेख में हम कश्मीर की वीरांगना कोटारानी के बौद्घिक चातुर्य और देशभक्ति की चर्चा कर रहे थे। इस लेख को भी हम कोटा रानी के लिए ही समर्पित रखेंगे। उससे पूर्व हम देखें कि सर वी.एम. नॉयपाल इस्लाम के विषय में क्या कहते हैं-‘‘इस्लाम अपने मौलिक स्वरूप में एक अरबी धर्म है। हर एक […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

कश्मीर की कश्मीरियत को जीवित रखने वाली कोटा रानी

के.एम. मुंशी की राष्ट्रबोध कराने वाली टिप्पणी के.एम. मुंशी अपनी पुस्तक ‘ग्लोरी दैट वाज गुर्जर देश’ के पृष्ठ 24 पर लिखते हैं :-‘‘सन 1199 से लेकर 1526 तक के संघर्ष काल का इतिहास दिल्ली सल्तनत की उपलब्धियों के एक पक्षीय वर्णनों से भरा हुआ है, क्योंकि वह दरबारी इतिहासकारों के वर्णन पर आधारित है। जबकि […]

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संपादकीय

मोदी जी ! कश्मीर की अंधी लूट को रोको

जम्मू कश्मीर राज्य की भारत संघ में विशेष स्थिति है। यह एक पहाड़ी राज्य है। इसके कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 92 प्रतिशत भाग पहाड़ी है। यहां की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर है, तो शीतकालीन राजधानी जम्मू है। इस राज्य का कुल क्षेत्रफल (पाकिस्तान तथा चीन द्वारा कब्जाए गये क्षेत्रफल सहित) 2, 22, 236 वर्ग किमी. है। […]

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महत्वपूर्ण लेख

कश्मीर में ‘तीन सौ सत्तर’ बाधाएं

राकेश कुमार आर्य मोदी सरकार बड़ी सावधानी से फूंक-फूंक कर कदम  आगे बढ़ा रही है। मोदी ने अपनी सरकार की छवि ‘बातें कम-काम अधिक’ वाली बनाने का प्रयास किया है। उनकी सोच ‘चुपचाप काम में लगे रहो और परिणामों पर जनता  की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करो’ वाली है। वह सही समय पर नपा-तुला बोलना पसंद […]

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महत्वपूर्ण लेख

‘योग भूमि’ बनाओ कश्मीर को

राकेश कुमार आर्यजो कश्मीर कभी जीवन मुक्त होने के लिए हमारे ज्ञानी महात्माओं की ‘योगभूमि’ हुआ करती थी, विडंबना देखिए कि वही कश्मीर मुगल काल में बादशाहों के लिए सैर सपाटे का स्थान बन कर ‘भोगभूमि’ बन गयी और इसी परंपरा को अंग्रेजों ने भी अपने शासन काल में यथावत बनाये रखा।पर स्वतंत्र भारत में […]

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