जय हो चमचे चुगलखोर, तेरे जादू में बड़ा जोर।
जय हो चमचे चुगलखोर,

भूतल पर जितने प्राणी हैं, तू उन सबमें है कुछ विशिष्ट।
चुगली और चापलूसी करके, बनता है कत्र्तव्यनिष्ठ।

जितने जहां में उद्यमी हैं, उपेक्षा उनकी कराता है।
बात बनाकर चिकनी चुपड़़ी, हर श्रेय को पाता है।

पर प्रतिष्ठा समाप्त कर, अपनी की नींव जगाता है।
स्वार्थसिद्घि हित न जाने, क्या-क्या ढोंग रचाता है।

क्या नीच कर्म, क्या पाप पुण्य, तू जरा ध्यान नही लाता है।
इज्जत और ईमान बेच दे, अपनों पर तीर चलाता है।

देखने में दयालु लगता है, है काला दिल बेहद कठोर।
जय हो चमचे चुगलखोर।

 

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