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इतिहास के पन्नों से

धनुष और चतुरंगिणी सेना का अर्थ

धनुरनुषंगरणक्षणसंगपरिस्फुरदंगनटत्कटके
कनकपिशंगपृषत्कनिषंगरसद्भटश्रृंगहताबटुके ।
हतचतुरंगबलक्षितिरंगघटद् बहुरंगरटद् बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

अनुषंग का अर्थ साथ होना और धनु तो धनुष है, यहाँ धनु: के अंतिम विसर्ग के साथ संधि के कारण “र” अक्षर आ रहा है। रण के समय (क्षण) उत्तेजना से कांपते अंगों के लिए परिस्फुरद्अंग कहा गया है। कटके का अर्थ कंगन होता है, नट मतलब नृत्य करना। नटत्कटके को दो अर्थों में लिया जा सकता है, एक तो ये कि देवी के हाथ के कंगन भी युद्ध के समय कलाइयों में गोल घूम रहे हैं। दूसरा अर्थ होगा कि जैसे कन्याओं की कलाइयों में कंगन घूमते-नाचते हैं, कुछ वैसे ही देवी के हाथों में अस्त्र घूमते हैं।

कनक सोने का सा रंग और पिशंग भूरा, पृषत्क का अर्थ है बाण या तीर। भूरे रंग का तीर का लकड़ी वाला हिस्सा होता है, और कनक संभवतः पीछे लगे पंख के लिए है। निषंग मतलब तरकश। रसद्भटश्रृंग में श्रृंग तो ऊंचाई यानि चोटी का है, देवी ऊँचे पहाड़ों पर ही कहीं युद्ध कर रही होती हैं, इसलिए। भट योद्धा को कहते हैं, महिषासुरमर्दिनिस्तोत्रम् में ही भटाधिपते शब्द सेनानायकों के अर्थ में भी मिल जायेगा। रसद्भटश्रृंग का पूरा अर्थ हुआ कोलाहल करते योद्धाओं से किसी ऊँची चोटी पर युद्धरत। हताबटुके में बटुक का अर्थ भैरव के अलावा छोटा बालक और बुद्धू (मंद मति) भी होता है। हताबटुके यहाँ मूर्ख राक्षसों का वध करती देवी हुआ।

चतुरंग सेना मतलब जिसमें हाथी, रथ, घोड़े और पैदल चारों तरह के सैनिक हों, इन सबको हत करती देवी; क्षिति का अर्थ नष्ट करना होता है, बलक्षिति यानि जिनके योद्धाओं को हत करने – मारते जाने के कारण, चतुरंग सेना का बल नष्ट होता जा रहा है। यहाँ जो रंग शब्द है उसे अपने रंगमंच में देखा है, जिसमें नाटक के मंच को रंगमंच कहते हैं। चतुरंग सेना के भट युद्ध में पूरी शक्ति लगा रहे हैं और देवी के लिए ये नाटक भर है! घटद्बहुरंग में घटना अर्थात होना, बहुरंग इसलिए क्योंकि चतुरंग सेना में सिर्फ चार – हाथी, घोड़े, रथ और पैदल ही हैं। देवी की सेना में कोई महिष, कोई हंस, कोई बैल तो कोई शव पर भी हैं इसलिए बहुरंग। रटद् मतलब वो भी शोर कर रहे हैं। पिछली बार बटुक अलग अर्थ में है और इस बार बटुक भैरव वाले अर्थ में। एक ही शब्द को दो बार में अलग-अलग अर्थ में प्रयोग करने को कोई अलंकार कहते तो हैं, लेकिन कौन सा वो हमें अभी याद नहीं।

अंत में जो बार-बार “जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते” कहा जाता है उसमें रम्य का अर्थ सुन्दर और कर्पदिनि मतलब जटाधारी। जबतक विस्तार से शब्दों के अर्थ खोजने का प्रयास नहीं किया था, उस समय हम रम्यक को ही एक शब्द मानते थे। छठे श्लोक में देवी रणचंडी स्वरुप में दिखने लगती हैं, ये सौम्य रूप नहीं है। बाकि महिषासुरमर्दिनिस्तोत्रम् के एक-एक श्लोक को देखिये, शब्दों के कितने अर्थ, काव्य का कैसा-कैसा रूप दिखता है, उसमें दृग बदलते ही दृष्टि भी बदलेगी ही!

सवाल पूछने का सही तरीका एक जरूरी चीज़ है | इसे समझना हो तो एक कुख्यात दलहित चिन्तक की एक पोस्ट जिसमे एक भाषाविद ने ईमानदार का संस्कृत प्रयायवाची खोजने की कोशिश की गई है उसे देखना चाहिए | सवाल था की “ईमानदार” का संस्कृत प्रयायवाची नहीं मिल रहा | आदि काल में भारत में ईमानदारी होती ही नहीं थी इसलिए ये शब्द ही नहीं बना कभी !

ये जवाब सच है | मगर पूरा सच नहीं है आधा सच है |

इस आधे सच से भड़के लोगों ने अपने अपने तरीकों से इसका प्रयायवाची निकालने की कोशिश की | नतीजे में भाषाविद ने अपना शब्दों का ज्ञान प्रस्तुत कर दिया | उनका जवाब ये था :

धर्मनिष्ठ, सच्चरित्र, सत्यवादी, निश्छल, पुण्यात्मा जैसे ईमानदार के लिए प्रयुक्त शब्दों को उपसर्ग, प्रत्यय, संधि और समास जैसे साधनों से बनाए गए हैं। इसलिए ये दोयम दर्जे के शब्द हैं। शवपट भी ऐसे शब्दों में से एक है। यह कफन के लिए प्रयुक्त होता है। शब्दों के पर्याय वहाँ की संस्कृति पर निर्भर करता है। अरबी की प्राचीन बोलियों में “ऊँट” और उससे संबंधित शब्दों की संख्या 5744 है। भारत में ऊँट का महत्व नहीं है इसलिए आप ऊँट के 5 पर्यायवाची नहीं बता सकते हैं। भारत देवी- देवता प्रधान देश है। यहाँ शिव के पर्याय 3411, विष्णु के 1676, इन्द्र के 451, कृष्ण के 441, कामदेव के 287, राम के 129, स्कन्द के 161 और गणेश के 141 हैं। देवियों में काली के 900, लक्ष्मी के 191, सरस्वती के 108, सीता के 65 और राधा के 31 नाम हैं। आइसलैंडिक भाषा में द्वीप के लिए सैकडों शब्द हैं पर संस्कृत और हिंदी में ऐसा नहीं है। honest और कफन जैसे शब्दाभावों को आप इस परिप्रेक्ष्य में भी देख सकते हैं।

इस एक जवाब में ही ज्यादातर संस्कृत जानने वालों का जवाब निपट गया | इस सवाल का जवाब देने से पहले पूछना था प्रयायवाची तो हम बता दें लेकिन आपको अपना शब्द जरा समझाना पड़ेगा |

  1. ये शब्द कब बना ? (पक्का नहीं तो लगभग में ही बतायें)
    शब्द जिस समय बना उस समय हिंदी / संस्कृत में उसके लिए क्या शब्द इस्तेमाल होता था ये बताया जा सकता है |
  2. शुरू में इसका क्या मतलब था और कैसे आपके इस शब्द का मतलब इन 1400-1500 सालों में बदलता रहा है ? भाषा में तो शब्दों के मतलब बदलते रहते हैं न ?

इस सवाल का जवाब देते ही बताना पड़ेगा की “ईमान” का मतलब एक अल्लाह और उसकी आसमानी किताब में यकीन करना है | किसी मूर्ती, जीवित या मृत की पूजा जैसे शिर्क नहीं करने, सूअर जैसे जानवरों को खा कर मकरूह नहीं होना, नमाज़ / रोज़े छोड़ने का गुनाह नहीं करना, सिर्फ एक अल्लाह के ऊपर यकीन ना करने का कुफ्र नहीं करना, ये सब ईमानदार के लक्षण हैं | बहुत साल बाद इसके उर्दू में आने के बाद अल तकिय्या के तहत इसका मतलब ऐसा बनाया गया जिस से ये समाज में ज्यादा ग्राह्य हो |
अब ये बताने में भाषाविद की जबान जरा लड़खड़ा जाने की पूरी संभावना है |

  1. किस समय / काल के सन्दर्भ में समानार्थक चाहिए ?

सिर्फ 1400 साल पुरानी भाषा को 5000 साल के आस पास की उम्र वाली भाषा से तौलने की कोशिश की जा रही है ये इस सवाल में बताना पड़ेगा | बेईमानी की जा रही है ये इल्ज़ाम अब चिपकाया जा सकता है भाषाविद महोदय पर |

ऐसा ना करने का नतीज़ा ये हुआ है की भाषाविद ये सिद्ध करने में कामयाब रहे हैं की “आर्जवम” दोयम दर्जे का शब्द है। यह “ऋजु” से बना है। इसका पहला प्रयोग गीता में है और इसके दूसरे प्रयोगकर्ता वाणभट्ट हैं। इसलिए इसका प्रयोग प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में नहीं है।

इस तरह “आर्जवम” को “ईमानदार” का प्रयायवाची ना सिद्ध करने में भाषाविद कामयाब रहते हैं |

खून की गर्मी दिखाने के लिए मूर्खतापूर्ण तरीके से कूद पड़ने की बजाय पहले पानी जांच लें | आप Debate में प्रशिक्षित मीडियाकर्मियों और भाषाविदों से निपटने की कोशिश कर रहे हैं | जिस क्षेत्र में आप प्रशिक्षित नहीं है वहां लड़ने से पहले लड़ने की योग्यता हासिल करने में ज्यादा समझदारी है |

झूठ का पोल खोलने की संभावना भी बढती है |
✍🏻 आनन्द कुमार जी की पोस्टों से संग्रहित

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