दुनिया की नं 1 इकोनॉमी इतने बड़े कर्ज में कैसे फंसी?

कंगाल होने से बचने के लिए अमेरिका के पास क्या हैं वो 3 रास्ते, इन सब का भारत पर क्या असर पड़ सकता है?

अभिनय आकाश

किसी भी देश में वहां कमाई होती है तो वहां खर्चा भी होता है। ज्यादातर देशों में खर्च ज्यादा है जबकि कमाई कम है। इसलिए इकोनॉमी घाटे में चलती है। अगर आपके घर में भी यही हो तो आप क्या करेंगे?

दुनिया का सुपरपावर मुल्क अमेरिका अगर अपने एक्सपेंसेज मैनेज करने में नाकाम साबित हुआ तो क्या होगा। यूएस की कंपनी अगर अपने इंप्लोय को सैलरी न दे पाए तो क्या होगा। दरअसल, इन दिनों दुनियाभर में यूएस के फाइनेंसियल क्राइसिस के बारे में बात हो रही है। क्या अमेरिका किसी बड़े संकट में फंस गया है। । ये दिन आया तो कुछ नतीजों की कल्पना भी नहीं की जा सकती, क्योंकि अमेरिका ने अभी तक डिफॉल्ट किया नहीं है। फिर भी सवाल उठ रहे हैं कि अमेरिका क्या किसी बड़े संकट में फंसने जा रहा है?

अमेरिका पर कर्ज क्यों?

किसी भी देश में वहां कमाई होती है तो वहां खर्चा भी होता है। ज्यादातर देशों में खर्च ज्यादा है जबकि कमाई कम है। इसलिए इकोनॉमी घाटे में चलती है। अगर आपके घर में भी यही हो तो आप क्या करेंगे? जाहिर सी बात है कर्ज लेंगे। अमेरिका ने भी ठीक कुछ ऐसा ही किया है। अमेरिका 31.4 लाख करोड़ डॉलर से ज्यादा का कर्ज नहीं ले सकता है। उसने खुद ये सीमा तय की है। पहले वर्ल्ड वॉर में अमेरिका ये समझ गया था कि कर्ज आने वाली पीढ़ियों के लिए बोझ साबित होगा। इसलिए उसने ये लिमिट तय़ की है। जिसे संसद की सहमति के बिना नहीं बढ़ाया जा सकता है। अमेरिका का ये कर्ज 19 जनवरी को ही अपनी लिमिट तक पहुंच चुका था। इसके बाद से अकाउंट में इधर-उधर करके काम चलाया जा रहा था। हालात ऐसे हैं कि अब पुराने कर्ज के लिए भी नया कर्ज लेना पड़ रहा है।

इसके उपाय क्या हैं?

1960 के बाद से लिमिट को 78 बारतोड़ने की कोशिश की गई। कभी इसे बढ़ा दिया गया कभी इसे विस्तार दे दिया गया, कभी लिमिट की परिभाषा बदल दी गई। नतीजा ये है कि 1917 से कर्ज की सीमा बढ़ते-बढ़ते अब 31.4 लाख करोड़ डॉलर हो गई। फिलहाल सरकार को टैक्स तो मिलता रहेगा, लेकिन इससे काम नहीं चलेगा। मौजूदा जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए और कर्ज लेना होगा।

वित्तीय बाजारों के लिए इसका क्या अर्थ होगा?

यदि ट्रेजरी अपने सभी वित्तीय दायित्वों को पूरा करने में असमर्थ है, तो विश्लेषकों का अनुमान है कि अमेरिकी शेयर बाजारों को तेज, अस्थायी झटका लगने की संभावना है। मूडीज एनालिटिक्स के अर्थशास्त्री बर्नार्ड यारोस ने एएफपी को बताया कि अमेरिकी शेयरों में गिरावट के साथ-साथ ब्याज दरों में बढ़ोतरी होगी, खासकर ट्रेजरी यील्ड और बंधक दरों में। इससे उपभोक्ताओं के लिए, निगमों के लिए उच्च उधार लेने की लागत बढ़ेगी। यारोस ने कहा कि जो परिवार या व्यवसाय बकाया संघीय भुगतान प्राप्त करने में विफल रहते हैं, वे अपनी आय में कमी के कारण निकट अवधि के खर्च पर वापस खींच लेंगे, जबकि उपभोक्ता विश्वास बिगड़ सकता है, अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता है। गोल्डमैन सैश ने अनुमान जताया है कि अमेरिका अगर अपने कर्ज संकट को खत्म नहीं करता है, तो आने वाले तीन हफ्तों में कैश खत्म हो जाएगा. इंवेस्टमेंट बैंक का कहना है कि 8 या 9 जून तक ट्रेजरी डिपार्टमेंट के पास कैश गिरकर 30 बिलियन डॉलर रह जाएगा। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने के लिए ये कैश बहुत कम है।

कंगाली से बचने के लिए अमेरिका के 3 रास्ते

  1. इमरजेंसी फंड: अमेरिका का ट्रेजरी डिपार्टमेंट इमरजेंसी फंड से पैसा निकालकर सरकार को मदद कर सकता है। हालांकि, इसमें सिर्फ कुछ दिनों के लिए समस्या टलेगी। सरकार को संसद से ही कोई रास्ता निकालना होगा।

  2. कांग्रेस यानी अमेरिकी संसद से मंजूरी मिल जाए: अगर अमेरिका संसद के दोनों सदन से कर्ज की साम बढ़ाने वाली प्रस्ताव पास हो जाती है तो समस्या खत्म हो जाएगी.

  3. अमेरिका के संविधान में 14वां संविधान संशोधन: इस संशोधन के जरिए राष्ट्रपति संसद को नजरअंदाज करके फैसले ले सकते हैं। ये नियम कहता है कि अमेरिकी जनता के कर्ज की वैधता पर सवाल खड़े नहीं किया जा सकता है। हालांकि, इस फैसले को विपक्ष कोर्ट में चुनौती जरूर दे सकता है।

क्या अमेरिकी कर्ज को डाउनग्रेड किया जा सकता है?

जैसे-जैसे एक्स-डेट नजदीक आ रही है, निवेशक घबराहट के साथ रेटिंग एजेंसियों को अमेरिकी कर्ज में संभावित गिरावट के संकेतों के लिए देख रहे हैं। यह आखिरी बार 2011 में हुआ था, जब एक समान ऋण सीमा गतिरोध ने रेटिंग एजेंसी S&P को अपनी यूएस क्रेडिट रेटिंग एएए से घटाकर एए+ कर दी थी, जिससे द्विदलीय नाराजगी हुई थी।

कितनी मोहलत मिलेगी

अमेरिकी वित्त मंत्रालय ने हाल में चेताया था कि नकदी पहली जून तक खत्म होने के आसार हैं। हालांकि यह अनुमान ही है। इसमें थोड़ा आगे-पीछे हो सकता है। इससे पहले कर्ज की सीमा को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिका के राजनीतिक दालों को सहमत होना पड़ेगा। पुराना कर्ज चुकाने में अगर सरकार नाकाम रही तो देश डिफॉल्ट कर जाएगा। अपने कर्मचारियों को सैलरी नहीं दे सकेगा। स्पेशल स्कीमों पर खर्च बंद हो जाएगा। दूसरी जिम्मेदारियां थम जाएंगी।

अमेरिकी की आर्थिक स्थिति से भारत पर क्या पड़ सकता है असर?

अगर अमेरिकी सरकार ने जल्द ही इस समस्या का हल नहीं किया तो भारत समेत दुनियाभर में इसका असर पड़ना तय है। इससे पहले 2001 और 2003 में अमेरिकी सरकार ने टैक्स में कटौती की थी। इसके बाद अमेरिकी ट्रेजरी के पास पैसे की कमी हो गई थी। इस समय भी संसद ने कर्ज की सीमा बढ़ाकर देश को डिफॉल्ट होने से बचाया था। लेकिन इसका असर दुनियाभर के बाजारों में दिखा था। 2008 में अमेरिका में आई मंदी की वजह से यहां बेरोजगारी दर 10% तक पहुंच गई। इस मंदी से बचने के लिए भारत सरकार को 3 राहत पैकेज जारी करने पड़े थे। अमेरिका का बिजनेस दुनिया के ज्यादातर बड़ी इकोनॉमी वाले देशों से जुड़ी हुई है। ऐसे में अमेरिका में मंदी आने पर दुनिया भर के लिक्वडिटी पर इसका असर पड़ता है।

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