भारत किस विदेशी सत्ता या आक्रांता का कितनी देर गुलाम रहा? 2

जौनपुर

इलाहाबाद की भांति ही जौनपुर भी अकबर के काल तक अपनी स्वतंत्रता को बचाये रहा पर 1583 में यहां भी मुगल सत्ता के रूप में विदेशी शासन स्थापित हो गया जो 1856 तक जारी रहा । 1856 से 1947 तक यहां ब्रिटिश शासन स्थापित रहा । जबकि सल्तनत काल मे यहां केसरिया फहराता रहा । ग़ुलामी के काल मे भी जौनपुर अपने केसरिया के लिए अपनी केसरिया परंपरा पर चलते हुए अपनी बलिदानी गाथा लिखता रहा । उन बलिदानों को आज का इतिहास चाहे भूल जाए पर हम नही भूल सकते ।
रोहिलखण्ड
यह ऐसा क्षेत्र है जहां अलाउद्दीन खिलजी और औरंगजेब भी अपना प्रवेश नही कर सके थे ।सम्पूर्ण रोहिलखण्ड 1740 तक आजाद रहा । 1801 तक यहां मुस्लिम शासन रहा ,जबकि 1801 से 1947 तकब्रिटीश शासन रहा । कुल 207 वर्ष इस क्षेत्र में विदेशी शासन रहा ।इसे ही इस क्षेत्र का गुलामी का काल कहा जा सकता है । इसे भी यदि 1000 वर्ष गुलाम बताओगे तो समझो अपने पराक्रम से इसे आजाद रखने वाले यहाँ के लोगों के साथ अन्याय करोगे ।
रामपुर
इस नगर ने भी अपनी हिन्दू पहचान 1740 तक बनाये रखी थी । 1740 में यह मुस्लिम आधिपत्य में चला गया था ।1947 तक यब मुस्लिम रियासत रही । कुल 207 वर्ष मुस्लिम रियासत रहा रामपुर आज ऐसे लगता है जैसे सदा से ही मुस्लिम रियासत रहा हो । ऐसा इसलिए है कि हमने इतिहास की जबान काट ली है ।उसे सच नही बोलने दिया गया ।
काशी
काशी हिंदुओं की प्राचीन नगरी है ।यह नगरी 1195 से लेकर 1775 तक मुस्लिम शासन में रही । 1781 में यहां ब्रिटिश शासन स्थापित हो गया था । इस प्रकार कुल 700 वर्ष यब क्षेत्र गुलाम रहा ।परंतु इस काल मे भी अपनी आजादी के लिए संघर्षरत रहा ।
मीरजापुर
नाम से तो लगता है कि यह नगर किसी मुस्लिम शासक ने बसाया होगा ,पर वास्तव में ऐसा है नही । उक्त शोधग्रन्थ के अनुसार यह क्षेत्र पिछले 18000 वर्ष के कालखंड में एक दिन के लिए भी मुस्लिम शासन में नही रहा । 1812 में यहाँ ब्रिटिश शासन स्थापित हुआ । कुल 135 वर्ष यह क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अधीन रहा ।
मथुरा
विश्व नायक श्रीकृष्ण जी की मथुरा का हमारे इतिहास में विशेष स्थान है । यहाँ मुस्लिम शासकों ने हमलावर के रूप में कई बार आक्रमण किये ।पर इसे कोई भी मुस्लिम शासक अपने अधीन नही कर सका । यहाँ 1857से 1947 तक ब्रिटिश शासन अवश्य रहा । मुस्लिम काल मे यहाँ के लोगो ने बड़े बलिदान दिए औऱ केसरिया की रक्षा करते हुए अपने पराक्रम का परिचय दिया । कृष्ण जन्म भूमि पर बनी मस्जिद के लिए हमारे पूर्वजों ने कितने बलिदान दिए थे , यह आज शोध का विषय है । जिसे इतिहास बताता ही नही है । माना कि इतिहास की जबान काट ली गयी है , पर आपके प्रश्न क्यों मौन हो गए ? इतिहास की विकृति को आपने मान्यता दे दी लगती है ।यदि ऐसा है तो समझ लो कि हमारे पूर्वज तो कायर अवश्य हैं ।
हरिद्वार
राजा हरि की नगरी हरिद्वार का भी भारतीय इतिहास में विशेष स्थान है । इस पवित्र नगरी में कभी भी मुस्लिम शासन नही रहा । 1857 से अगले 90 वर्ष यहाँ ब्रिटिश शासन अवश्य रहा ।
मेरठ
मेरठ में भी मुस्लिम शासन कभी नही रहा । यद्यपि यहाँ अनेकों बार मुस्लिम शासकों ने मारकाट मचाई औऱ लाखों हिंदुओं को मौत के घाट उतारा पर सब कुछ सहकर भी मेरठ में केसरिया फहराता रहा । 1857में यहाँ से ही केसरिया की रक्षा के लिए हुंकार भरी गयी और गुर्जर वीर धनसिंह कोतवाल के नेतृत्व में मेरठ क्रांति के लिए मचल उठा । मेरठ की क्रांति भूमि को नमन ।
जो लोग हरित प्रदेश की मांग कर उत्तर प्रदेश का विभाजन चाहते है वे गँगा जमुनी संस्कृति की मूर्खतापूर्ण धारणा में बहकर ऐसा कहते हैं । उन्हें पता नही है कि मेरठ केसरिया क्रांति का प्रतीक है । हमारी मान्यता है कि उत्तर प्रदेश का विभाजन कर हरित प्रदेश के स्थान पर क्रांति प्रदेश बनाकर अपने मेरठ के अनेकोँ क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि दी जाए ।
जिस शोधपूर्ण ग्रंथ के आधार पर हम यह लेखमाला लिख रहे हैं उसका नाम “भारत हजारों वर्षों की पराधीनता एक औपनिवेशिक भ्रमजाल” है ।मध्यप्रदेश हिंदी अकादमी से यह मिल सकती है ।
मेव रियासत:
यहां पर 1260 में मुस्लिम शासन स्थापित हुआ । भारी बलिदानों के उपरांत भी यह क्षेत्र 1857 तक मुस्लिम शासन के अधीन रहा ।अगले 90 वर्ष इसे ब्रिटिश शासन में रहना पड़ा ।
असम:
असम की पवित्र भूमि के छोटे से टुकड़े पर मात्र 24 वर्ष ही मुस्लिम शासन रहा था ।1858 से यहां ब्रिटिश शासन स्थापित हुआ । इस प्रकार 113 वर्ष ही असम विदेशी शासन के अधीन रहा । नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगाने वाले मोहम्मद बिन बख्तियार खि़लजी की सारी सेना को काटकर अपमान का प्रतिशोध लेने वाली भूमि भी असम की ही थी ।वह् तथ्य आज की पीढ़ी के सामने आने चाहिए ।
कूचबिहार:
यहाँ भी मुस्लिम शासन कभी भी नही रहा । 1858 से यहाँ ब्रिटिश शासन अवश्य स्थापित हो गया था ।
नागालैंड:
नागालैंड सदा स्वतंत्रता का आनंद लेता रहा । ब्रिटिश शासन में यहाँ धर्मान्तरण अवश्य हुए पर ब्रिटिश शासन स्थापित नही हो पाया ।
मेघालय , मणिपुर ,त्रिपुरा व सिक्किम:
ये सारे प्रदेश भी अपनी आजादी को सदा बचाये रखने में सफल रहे ।सिक्किम 1850 से ब्रिटिश शासन के अधीन चला गया था ,जबकि शेष प्रान्त ब्रिटिश शासन के अधीन केवल 57 वर्ष ही रहे ।
बंगाल:
यह क्षेत्र 1490 से 1675 तक मुस्लिम शासन के अधीन रहा जबकि ब्रिटिश शासन मात्र 92 वर्ष रहा ।इस प्रकार सारा बंगाल मात्र 185 वर्ष विदेशी शासन के अधीन रहा था । इस काल मे यहाँ धर्मान्तरण कर हिन्दू को समाप्त करने का काम किया गया । कंपनी ने इसे अपनी राजधानी बनाया ।अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए बंगाल को रेल के मध्य5 से दिल्ली से जोड़ा ।जिससे कि भारत के माल को लूटकर स्वदेश ले जाया जा सके ।
बिहार:
बिहार में1560 से 1856 तक 296 वर्ष मुस्लिम शासन व 1856 से ब्रिटिश शासन रहा ।कुल 385 वर्ष यह प्रान्त विदेशी सत्ता के आधीन रहा । शेष कक में बिहार अपनी स्वतंत्रता का उपभोग करता रहा ।अनेक बलिदान देकर आजादी के संघर्ष में अपना महत्वपूर्ण योगदान भी दिया ।
उड़ीसा:
यहां पर 1568 से 1856 तक मुस्लिम सहस7 रहा था ।जबकि 1856 से 1947 तक ब्रिटिश शासन रहा था । इस प्रकार 393 वर्ष यहाँ विदेशी शासन रहा । लेकिन बिहार के कई हिन्दू शासक मुस्लिम शासन में अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने में सफल रहे थे । उड़ीसा की भी यही स्थिति थी ।
छत्तीसगढ:
यहां मुस्लिम शासन कभी नही रहा । 1857 से 1947 तक यह प्रान्त 90 वर्ष ब्रिटिश शासन के अधीन अवश्य रहा । अपने उन सभी राजाओं को , सेनानायको को औऱ वीरों को नमन करना हमारा राष्ट्रीय कत्र्तव्य है जिनके पौरुष के पुन्य प्रताप से देश के कानों भागों में स्वतंत्रता की रक्षा होती रही औऱ केसरिया बड़ी शान से फहराता रहा ।
बस्तर:-
बस्तर पर भी मुस्लिम शासन कभी स्थापित नहीं हो सका। छतीसगढ़ की भांति इस क्षेत्र में भी 1857 से ब्रिटिश शासकों का पदार्पण हुआ और उनके अधीनता में बस्तर को 90 वर्ष व्यतीत करने पड़े।
भोजपाल होमगंगा:-
भोपाल का अपना एक गौरवपूर्ण और वैभवशाली इतिहास रहा है। 17300 वर्ष के हिन्दू इतिहास में इस प्रदेश या क्षेत्र को 15वी शताब्दी से 1856 तक विदेशी मुस्लिम शासक के अधीन रहना पड़ा। भोपाल क्षेत्र के विषय में बताया गया है कि भोपाल गाँव में 240 वर्ष तक और भोपाल क्षेत्र में 128 वर्ष तक विदेशी मुस्लिम शासन रहा। 1857 से यह क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अधीन चला गया।
बुंदेलखंड:-
हिन्दू इतिहास के 18000 वर्षीय इतिहास के कालखंड में यह क्षेत्र एक दिन भी मुस्लिम शासन में नहीं रहा। हाँ, कुछ देशी रियासतों ने मुस्लिम शासन में कभी-कभी कर देने संबंधी संधि अवश्य कीं। इसके उपरांत यह क्षेत्र 1818 से अंग्रेज़ो के शासन के अधीन हो गया।
गोंडवाना:-
यह क्षेत्र भी अपने आप में सौभाग्यशाली रहा और यहाँ के हमारे वीर पूर्वजों ने एक दिन के लिए भी मुस्लिम शासन को अपने यहाँ स्थापित नहीं होने दिया। कुछ दिन के लिए यह क्षेत्र मुस्लिम शासकों का करदाता अवश्य रहा। 1818 में यह क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अधीन चला गया।
ग्वालियर:-
महाकौशल, इंदौर, रीवां, झाँसी, ये सारी रियासतें मुस्लिम शासनकाल में अपनी स्वतन्त्रता को बचाए रखने में सफल रहीं। एक दिन के लिए भी ये रियासतें किसी मुस्लिम सुल्तान या बादशाह के अधीन नहीं रही। महाकौशल की 1818 की तथा झाँसी में 1858 में अंग्रेज़ो से संधि हो गयी। इससे महाकौशल लगभग 130 वर्ष तो झाँसी मात्र 89 वर्ष अंग्रेज़ो की गुलामी में रहा। जबकि अन्य क्षेत्र या तो कर देते रहे या किसी अन्य प्रकार से मुस्लिमों से अपनी प्रतिष्ठा बचाए रखने में सफल रहे। यद्यपि इन प्रांतो में स्वतन्त्रता संग्राम निरंतर जारी रहा।
मालवा:-
अपने 17500 वर्षीय हिन्दू शासन में 1301 से 1731 तक मालवा मुस्लिम शासन के अधीन रहा। 88 वर्ष स्वतंत्र रहकर 1819 में पुन: एक संधि के अंतर्गत ब्रिटिश शासन के अधीन चला गया।
भरतपुर क्षेत्र:-
यहाँ पर कुल 11 राज्य थे। यह क्षेत्र भी मुस्लिम काल में अपनी स्वतन्त्रता बचाने में सफल रहा। 1826 से यह क्षेत्र अंग्रेजों के अधीन हो गया। इस प्रकार कुल 121 वर्ष तक यह प्रदेश अंग्रेजों के अधीन रहा।
धौलपुर:-
नौ गाँव, हमीरपुर, बांसवाड़ा, शिरौही, ढूंगरपुर, किरौली, किशंगढ़, पालमपुर, प्रतापगढ़, और शाहपुर ये सारी रियासतें भी मुस्लिम शासन के अधीन एक दिन भी नहीं रही। परंतु 1857 से एक संधि ब्रिटिश शासन के साथ अलग-अलग इन रियासतों ने की और उसके अंतर्गत इन्होने ब्रिटिश शासन के अधीन जाना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार अधिकतम 90 वर्ष ही ये रियासतें किसी विदेशी शासन के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी रही।
टोंक:-
यह क्षेत्र 1819 से 1947 तक मुस्लिम शासन के अधीन रहा। 1857 से ब्रिटिश सरकार के साथ इस मुस्लिम रियासत की संधि भी हो गयी।
अलवर , जयपुर , आमेर , जोधपुर ,मारवाड़ , जैसलमेर , बीकानेर , उदयपुर , मेवाड़ , चित्तौड़
ये सारे अपना स्वतंत्रता संग्राम चलाते रहे और एक दिन भी मुस्लिम शासन की अधीनता स्वीकार नही की ।जयपुर 1728 में बसाया गया था । इसलिए पूर्व के किसी मुस्लिम शासक के अधीन जाने का तो प्रश्न ही नही था ।अलवर एक दिन भी मुस्लिम शासन के अधीन नही रहा । 1857 से अलवर ब्रिटिश शासन के अधीन अवश्य हो गया था । शेष अन्य रियासतों के साथ मुस्लिम शासकों की संधि हो गयी थीं जिनमे इन राज्यो के सम्मान का ध्यान रखा गया था । इसीप्रकार इन्होंने ब्रिटिश सरकार से भी संधि कर ली थी । 1614 कि एक संधि के अंतर्गत उदयपुर मेवाड़ भी जहांगीर का मित्र हो गया था ।
कोटा, बून्दी,गुजरात के 20 राज्य ,महाराष्ट्र के 15 प्रमुख राज्य , एवं बरार इनमे से कोटा बूंदी 1625 से 1अगले 125 वर्ष मुस्लिम शासन के अधीन रहे , जबकि गुजरात के 20 राज्यों में से अधिकांश पर हिन्दू शासन बना रहा । कुछ हिस्सों में लगभग 325 वर्ष तक मुस्लिम शासन रहा । महाराष्ट्र में भी 350 वर्ष तक मुस्लिम शासन रहा । 1902 से 1947 तक यह प्रान्त ब्रिटिश शासन के अधीन रहा ।
हैदराबाद
यह प्रसिद्ध रियासत 1589 से 1948 तक मुस्लिम शासन के अधीन रही । इस राज्य ने अंग्रेजों से संधि कर ली थी और अपने मुस्लिम स्वरूप को बचाने में सफल रही थी ।
मैसूर
विजयनगर , कर्नाटक , आंध्रप्रदेश ,,, इन क्षेत्रों में भी मुस्लिम शासन स्थापित रहा । इनमे से विजयनगर कभी भी मुस्लिम शासन के अधीन कभी नही रहा । 1857 में यहां ब्रिटिश सत्ता ने अपना परचम लहराया । मैसूर केवल 48 वर्ष ही मुस्लिम शासन के अधीन रहा । इसने भी अंग्रेजों से संधि कर ली थी । कर्नाटक के कुछ हिस्सों में 200 से 250 वर्ष मुस्लिम शासन रहा । यहां 1761 से ब्रिटिश शासन स्थापित हो गया था।
आन्ध्रप्रदेश तो केवल 10 वर्ष के लिए ही मुस5 शासन के अधीन रहा था । 1857 से यहां ब्रिटिश शासन स्थापित हो गया था । कोच्चि, त्रावणकोर इन दोनों क्षेत्रों में मुस्लिम शासन एक दिन भी नही रहा ।1857 से ब्रिटिश शासन अवश्य स्थापित हो गया था।
इस प्रका मित्रो अपने इतिहास को समझने की आवश्यकता है। देश का 50 प्रतिशत से अधिक भूभाग लगभग सदा आजाद रहा । तथाकथित गुलाम भूभाग पर आजादी की लड़ाई चलती रही ।अत: हमारे पूर्वज वीर थे। जिन्होंने देश की गुलामी स्वीकार नही की ,चाहे उसके लिए कितने ही बलिदान दिए । नेहरू गांधी के कारण देश आजाद नही हुआ ,आजाद इसकी रगों में थी , जिसे प्राप्त करके ही इसे रुकना था।

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