विवेक देवराय के भारतीय संविधान पर दिए गए विचार

नीरज कुमार दुबे

आत्मनिर्भरता की राह पर तेजी से बढ़ता भारत अब गुलामी काल की हर निशानी मिटाने को आतुर है। अंग्रेज शासन काल में बने कानून बदले जा रहे हैं, गुलामी के प्रतीक चिह्नों की जगह भारतीय संस्कृति, सभ्यता और इतिहास के प्रतीक अब हर जगह दिखने लगे हैं। यही नहीं, अंग्रेजों द्वारा बनाये गये संसद भवन की जगह भारत को खुद का बनाया हुआ अत्याधुनिक संसद भवन भी मिल गया है। साथ ही कुछ लोग तो यह भी मांग कर रहे हैं कि भारत के नाम से इंडिया हटाया जाये क्योंकि यह नाम अंग्रेजों ने दिया था। यह मांग करने वालों का कहना है कि देश को उसके असली और प्राचीन नाम भारत से ही बुलाया जाये। अब इससे भी आगे जाते हुए प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने अपने हालिया आलेख में संविधान को एक तरह से नये सिरे से लिखे जाने की वकालत कर डाली है जिस पर राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है।

बिबेक देबरॉय ने क्या लिखा?

हम आपको बता दें कि अपने आलेख में बिबेक देबरॉय ने लिखा है, “हमारा मौजूदा संविधान काफी हद तक 1935 के भारत शासन अधिनियम पर आधारित है। इस तरह से, यह औपनिवेशिक विरासत भी है।” उन्होंने लिखा है कि 2002 में संविधान की समीक्षा के लिए गठित एक आयोग की रिपोर्ट आई थी लेकिन यह पूरे मन से किया गया प्रयास नहीं था। अपने आलेख में बिबेक देबरॉय कहते हैं कि कानून सुधार के कई पहलुओं की तरह, यहां और वहां कोई बदलाव काम नहीं करेगा। हमें पहले सिद्धांत से शुरुआत करनी चाहिए, जैसा संविधान सभा की बहसों में है। उन्होंने अपने आलेख में सवाल किया है कि भारत को 2047 के लिए किस संविधान की जरूरत है? देबरॉय ने कहा, “हम जो भी चर्चा करते हैं उसका अधिकांश हिस्सा संविधान के साथ शुरू और समाप्त होता है। उन्होंने लिखा है कि कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा… हमें पहले सिद्धांत से शुरू करना चाहिए, यह पूछना चाहिए कि प्रस्तावना में इन शब्दों- समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, स्वतंत्रता और समानता- का अब क्या मतलब है। उन्होंने लिखा है कि हम लोगों को खुद को एक नया संविधान देना होगा।

रंजन गोगोई के विचार

हम आपको बता दें कि बिबेक देबरॉय के इस आलेख से पहले हाल ही में संसद के मानसून सत्र में राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रंजन गोगोई ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा था कि मेरा विचार है कि संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत का एक चर्चा किए जाने योग्य न्यायशास्त्रीय आधार है। हालांकि पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के इस बयान को प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने महज एक निजी विचार करार दिया था लेकिन कांग्रेस ने कहा था कि भाजपा को इस विचार का स्पष्ट रूप से विरोध करना चाहिए, अन्यथा यह स्पष्ट हो जाएगा कि पार्टी ने अब हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों को नष्ट करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

राजनीतिक विवाद शुरू

अब जब, बिबेक देबरॉय का आलेख सामने आया है तो विरोध में उतरते हुए कांग्रेस ने कहा है कि बिबेक देबरॉय ने उस संविधान को बदले जाने पर जोर दिया है जिसके निर्माता बीआर आंबेडकर थे। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने बिबेक देबरॉय की टिप्पणियों का जिक्र करते हुए कहा, “यह हमेशा संघ परिवार का एजेंडा रहा है। सावधान रहें!” जयराम रमेश तो सोशल मीडिया पर सवाल उठा कर किनारे हो गये लेकिन अब लोग तमाम तरह की टिप्पणियां सोशल मीडिया पर कर रहे हैं।

भारतीय संविधान की ताकत

बहरहाल, देखा जाये तो सभी को यह समझने की जरूरत है कि बिबेक देबरॉय या किसी अन्य व्यक्ति के विचार व्यक्त करने से देश का संविधान नहीं बदल जायेगा। जब देश की जनता चाहेगी तभी कोई सरकार संविधान को बदलने की हिम्मत दिखा पायेगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि हम सभी भारतीयों के लिए हमारा संविधान ही सबसे बड़ा ग्रंथ है, सबसे बड़ा पथ प्रदर्शक है और यहां तक कि जीवन जीने का आधार भी है। भारत के संविधान में हर भारतीय की गहरी आस्था और सम्मान है। देखा जाये तो, हमारे पड़ोसी देशों में लोकतंत्र मखौल बन कर रह गया और दुनिया के बड़े से बड़े देशों का भी लोकतंत्र खतरे में पड़ गया, लेकिन यह हमारे संविधान की ताकत ही है कि भारतीय लोकतंत्र का कोई बाल भी बांका नहीं कर सका। धुर विरोधी पार्टी के जीतने पर भी हमारे यहां सत्ता हस्तांतरण में पांच मिनट की भी देरी कभी नहीं हुई। हालांकि आपातकाल में संविधान को ताक पर रखा गया लेकिन जनता ने कांग्रेस को उसकी सजा भी तत्काल ही दे दी थी।

लेकिन दुनिया भर की तमाम खासियतों के बावजूद हमें इन प्रश्नों के उत्तर जरा खुद से पूछ कर देखने चाहिए-

1- क्या देश और समय की आवश्यकताओं के हिसाब से संविधान में संशोधन या उसका पुनर्लेखन नहीं किया जाना चाहिए?

2- यदि देश का संविधान नये सिरे से लिखा भी जाता है तो उस पर आपत्ति क्यों होनी चाहिए?

3- क्या हमारी संविधान सभा ने कहीं पर भी यह लिखा है कि संविधान का पुनर्लेखन नहीं होगा?

4- दुनिया में हाल के वर्षों में जब कई लोकतांत्रिक देशों ने अपने संविधान में आमूलचूल बदलाव किये या उन्हें नये सिरे से लिखा तथा वह और तेजी से आगे बढ़ रहे हैं तो भारत को ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए?

5- इसमें कोई दो राय नहीं कि श्रद्धेय डॉ. बीआर अंबेडकर के नेतृत्व में संविधान सभा ने विश्व का उत्तम संविधान भारत को दिया जिससे हमारे लोकतंत्र की नींव मजबूत हुई लेकिन क्या इसे और उत्तम बनाने के प्रयास नहीं किये जाने चाहिए?

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