तारामंडल का सबसे रोशन तारा ध्रुव तारा

डॉ. राधे श्याम द्विवेदी
दृढ़ अडिग अटल सर्वोच्च स्थित ध्रुव तारा:-
ध्रुव तारा तारामंडल का सबसे रोशन तारा है. पौराणिक कहानी में एक एक छोटा सा साधारण बालक अपने लगन तप और साधना के बाल पर ध्रुव तारा बनता है. हिंदू धर्म में सूर्य, चंद्रमा, आकाश, तारे, नदी, पर्वत आदि सभी से पौराणिक और आध्यात्मिक कहानियां जुड़ी हुई है. ध्रुव तारा का वर्णन भी पौराणिक कथाओं मे मिलता है. जिसमें बताया गया है कि कैसे साधारण सा बालक एक महान दृढ़ और अडिग ध्रुव तारा बन जाता है.
सब से चमकदार तारा :-
आसमान पर एक सब से चमकदार तारा ध्रुव तारा होता है, उसे ध्रुव तारा कहते हैं | राजा बनने का अधिकार छीने जाने से एक विचलित बच्चे ने, लड़ाई या युद्ध का रास्ता अपनाने की जगह, एक ऊंचा मुकाम हासिल करने के लिए घोर तपस्या की | उस के त्याग और बलिदान के नतीजे में उसे आसमान पर सब से ऊंचा स्थान मिला ।कहते हैं, यह स्थान सूर्य या चंद्रमा से भी ऊपर है।ध्रुव तारे का व्यास सूर्य से 30 गुना अधिक होता है।इसका भार भी यह सूर्य से 7.50 गुना अधिक है. इसकी चमक सूर्य से 22 सौ गुना अधिक होती है. ध्रुव तारा पृथ्वी से लगभग 390 प्रकाशपर्व की दूरी पर है.उत्तरी पोल यानी ध्रुव से यह एक जगह स्थिर प्रतीत होता है.
नारद जैसे गुरु:-
ध्रुव अपने घर से तपस्या के लिए जा रहे थे रास्ते में उन्हें देवर्षि नारद मिले उन्होंने ध्रुव को”ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”का जाप कर के भगवान विष्णु की तपस्या करने को कहा था।
घोर तपस्या:-
बताया जाता है कि ध्रुव जी महाराज नारद मुनि के कहने पर यहां आए थे, यहां आकर उन्होंने यहां 5 वर्ष की अवस्था में तपस्या की थी. ध्रुव ने नारद जी की बात मानकर एक पैर पर खड़े होकर छह माह तक कठोर तप किया। बालक की तपस्या देख भगवान विष्णु ने दर्शन देकर उसे उच्चतम पद प्राप्त करने का वरदान दिया। इसी के बाद बालक ध्रुव की याद में सर्वाधिक चमकने वाले तारे को नाम ध्रुवतारा दिया गया। ध्रुव के साथ सात ऋषि मुनियों को भी मिला आकाश में स्थान मिला।
निष्काम भक्ति के प्रतीक है ध्रुव और प्रह्लाद:-
ध्रुव ने कहा था – ‘मुझे मेरे पिता की गोद में बैठने नहीं दिया जाता है. मेरी मां कहती है आप इस सृष्टि के पिता हैं. मैं आपकी गोद में बैठना चाहता हूं.’ भगवान नारायण बोले- ‘आकाश ही मेरी गोद है मैं तुम्हे हमेशा के लिए अपनी गोद में स्थान देता हूं.’ इसके बाद भगवान नारायण ने ध्रुव को अपनी गोद में बिठाया और मरणोपरांत ध्रुव तारा बनने का वरदान दिया.भगवान ने ध्रुव को ध्रुव लोक का स्वामी बनाया, उन्हें ध्रुव तारे के रूप में आकाश में स्थान दिया। ध्रुव ने कठोर भक्ति की थी , उनकी भक्ति को देख भगवान नारायण प्रसन्न हुए और उन्होंने ध्रुव को वरदान दिया कि प्रलय भी उसका कुछ न बिगाड़ सकेगा। इसी के साथ भगवान नारायण ने उन सात ऋषिमुनियों को भी ध्रुव की रक्षा के लिए आसमान में उसके आसपास स्थान दिया, जिन्होंने ध्रुव के साथ तपस्या की. ध्रुव के दृढ़ मनोबल के कारण ही आसमान में ध्रुव तारा स्थिर है और कभी भी अपनी जगह से नहीं हिलता.
शाइनिंग पोल स्टार:-
अंग्रेजी में इसे ‘पोल स्टार’ कहा जाता है. आसमान में उत्तर की ओर दो सबसे चमकता हुआ तारा दिखता है, उसे ध्रुव तारा कहा जाता है.ध्रुव तारा खगोलीय गोले के उत्तरी ध्रुव के निकट स्थित है. इसलिए दुनिया के अधिकतर जगहों से ध्रुव तारा पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के ऊपर स्थित दिखाई देता है.
विशाल आकार:-
पृथ्वी से आपको ध्रुव एक छोटा सा तारा प्रतीत होता होगा, लेकिन यह सूर्य से भी बड़ा है.ध्रुव तारे का व्यास सूर्य से 30 गुना अधिक होता है।इसका भार भी यह सूर्य से 7.50 गुना अधिक है. इसकी चमक सूर्य से 22 सौ गुना अधिक होती है. ध्रुव तारा पृथ्वी से लगभग 390 प्रकाशपर्व की दूरी पर है।
ध्रुव कृत भागवत स्तुति का प्रथम श्लोक इस प्रकार है –
ध्रुव उवाच :
योऽन्त: प्रविश्य मम वाचमिमां प्रसुप्तां सञ्जीवयत्यखिलशक्तिधर: स्वधाम्ना ।
अन्यांश्च हस्तचरणश्रवणत्वगादीन्
प्राणान्नमो भगवते पुरुषाय तुभ्यम् ।। 1।।
ध्रुव महाराज ने कहा : हे भगवन्, आप सर्वशक्तिमान हैं। मेरे अन्त:करण में प्रविष्ट होकर आपने मेरी सभी सोई हुई इन्द्रियों को—हाथों, पाँवों, स्पर्शेन्द्रिय, प्राण तथा मेरी वाणी को— जाग्रत कर दिया है। मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ।

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