आज हमें देश के सामने खड़ी चुनौतियों के नये -नये स्वरूपों पर चिंतन करना है। प्रमादी, आलसी, निष्क्रिय होकर किसी ‘अवतार’ की प्रतीक्षा में नहीं बैठना है, अपितु क्रियात्मक रूप में कार्य करना है। क्रियात्मक रूप में जिसका वर्तमान सो जाता है, उसका भविष्य उजड़ जाया करता है। इसलिए हमें सोना नहीं है। हमें कर्मठता के साथ राष्ट्र की समस्याओं का समाधान खोजना है।
आज देश के हिंदू जनमानस के अंदर भारत में अगर कुछ चेतना है तो उसका कारण सिर्फ यहां हिंदू को जगाने वाली ‘आर्यसमाज’ और ‘हिन्दू स्वयंसेवी संगठनों’ का अस्तित्व में होना है, इनकी प्रेरणा राष्ट्रचेतना को जगाने का सशक्त माध्यम बनना ही चाहिए, जिससे बहुत बड़े स्तर पर हिंदू के भीतर का राष्ट्र कुलबुला रहा है। करवट ले रहा है। यह स्थिति भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए एक शुभ संकेत है कि आज देश का युवा अपनी अतीत की विरासत की गौरवमयी परम्पराओं को समझने और उन्हें अपनाने के लिए आतुर है।
मार्ग कांटों भरा है
विषम परिस्थितियां हैं और रास्ता भी विषम है। किंतु मार्ग भले ही कंटकाकीर्ण हो, हमें निराश नहीं होना है। कांटों भरा रास्ता ही तो हमारे साहस, धैर्य और संयम की कसौटी है, हम स्वयं देख लें इस कसौटी पर स्वयं को कसकर और अनुमान लगा लें कि हम इसमें कितने खरे उतरते हैं, अथवा निष्फल हो जाते हैं? परिस्थितियां कितनी ही विषम क्यों न हों परंतु इस्लाम और ईसाइयत के उस काल की बराबर विषम नहीं है, जिसमें-
लाखों लोगों का नरसंहार करने का पैशाचिक निर्णय अथवा आदेश मिलते ही भारतीयों को गाजर-मूली की भांति काट दिया जाता था।
ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्घ आंखें उठाकर देखने मात्र का दण्ड होता था-फांसी।
अपना प्यारा भारतीय धर्म उस घोर निराशा-निशा से यदि उबर सकता है तो आज के इस संक्रमण- काल से भी अवश्य उबरेगा, ऐसा हमारा दृढ़ विश्वास है। जब विदेशी शोषक-शासकों का अंत किया जा सकता है तो अंत इन ‘देशी शोषकों’ का भी होगा। हम भारतीय चुनौतियों को पहचानते भी हैं, और उनसे जूझने का उपाय भी जानते हैं।
आवश्यकता मात्र सोये भारत को पुन: जगाने की है। सिंह को उसके शौर्य की अनुभूति कराने की है। जिस दिन यह ‘शेर’ जाग जाएगा उस दिन वन के पंछी जान बचाते फिरेंगे। बस! नवयुवकों के करवट लेने की देर है। अत: सोये नवयुवकों को जगाने का प्रबंध करें।
नवयुवक जागे नहीं और अपने राष्ट्रधर्म को जाने नहीं-इसलिए उसे गहरी नींद में सुलाये रखने का समुचित प्रबंध हमारी वर्तमान सरकार ने कर रखा है, जैसे आज उसे भ्रमित किया जा रहा है-
पश्चिम की भौतिकवादी चकाचौंध में।
अश्लील नृत्य और फिल्मों में।
इतिहास की गलत जानकारी देकर।
शिक्षा को संस्कार शून्य व निरर्थक बनाकर।
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर।
हिंदू सहिष्णुता के नाम पर, आदि-आदि।
रचनात्मक सोच और सृजनशील मनोवृत्ति के लोगों के लिए नवभारत के निर्माणार्थ ये सारे तथ्य एक चुनौती हैं। इन सभी बिंदुओं ने भारत के राजनीतिक परिवेश को जहां दुर्गंधित किया हुआ है-वहीं एक ललकार भी उत्पन्न कर दी है। राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक इन सभी क्षेत्रों में। इस ललकार को और मौन आह्वान को बहुत से कान हैं-जो सुन रहे हैं। जिन-जिन कानों से ये मौन आवाह्न सुना जा रहा है, उन्हीं हृदयों में एक चिंगारी भी धधक रही है। बहुत से कानों का इस मौन आह्वान को सुनना और हृदयों में चिंगारी का धधकना एक शुभ संकेत है। ऐसी परिस्थिति को भारत के लिए शुभ माना जा सकता है कि भारत की आत्मा निश्चित रूप से अपने भविष्य के प्रति सचेत, सचेष्ट और क्रियाशील बनी रहेगी। समाज में ऐसे सचेष्ट और क्रियाशील लोगों का कभी भी बहुमत नहीं हुआ करता है, अपितु समाज में निश्चेष्ट और निष्क्रिय लोगों का बहुमत हुआ करता है।
(लेखक की पुस्तक ‘वर्तमान भारत में भयानक राजनीतिक षडय़ंत्र : दोषी कौन?’ से)

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