भूसुर हैं माता पिता, मत नहीं इन्हें रूलाय

बिखरे मोती-भाग 203

गतांक से आगे….
जैसे मछली के जिंदा रहने के लिए जल आवश्यक है वैसे ही आत्मा के रक्षण और पोषण के लिए शांति, प्रेम, प्रसन्नता अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा आत्मा का हनन हो जाता है। कुकृत्यों के कारण आत्मा का हनन होने पर मनुष्य धनी होने पर भी अपने को निर्धन महसूस करता है, चारों तरफ स्वजनों की भीड़ होने पर भी वह अपने को अकेला महसूस करता है। इसलिए जीवन में कभी भी अपनी आत्मा का हनन न होने दो, उसे पश्चात्ताप की अग्नि में कभी भी न जलने दो। सर्वदा उसे शांति, प्रेम, प्रसन्नता का जीवन जल दो अर्थात मनुष्य को कार्य शुद्घि के साथ-साथ जीवन में भावशुद्घि का भी सर्वदा विशेष ध्यान रखना चाहिए। भौतिक धन के लिए आध्यात्मिक धन-शांति, प्रेम प्रसन्नता और उत्साह को कभी नहीं खोना चाहिए। जितना अधिक से अधिक संभव हो इन्हें मनुष्य को अक्षुण्ण रखना चाहिए।
जरा सोचो, और गम्भीरता से सोचो ही यदि आपके जीवन की सुरभि-शांति, प्रेम, प्रसन्नता उड़ गयी तो आपके पास सिवाय पश्चात्ताप के और बचा ही क्या? -कुछ नहीं। इसलिए इस जीवन की पगडंडी पर पश्चात्ताप के कांटे नहीं शांति, प्रेम, प्रसन्नता के फूल खिलाओ, जिससे कि संसार में तुम्हारा नाम रहे, तुम्हारी कीत्र्ति रहे। आपके चेहरे पर सर्वदा प्रसन्नता खेलती रहे, किंतु याद रखो-प्रसन्नता हमेशा मृदुता में निवास करती है, कड़वाहट में नहीं, इसलिए तुम्हारा हृदय सर्वदा ऋजुता (सरलता, कुटिलता रहित होना) से ओत-प्रोत रहना चाहिए।
धरती के दो फरिश्ते कौन?
भूसुर हैं माता पिता,
मत नहीं इन्हें रूलाय।
धन्य वही संतान है,
जिनके सुर मुस्काय ।। 1137 ।।
व्याख्या :-किंवदन्ति है कि परमपिता परमात्मा ने एक बार उन सभी आत्माओं को बुलाया, जिनका स्वर्ग में रहने का समय पूरा हो गया था। भगवान ने उन आत्माओं से कहा-‘अब मैं तुम्हें मनुष्य की योनि देकर पृथ्वी पर भेज रहा हूं, क्योंकि तुम सबका स्वर्ग में रहने का समय पूरा हो गया है।’ यह सुनकर उन आत्माओं ने भगवान से आग्रह किया कि-‘हे प्रभु! हमें स्वर्ग में ही रहने दीजिए। हमें पृथ्वी पर मत भेजो, वहां हमारा कौन है?’ यह सुनकर भगवान ने उनसे कहा-‘घबराओ नहीं, वहां तुम्हें दो फरिश्ते मिलेंगे, जो तुम्हारी सेवा-सुश्रुषा का ध्यान अपने से भी अधिक रखेंगे। वे तुम्हारे सबसे बड़े रक्षक होंगे, पालक और शिक्षक होंगे। यहां तक कि चिकित्सक और मार्गदर्शक होंगे। इतना ही नहीं-पूरी पृथ्वी पर वे ही तुम्हारे सच्चे साथी और हिमायती होंगे। वे इतने उदार और करूणा से भरे होंगे कि तुम्हारी आंखों में आंसू की तो बात क्या, वे तुम्हारे चेहरे को कभी उदास भी नहीं देख सकेंगे। यदि कभी सहसा ऐसा हुआ तो तुम्हारी खुशी के लिए अपना खाना-पीना तक छोड़ देंगे और तुम्हारी समस्या का समाधान करेंगे। वे तुम्हें जिंदा रखने के लिए रूपया पैसा ही नहीं, अपितु अपना खून तक दे देंगे। यहां तक कि तुम पर विपत्ति आने पर वे अपना जीवन का भी बलिदान दे देंगे। वे स्वयं अभाव में रह लेंगे, मगर तुम्हारी हर आवश्यक आवश्यकता को पूरा करेंगे। वे अपनी इच्छाओं को कुचल देंगे मगर तुम्हारी प्रत्येक जिम्मेदारी को सहर्ष निभाएंगे। वे तुम्हारे बचपन में अपना बचपन देखेंगे। वे तुम्हें बड़े अरमानों और नाजो से पालेंगे। वे स्वयं गीले में सो लेंगे मगर तुम्हें सूखे में सुलाएंगे।’ क्रमश:

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