मौलाना अबूल कलाम आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण नेता रहे। वह नेहरू, गांधी और पटेल की तिक्कड़ी में से नेहरू के अधिक निकट थे, गांधीजी को पसंद करते थे, और पटेल को समझने का प्रयास करते थे। उन्होंने भारत के स्वाधीनता संग्राम को लेकर एक पुस्तक लिखी, जिसका नाम था-‘आजादी की […]
Author: डॉ॰ राकेश कुमार आर्य
लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है
क्या कहते हैं विदेशी विद्वान हमारे विषय मेंभारतीयों के विषय में प्रो. मैक्समूलर ने लिखा है:-‘‘मुस्लिम शासन के अत्याचार और वीभत्सता के वर्णन पढक़र मैं यही कह सकता हूं कि मुझे आश्चर्य है कि इतना सब होने पर भी हिंदुओं के चरित्र में उनके स्वाभाविक सदगुण एवं सच्चाई बनी रही।’’यहां मैक्समूलर ने मुस्लिम अत्याचारों की […]
पिछले पृष्ठों पर हमने शाहिद रहीम साहब का उद्घरण प्रस्तुत किया था, जिसमें उन्होंने भारत के आर्यावत्र्तीय स्वरूप का उल्लेख किया है। अपने अतीत के गौरवमयी पृष्ठों के आख्यान के लिए उनका वह उद्घरण बड़ा ही अर्थपूर्ण और तर्कपूर्ण है। उनके इस तथ्य की पुष्टिके लिए मनुस्मृति (1.2.22.29) का यह श्लोक भी ध्यातव्य है- आ […]
1947 ई. के जम्मू-कश्मीर राज्य की सीमाओं का निर्माण उससे सही सौ वर्ष पूर्व हुआ था, जब अमृतसर की संधि के अंतर्गत अंग्रेजों ने जम्मू-लद्दाख के शासक महाराजा गुलाब सिंह को कश्मीर घाटी को अपने राज्य में मिला लेने की सहमति दे दी थी। आज के पाक अधिकृत कश्मीर और भारतीय कश्मीर को मिलाकर देखने […]
प्रसिद्घ इतिहासकार एच. जी. वैल्स ने कहा है कि-‘‘शिक्षा समाज के हित का एक सामूहिक कार्य है, केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नही है। मानव इतिहास शिक्षा और विनाश के बीच होने वाली दौड़ है।’’इस इतिहासकार का यह कथन विचार करने योग्य है कि मानव इतिहास शिक्षा और विनाश के बीच होने वाली दौड़ है। भारत […]
भारत में न्याय के विषय में विभिन्न नीति-वाक्यों की रचना की गयी। जिनसे कई मुहावरों का भी निर्माण हो गया। यदि इन नीति-वाक्यों को या मुहावरों के ध्वंसावशेषों को एक साथ जोडक़र देखा जाए तो न्याय के विषय में हमारे ऋषि पूर्वजों का बहुत ही उत्तम चिंतन उभरकर सामने आता है। वैसे न्याय के भी […]
संसार में दो प्रकार का ज्ञान मिलता है-एक है नैसर्गिक ज्ञान और दूसरा है नैमित्तिक ज्ञान। नैसर्गिक (निसर्ग अर्थात प्रकृति इसी शब्द से अंग्रेजी का ‘नेचर’ शब्द बना है) ज्ञानान्तर्गत आहार, निद्रा, भय और मैथुन आते हैं, जबकि नैमित्तिक ज्ञानान्तर्गत संसार के प्राणियों के संसर्ग और संपर्क में आने से मिलने वाला ज्ञान सम्मिलित है। […]
भारत विधि का जन्मदाता राष्ट्र रहा है। भारत की विधि व्यवस्था का मूल स्रोत शांति है, और अंतिम लक्ष्य भी शांति है। कहने का अभिप्राय है कि विधि वही उत्तम मानी जाती है जो शांति से उत्पन्न हो, शांति के लिए स्थापित हो और शांति प्राप्त कराने में सहायक हो। अब प्रश्न ये आता है […]
दिल्ली ने भारत के उत्थान-पतन के कई पृष्ठों को खुलते और बंद होते देखा है। कई राजवंशों ने यहां लंबे समय तक शासन किया, पर समय वह भी आया कि जब उनका इतिहास सिमट गया और उनके सिमटते इतिहास केे काल में ही किसी दूसरे राजवंश ने दिल्ली की धरती पर आकर अपने वैभवपूर्ण उत्थान […]
आजकल संपूर्ण विश्व को एक ग्राम (ग्लोबल बिलेज) कहने का प्रचलन बड़ी तेजी से बढ़ा है। विश्व में इस समय बाजारीकरण का वर्चस्व है और एक देश का उत्पाद दूसरे देश में बड़ी सहजता से उपलब्ध हो जाता है। थोड़ी सी देर में आज आप हवाई यात्राओं से विश्व के किसी भी कोने में पहुंच […]