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आज का चिंतन

कत्लेआम पर वेद और क़ुरान की गवाही

-आर्यवीर आर्य पूर्वनाम मुहम्मद अली

(शास्त्रार्थ महारथी अमर स्वामी जी के ट्रैक्ट जिहाद के नाम पर कत्लेआम नामक ट्रैक्ट पर आधारित)
सोशल मीडिया के माध्यम से एक वीडियो मेरे देखने में आया। इसमें एक मोमिन यह दिखा रहा है कि वेदों में कत्लेआम, मारकाट, हिंसा का सन्देश दिया गया हैं। मोमिन का कहना है कि जो लोग क़ुरान पर हिंसा का आरोप लगाते है। वे कभी अपने वेदों को नहीं देखते। यह मोमिन अथर्ववेद और ऋग्वेद के कुछ उदहारण देकर अपनी बात को सिद्ध करने का प्रयास कर रहा हैं। इसके वीडियो को देखकर एक ही निष्कर्ष निकलता है कि उल्लू को दिन में न दिखे तो यह सूर्य का दोष नहीं हैं। वेद रूपी ईश्वरीय ज्ञान को मानव कृत क़ुरान की रोशनी में देखने कुछ ऐसा ही हैं।
आईये वेद और क़ुरान में दिए गए सन्देश के अंतर को समझने का प्रयास करे।
मोमिन श्री क्षेमकरण त्रिवेदी जी के वेदभाष्य से अथर्ववेद 12/5/62 का उदहारण देते हुए कहता है कि ,” तू वेदनिंदक को काट डाल, चीर डाल,फाड़ दे, जला दे, फूंक दे, भस्म कर दे। ”
अथर्ववेद 12/5/68 का उदहारण देते हुए कहता है कि “वेद विरोधी के लोमों को काट डाल, उसके मांस के टुकड़ों की बोटी बोटी कर दे, उसके नसों को ऐंठ दे, उसकी हड्डियां मिसल कर, उसकी मिंग निकाल दे, उसके सब अंगों को, जोड़ों को ढीला कर दे।”
इन वेदमंत्रों के आधार पर मोमिन वेदों का हिंसा का समर्थक सिद्ध करने का प्रयास कर रहा है। जो शंका मोमिन ने उठाई है। यह कोई नवीन शंका नहीं हैं। पिछले 125 वर्षों में अब्दुल गफूर, सन्नाउल्लाह अमृतसरी, मौलवी असमतउल्लाह खां आदि ने यह शंका अनेक बार उठाई हैं। आर्यसमाज के विद्वानों ने उसका यथोचित उत्तर भी समय समय पर दिया है।
मोमिन के चिंतन में गंभीरता की कमी देखिये जो वह यह न देख पाया कि वेदमंत्र वेद निंदक के विषय में ऐसा कह रहे हैं। वेद की आज्ञा धर्म का पालन है। धर्म क्या है? सार्वजनिक पवित्र गुणों और कर्मों का धारण व सेवन करना धर्म है। स्वामी दयानंद के अनुसार धर्म की परिभाषा -जो पक्ष पात रहित न्याय सत्य का ग्रहण, असत्य का सर्वथा परित्याग रूप आचार है। उसी का नाम धर्म और उससे विपरीत का अधर्म है। साधारण भाषा में सत्य बोलना, ईश्वर की पूजा करना, शिष्टाचार, सदाचार यह धर्म है और चोरी,हत्या, असत्य भाषण, बलात्कार, अत्याचार आदि करना अधर्म है। अब मोमिन साहिब ही बताये कि क्या चोरी, लूट-पाट, हत्या, बलात्कार, हिंसा आदि करने वाले को दंड नहीं मिलना चाहिए? अवश्य मिलना चाहिए। वेद यही तो कह रहा है। फिर भी आपके पेट में दर्द हो रहा है।
चलो एक अन्य तर्क देते है। वैदिक काल में कोई मत-मतान्तर, मज़हब आदि कुछ नहीं था। केवल वैदिक धर्म था। इसलिए इन वेद मन्त्रों को इस प्रकार से लेना कि वेदों में ये मुसलमानों के लिए हैं। केवल आपकी अज्ञानता है। वैदिक काल में इस्लाम ही नहीं था तो इस्लाम के मानने वालों पर अत्याचार की बात करना केवल ख्याली पुलाव है।
एक अन्य महत्वपूर्ण बात समझे। वेदों की शत्रु के नाश की आज्ञा किसके लिए हैं। वेदों की आज्ञा राजा, शासक, प्रशासन, न्यायाधीश के लिए हैं। वेद उन्हें अपने कर्त्तव्य निर्वाहन की आज्ञा दे रहा है। क्या भारतीय संविधान में आज किसी अपराधी को अपराध के लिए दंड देने, जेल भेजने, फांसी लगाने का विधान नहीं हैं? अवश्य है। तो क्या आप कभी यह कहते है कि हमारा संविधान हिंसा को बढ़ावा देता हैं। नहीं। फिर वेदों पर यह आक्षेप लगाना क्या आपकी मूर्खता नहीं है? इसी प्रकार से वेद गौहत्या करने वाले को सीसे की गोली से भेदने का आदेश देते हैं। पर यह सन्देश भी राजा या शासक के लिए हैं। गौ जैसे कल्याणकारी पशु के हत्यारे को राजा दण्डित करे। इस सन्देश में भला क्या गलत है?
अब जरा मोमिन अपने घर भी झांक ले। एक कहावत है। जिनके घर शीशे के होते है। वो दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकते। आपकी क़ुरान की कुछ आयतों में खुदा की आज्ञा देखिये-
और जब इरादा करते हैं हम ये कि हलाक़ अर्थात क़त्ल करें किसी बस्ती को, और हुकुम करते हैं हम दौलतमंदों को उसके कि, पस! नाफ़रमानी करते हैं, बीच उसके! बस। साबित हुई ऊपर उसके मात गिजब की, बस! हलाक करते हैं हम उनको हलाक करना। -कुरान मजीद सूरा 7, रुकू 2, आयत 6
इसकी अगली आयत देखिये-
और बहुत हलाक किये हैं हमने क्यों मबलगो? तुम्हारा खुदा तो जब उसे किसी बस्ती के हलाक करने का शौक चढ़ आये तब उसमें रहने वाले दौलतमंदों को नाफ़रमानी करने का अर्थात आज्ञा न मानने वाले का हुक्म दे! या यूँ कहते हैं कि इसके इस हुक्म की तालीम करें की नाफ़रमानी करो तो उन्हें और उनके साथ बस्ती में रहने वाले बेगुनाहों, मासूम बच्चों तक को अपना शोक पूरा करने के लिए हलाक अर्थात क़त्ल करें।
स्वयं की रक्षा करना और अपनी सामाजिक व्यवस्था की रक्षा करने का नियम सामान्य ईश्वरीय नियम है। यह संसार के हर जीव का अधिकार है। और क़ुरान सूरा माइदा आयत 45 में क्या लिखा है। प्रमाण देखिये-
हमने उन लोगों के लिए यह हुकुम लिख दिया कि- जान के बदले जान, आंख के बदले आंख, नाक के बदले नाक, कान के बदले कान, दाँत के बदले दाँत और सब जख्मों का इसी तरह बदला हैं।
अब वेद ने शत्रु के संहार की अनुमति दे दी तो क्या गज़ब कर दिया। क्या कोई मुसलमान यह कहेगा कि अपनी रक्षा करना क्या कोई अपराध है। नहीं। कोई समाज के नेक मनुष्यों को पीड़ित करें तो क्या उसे दण्डित न किया जाये।
अब इस लेख के सबसे महत्वपूर्ण भाग को पढ़े। अगर एक मनुष्य उच्च चरित्र वाला हो, पूजा करने वाला हो, दानी हो, आस्तिक विचारों वाला हो, सब बुराइयों से बचा हुआ हो, ईश्वर को मानने वाला हो परन्तु किसी रसूल, किसी नबी, किसी पैग़म्बर, किसी मध्यस्थ, किसी संदेशवाहक, किसी मुख्तयार, किसी कारिंदा को न मानने वाला हो। तो क्या वह मनुष्य क़त्ल करने योग्य है? और जैसे भी, जहाँ भी मिले उसे मार दो, क़त्ल कर दो। क्या कोई व्यक्ति ईश्वर को छोड़कर किसी अन्य मध्यस्थ को न माने तो क्या वह क़त्ल के लायक है? वेदों में अनेक मन्त्रद्रष्टा ऋषियों का वर्णन है। क्या कोई व्यक्ति केवल ईश्वर को मानता हो और सदाचारी जीवन व्यतीत करता हो पर किसी ऋषि को न मानता हो। क्या वह मारने योग्य है? नहीं। जबकि क़ुरान के अनुसार वह काफ़िर है। इसलिए मारने योग्य है। इस विषय में क़ुरान क्या कहती हैं। देखिये-
1. और क़त्ल कर दो यहां तक की न रहे बाकि फिसाद, यानि ग़लबा कफ़्फ़ार का। क़ुरान मजीद, सूरा अन्फाल,आयत 39
2. मुशिरकों को जहां पाओ, क़त्ल कर दो और पकड़ लोऔर घेर लो और हर घात की जगह पर उनकी ताक में बैठे रहो। – क़ुरान मजीद, सूरा तौबा,आयत 5
3. ऐ नबी! मुसलमानों को कत्लेआम अर्थात जिहाद के लिए उभारों। – क़ुरान मजीद, सूरा अन्फाल,आयत 65
4. जब तुम काफिरों से भीड़ जाओ तब तुम उनकी गर्दनें उड़ा दो, यहां तक की जब उनकी खूब क़त्ल कर चुको , और जो जिन्दा पकड़े जायें, उनको मजबूती से कैद कर दो। – क़ुरान मजीद, सूरा मुहम्मद,आयत 4
5. ऐ पैगम्बर१ काफिरों और मुनाफिकों से लड़ो और उन पर सख्ती करो, उनका ठिकाना दोज़ख है, और बहुत ही बुरी जगह हैं। – क़ुरान मजीद, सूरा तहरीम,आयत 9
अब आप क्या कहेंगे मोमिन साहिब। इन आयतों में किसके क़त्ल की आज्ञा हैं। किसी डाकू-चोर, बलात्कारी को मारने की आज्ञा नहीं है। बल्कि कोई व्यक्ति चाहे कितना नेकदिल हो, कितने सत्कर्म करने वाला हो। उसे केवल मुहम्मद साहिब और रसूल पर विश्वास न लाने के कारण मारने की बात करना क्या सही हैं? इसके विपरीत किसी आदमी में दुनिया की चाहे तमाम बुराइयां हो, उसका आचरण चाहे दुष्ट मनुष्य वाला हो। वह केवल पैगम्बर पर विश्वास लाने वाला हो। तो वह काफिर नहीं बल्कि मोमिन है। अब आप ही बताये दुनिया में किसी मज़हबी किताब में ऐसी बेइन्साफी, जुल्म, निरपराध का खून बहाने की आज्ञा होगी? हरगिज-हरगिज नहीं। दुनिया में इस्लाम और क़ुरान को छोड़कर ऐसा सन्देश कहीं नहीं है। पूरी क़ुरान ही ऐसी आज्ञाओं से भरी पड़ी हैं। जबकि इसके विरपित वेदों की शिक्षाओं पर जरा ध्यान दो। वेद कहते है-
1. हे मनुष्यों! तुम सब एक होकर चलो! एक होकर बोलो। तुम ज्ञानियों के मन एक प्रकार हो। तुम परस्पर इस प्रकार व्यवहार करो, जिस प्रकार तुमसे पूर्व पुरुष अच्छे ज्ञानवान, विद्वान, महात्मा करते हैं। -ऋग्वेद 10/191/2
2. हे मनुष्यों तुम सब आपस में ऐसे प्रेम करो जैसे एक गौ अपने बछड़े से करती है। -अथर्ववेद 3/30/4
3. हे मनुष्यों! तुम्हारे घरों में ये वेद का ज्ञान दिया जाता है। जिसके ज्ञान से विद्वान, परमात्मा लोग एक दूसरे से अलग नहीं होते। और न आपस में शत्रुता करते है। –अथर्ववेद 3/30/5
4. न कोई बड़ा है, न छोटा है। सब भाई भाई आपस में मिलकर आगे बढ़ो। -यजुर्वेद 36/18
वेदों की शिक्षा सकल मानव जाति के लिए है। क़ुरान में ऐसे शिक्षाओं का स्थान ही नहीं हैं। जो थोड़ी बहुत है। वो केवल अन्य मुसलमानों के लिए है। क़ुरान की इन्हीं संदेशों के कारण सभी जानते है कि पिछले 1200 वर्षों में इस पवित्र भारत भूमि पर मुस्लिम आक्रांताओं ने इस्लाम के नाम पर असंख्य अत्याचार किये। 1947 में देश के दो टुकड़े करने, एक करोड़ लोगों का विस्थापन करने, लाखों निरपराध स्त्रियों का बलात्कार करने, लाखों बच्चों को अनाथ करने और लाखों की हत्या करने के बाद भी मुसलमान कभी यह स्वीकार नहीं करते कि इस्लाम के नाम पर उन्होंने सदा अत्याचार किया हैं। क्या इतिहास में लाखों हिन्दू मंदिरों को लूटना, तोड़ना, आग लगाना, उन्हें मस्जिद में तब्दील नहीं किया गया? इसके उलटे कुछ स्वयंभू मोमिन हिन्दुओं पर कट्टरवादी होने का दोष लगाते हैं। क्या आपने कभी सुना कि हिन्दुओं ने किसी इस्लामिक देश पर आक्रमण कर वहाँ के बाशिंदों के साथ ठीक वैसा ही व्यवहार किया जैसा मुसलमानों ने यहाँ के हिन्दुओं के साथ किया हैं। नहीं। फिर भी मुस्लिम समाज यह अपेक्षा करता है कि लोग उसे शांतिप्रिय कौम के नाम से जाने। सभी मुसलमानों को हठ और दुराग्रह छोड़कर गम्भीरतापूर्वक इस विषय पर विचार करना चाहिए कि कत्लेआम वेद सिखाते है अथवा क़ुरान।

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