1962 में देश चीन के हाथों परास्त हुआ। तब हमारे तत्कालीन नेतृत्व ने अपनी भूलों पर प्रायश्चित किया और सारे देश को यह गीत गाकर रोने के लिए बाध्य किया-‘ऐ मेरे वतन के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी।’….हम अपने उन शहीदों की पावन शहादत पर रो रहे थे-जिनके हाथों से बंदूक छीनकर हमने उन्हें लाठी पकड़ा दी थी, और उन्हें भेडिय़ों के सामने मरने के लिए अकेला छोड़ दिया था। जिन लोगों ने स्वतंत्र भारत में रहकर भारत के इतिहास (पराभवकाल का विशेषत:) के विषय में यह निष्कर्ष निकाला था कि हम विदेशियों से इसलिए हारे थे कि हमारे पास आधुनिकतम शस्त्रास्त्रों का अभाव था-उन लोगों ने भी तत्कालीन नेतृत्व को इतिहास का यह सच बताकर इस बात के लिए प्रेरित नहीं किया कि अपने वीर जवानों को आधुनिकतम शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित करो, अन्यथा मिली हुई आजादी को खोना पड़ सकता है। गांधीजी की अहिंसा हमारे सिर ऐसी चढक़र बोली कि ‘बाबर भक्त’ तत्कालीन नेतृत्व नये ‘बाबरों’ को तोप लेकर आने के लिए प्रेरित करने वाली नीतियों को अपना बैठा। इतना ही नहीं अपने वीर सैनिकों के हाथों से बंदूक छीनकर उन्हें लाठी से देश की रखवाली करने की अवैज्ञानिक, अतार्किक और अस्वाभाविक चेष्टा करने लगा।
जब पिटाई हुई तो वह ‘जयचंदी नेतृत्व’ अपने किये पर देश की संसद में रोया। उसके रोने का उस समय यही अर्थ था कि मुझे आगे चलकर कभी ‘जयचंद’ मत कह देना, मुझसे भारी भूल हुई है, और मैं उसका प्रायश्चित करता हूं। यह देश वीरों का देश है, इसलिए यह क्षमा को वीरों का आभूषण कहकर महिमामंडित करता है। फलस्वरूप इसने ‘जयचंदों’ को क्षमा कर दिया। उधर कांग्रेस ने इन ‘जयचंदों’ की समाधियां बनानी आरम्भ कीं और यह क्षमाशील स्वभाव का भोला देश पिछले 70 वर्ष से ‘जयचंदों’ की समाधियों को पूजता आ रहा है, यह भूल गया कि-
”शोणित के बदले जहां अश्रु बहता है।
वह देश कभी आजाद नहीं रहता है।।”
आजादी की रक्षार्थ शोणित बहाना पड़ता है,-आंसू बहाने से देश की आजादी सुरक्षित नहीं रह सकती। भारत पूर्ण अर्थों में आजाद तभी होता-जब वह नेपाल, सिक्किम (1947 वाला) भूटान, तिब्बत, बर्मा, श्रीलंका, जैसे अपने पुराने भू-भाग को अपने साथ लाने में सफल रहता। जैसा कि इन देशों में से कइयों ने उस समय हमारे साथ आने की इच्छा भी प्रकट की थी। जिसे हमने अस्वीकार कर दिया था। क्योंकि हम शोणित के स्थान पर अश्रु बहाने की बात करने लगे थे। यदि हम उस समय अपने सैनिकों के लिए आधुनिकतम हथियार उपलब्ध कराते और चीन को तिब्बत से भगाने के साथ-साथ उसे अपने साथ लाने में सफल रहते तो वियतनाम और जापान जैसे देशों से पिटा हुआ चीन कभी भी तिब्बत को हड़प नहीं सकता था।
वास्तव में चीन की साम्राज्यवादी भूख को हमने ही बढ़ाया जब उसे तिब्बत को खा लेने दिया। आज वही ‘दैत्य’ चीन नेपाल को और भूटान को निगलना चाहता है, साथ ही भारत के अरूणांचल को अपना बताता है और काश्मीर को पाकिस्तान के माध्यम से हड़प लेने की तैयारियां कर रहा है। भारत को घेरकर मारने की पूरी तैयारी यह दैत्य कर चुका है। स्थितियां इतनी गंभीर हैं कि कभी भी तीसरा विश्व युद्घ प्रारंभ हो सकता है। हमारा कहने का अभिप्राय यह है कि ऐसी अहिंसा अहिंसा नहीं होती-जिसका परिणाम भयंकर युद्घ में निकले या जो किसी देश की सम्प्रभुता को ही नष्ट करा दे या जो अपने देश की सम्प्रभुता की रक्षा कराने में ही सफल ना रहे। भारत में गांधी जी की अहिंसा असफल हो गयी। उसने हमें इतना दुर्बल बना दिया कि हम अपने देश की सीमाओं से ही समझौता करने लगे। जबकि आत्मरक्षार्थ और देश की सम्प्रभुता के दृष्टिगत हमारे द्वारा की गयी हिंसा कभी हिंसा नहीं होती है-इस तथ्य को हमने भुला दिया। यदि तीसरा विश्वयुद्घ भारत-चीन और पाकिस्तान की भूमि से आरम्भ होता है तो मानना पड़ेगा कि इसके लिए शोणित के स्थान पर अश्रु बहाने की हमारी भूल महत्वपूर्ण कारण होगी। हमने फुंसियों का उपचार नहीं किया और आज हम फ ोड़े का उपचार करने के लिए तैयारी कर रहे हैं। निश्चय ही इस फोड़े के उपचार में धनहानि के साथ-साथ जनहानि भी होगी। परंतु जब ‘दुर्योधन’ अपनी हठ से पीछे हटने को तैयार ही ना हो तो उस समय महाभारत का साज स्वयं ही सज जाता है। पितामह भीष्म, गुरू द्रोणाचार्य, आचार्य कृप, महात्मा विदुर जैसे लोगों ने उस समय भी दुर्योधन को हस्तिनापुर और युधिष्ठिर को ‘इन्द्रप्रस्थ’ देकर दैत्य का तुष्टिकरण किया था, पर दैत्य का उससे पेट नहीं भरा-उसने युधिष्ठिर को हथियार उठाने के लिए विवश कर भयंकर विनाशलीला रच डाली थी। हमने भी आज के दुर्योधन के पहले तिब्बत हड़पने दिया और फिर अपने अरूणांचल का बड़ा भू-भाग उसे निगल जाने देकर उसका तुष्टिकरण किया। परिणामस्वरूप आज ‘दुर्योधन’ पांडवों को ‘द्रोपदी’ को ही दांव पर लगाने की हद कर रहा है।
आज का भारत शोणित बहाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा है। डोकलाम में चीन आ तो गया है-पर वह आज फंस गया है। उसे पता है कि भारत ने भी उसे घेरने की पूरी तैयारी कर ली है, और यह भी कि आज का भारत भयंकर विनाश झेलकर भी एक इंच भूमि भी उसे देने वाला नहीं है। आज का भारत वह भारत है जो अपने तिब्बत पर ही नहीं-अपितु सारे चीन पर अपना दावा ठोकने का साहस रखता है, क्योंकि सारा चीन कभी आर्यावत्र्त का अंग रहा है। हमारी विदेशनीति और प्रधानमंत्री मोदी का नेतृत्व लोगों का विश्वास जीत चुका है। देश के लोग चीन के शत्रुभाव के दृष्टिगत अपने प्रधानमंत्री के पीछे लामबंद होकर खड़े हो गये हैं। ईश्वर ‘ड्रैगन’ को सद्बुद्घि दे।

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