हज़ारों-लाखों लोगों के जीवन पर जीवाणुओं का जान लेवा आक्रमण होने की बढ़ती सम्भावना के उत्तरदायी तब्लीगी मरकज को सील न किया जाना क्या विश्व की कोई न्यायायिक व्यवस्था उचित ठहराएगी? इसके आयोजकों और इसमें सम्मलित होने वाले कट्टरपंथियों पर कठोर दंडात्मक कार्यवाही भारतीय न्यायायिक प्रणाली के अनुसार अवश्यम्भावी होनी चाहिये।तब्लीगी मरकज, निज़ामुद्दीन, दिल्ली में पिछले माह मॉर्च में आये हज़ारों जमातियों ने कोरोना वायरस की आपदा में अपने तुच्छ जिहादी सोच के कारण देश के सामने एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है।
शासन व प्रशासन द्वारा बार-बार चेतावनी देने के उपरांत भी हज़ारों की संख्या में एक ही भवन में एकत्रित होकर कानूनों का खुला उल्लंघन करने वालों ने इसप्रकार अपनी जिंदगी के साथ-साथ देश के करोड़ों लोगों की जिंदगी को भी संकट में डाल दिया है।आज सम्पूर्ण समाज व राष्ट्र इन पापियों के कर्मों को भुगतने के खौफ से आक्रोशित है। वह यह विचार करने को विवश हैं कि क्या इस विश्वव्यापी महामारी की विकट परिस्थितियों में भी कोई ऐसा दुःसाहस कैसे कर सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस्लाम में जिहाद के लिए मानवता के विरुद्ध युद्ध की अनियमित सूची में अब तब्लीगियों ने जैविक शस्त्र के रूप में कोरोना वायरस को भी जोड़ लिया है। जिसमें एकत्रित होना, भीड़ करना, हाथ मिलाना, गले मिलना,थूकना और छींकना आदि से कोरोना के संक्रमण को फैला कर उसको आत्मघाती बम बना दिया है। यह चिंतन करना होगा कि इस सम्मेलन में आये जमातियों ने देश के कोने-कोने में जाकर करोना वायरस को आत्मघाती बम बना कर “जैविक जिहाद” से अपने साथ-साथ सभ्य समाज के जीवन को भी भयंकर संकट में डालने का अपराध क्यों किया है?
क्या कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक जाकर इन तब्लीगियों ने सम्पूर्ण भारत को इस्लास्मिक आतंकवाद से जकड़ने का दुःसाहस किया है?विभिन्न नगरों की मस्जिदों और मदरसों के अतिरिक्त घनी मुस्लिम बस्तियों में छिपकर बचने वाले ये तथाकथित धर्मप्रचारक क्या मानवता के शत्रु नहीं है? प्रशासन से छिपकर भागना इनके अपराधी होने का स्वतः ही प्रमाण दे रहा है। ऐसे छिपते व भागते हुए तब्लीगियों को देश के कोने-कोने में ढूंढ-ढूंढ कर उनका उपचार करने के शासकीय प्रयासों का विरोध करने के लिए उनपर उल्टा आक्रामक होना और महिलाओं के साथ अशलील व्यवहार करने वाले इन तब्लीगी जमातियों को मानवता के शत्रु कहना अनुचित नहीं होगा ?
आज के युग में भी मध्यकालीन अमानवीय व्यवस्थाओं के भरोसे कोई कैसे रह सकता है? यह कितना विरोधाभास है कि इस्लाम की शिक्षाओं में किंतु-परन्तु का कोई स्थान नहीं होता। अतः इनके धर्मगुरुओं का आदेश ही सर्वोपरि होता है जिसको मानने के लिए समस्त जमाती बाध्य होते हैं। आज वैज्ञानिक युग में जब सृष्टि में निरन्तर परिवर्तन हो रहे हैं और मानव ब्रह्माण्ड के अन्य ग्रहों पर निवास करने की ओर बढ़ रहा है, तो ऐसे में मुल्ला,मौलवियों व उलेमाओं आदि का यह दायित्व नहीं है कि वह अपने एकईश्वरवादी समाज को सुरक्षित रखने के लिए उनमें मानवीय गुणों का संचार करें? वे उनमें विभिन्न समाजों के प्रति भरी हुई वैमनस्य व भेदभावपूर्ण घृणित भावनाओं को क्यों नहीं निकालना चाहते?
तब्लीगी मरकज के आयोजक व उसमें भाग लेने वाले विदेशी जमातियों ने वीसा नियमों का पालन न करने का अपराध भी किया है। किसी भी देश में कोई सम्मेलन (कांफ्रेंस) आदि आयोजित की जाती है तो उन आयोजकों के लिए यह आवश्यक होता है कि वह अपने देश के विदेश व गृह मंत्रालय को सम्मेलन में भाग लेने वाले व्यक्तियों के पासपोर्ट की प्रतिलिपि सहित पूरा विवरण भेज कर अनुमति लें। फिर इस अनुमति को उन सभी आने वाले व्यक्तियों को भेजें जिससे वे सब अपने-अपने देश में स्थित दूतावासों या हाई कमीशन से वैध वीसा प्राप्त कर सकें अन्यथा टूरिस्ट वीसा से किसी भी सम्मेलन या गोष्ठी आदि में भाग लेना अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार पूर्णतः अवैध है। इसप्रकार भी तब्लीगी मरकज निज़ामुद्दीन में आने वाले विदेशी तब्लीगी जमातियों ने टूरिस्ट वीसा पर आकर अपराध किया है।अतः इन विदेशी तब्लीगियों पर व इस तब्लीगी मरकज के आयोजकों पर आवश्यक वैधानिक दंडात्मक कार्यवाही भी होनी चाहिये।
साम्प्रदायिक सद्भाव बिगड़ने के भय से इस्लाम की अत्याचारी जिहादी सोच को कब तक सहन किया जाएगा? इससे गैर मुस्लिम समाज को कितना और कब तक सहिष्णुता के नाम पर उत्पीड़ित किया जाता रहेगा ? क्या ऐसे जानलेवा षडयंत्रों को रचने वाले तब्लीगी जमातियों पर शासन कठोर आपराधिक धाराओं में दंडित करेगा? यह भी बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस षड्यंत्र के केंद्र “तब्लीगी मरकज” के बहुमंजिले भवन को सील करने में इतना विलंब क्यों?

विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी चिंतक व लेखक)
गाज़ियाबाद-201001

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