बिखरे मोती ,: आत्मवान से आप्तकाम कोई बिरला ही होता है –

आत्मवान से आप्तकाम,
विरला हो कोई शूर।
परमधाम की प्राप्ति,
नहीं है उससे दूर॥2495॥

आत्मवान अर्थात् अपनी आत्मा का स्वामी यानि की आत्मानुकुल आचरण करने वाला।

आप्तकाम अर्थात जिसकी सभी इच्छाएँ अथवा कामनाएं पूर्ण हो गई हो, कोई कामना शेष न हो ऐसे साधक को आप्तकाम कहते हैं।

विशेष ‘.शेर’ बुढ़ापे के संदर्भ में:-

कौन कहता है ?
ये बूढे हो चले।
ये तो वो चन्दन है,
जो तुम्हें अपनी खुशबू दे चले॥
जो भी इनकी सेवा करेंगें,
दुआओं से झोली ये उनकी भरेंगें ।इनकी दुआ तुम्हारी पतवार होगी,
यें जिन्दगी की नैया तभी पार होगी॥2496॥

जिसका जैसा स्वभाव होता है,वह वैसा ही रहता है।-

सज्जन सज्जनता करे,
दुर्जन निष्प्रभाव।
दूध पिलाओ नाग को ,
बदले नहीं स्वभाव॥2497॥

मनुष्य की पहचान उसके गुणो से होती है –

लाख फूल यतन पन्ते करें,
फूल रहे गुमनाम ।
लेकिन उसकी खुशबू से,
होती है पहचान ॥2498॥

सोचो, क्या लेकर आए थे और क्या लेकर जाओगे :-

प्रारब्ध लेकर आए थे,
कर्मशिय संग जाय।
कर्म करो ऐसे सदा,
जो बैकुण्ठ दिलाच॥2499॥

विशेष ‘शेर’ बुढ़ापे के संदर्भ में :-

ये बूढ़े नहीं है,
ये वक्त की धरोहर है।
ये वो फरिश्ते हैं,
जो गुलशन के बागवां है।
जर्रे – जर्रे में इनकी,
निहां है इनकी कुरवानियाँ।
तुम्हारी बहबूदी में,
भी है इनकी लहू की निशानियाँ
यकीनन इनकी खिदमत,
ख़ुदा की इबादत है॥
इनकी दुआए ही,
सबसे बड़ी सहादत है॥2500॥

नैतिक साहस के संदर्भ में विशेष ‘शेर’

जिनमें अकेला चलने का,
होंसला होता है।
एक दिन उनके पीछे,
काफ़िला होता है।
क्रमशः

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