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भारतीय संस्कृति

श्री कृष्ण एक कर्म योगी थे जो एक वैदिक विद्वान थे

अर्थात वेद की 16000 कुछ ऋचाओं के ज्ञाता थे।
जिन्हें वास्तविक जानकारी नहीं होती है । इन्हीं 16000 ऋचाओं में श्री कृष्ण जी रमण करते रहते थे ,जिनका मनन करते रहते थे ,जिनमें विचार मग्न रहते थे ,उन्हीं को 16000 गोपिकाऐं कह देते हैं जो श्री कृष्ण जी के चरित्र हनन की सबसे गलत बात है।
कुब्जा दासी के प्रति आसक्ति श्री कृष्ण जी के विषय में निंदनीय अपराध है।हमें अपने महापुरुष की, युगपुरुष की, महामानव की, महाज्ञानी की, महाकर्मयोगी की, धर्म की पुनर्स्थापना करने वाले एकमात्र नीति शास्त्र के ज्ञाता की क्षमता को कमतर प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं है।

कृष्ण जी एक पुरुष थे। उनके अंदर ज्ञान -वैशिष्ट्य था।
कृष्ण जी की मात्र एक ही पत्नी थी रुकमणी।
शादी के पश्चात रुक्मणी और उनके पति कृष्ण ने 12 वर्ष तक घोर तपस्या करके एक पुत्र पैदा किया, जिसका नाम प्रदुम्न था ,जो कृष्ण जी की शक्ल सूरत से हूबहू मिलता था वही शरीर, वही कद काठी थी। कभी-कभी पीछे से माता रुक्मणी को भी संदेह हो जाया करता था कि कृष्ण जी हैं अथवा प्रदुम्न बेटा है। सुदर्शन चक्र उनके पास एक वैज्ञानिक यंत्र था। जिसकाअनुप्रयोग उन्होंने धर्म की स्थापना करने के लिए विशेष प्रतिकूल परिस्थितियों में ही किया।
कृष्ण जी नीति निपुण थे।
श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध में अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था जो केवल 45 मिनट का था जिसमें कुछ श्लोक बोले गए थे। आज गीता के नाम पर एक गधा का बोझ बना दिया है वह सब हम लोगों ने ही किया।
ईश्वर सर्वज्ञ तथा सर्वशक्तिमान होता है। ईश्वर सर्वत्र व्याप्त होता है। ईश्वर सृष्टि का निर्माता होता है। ईश्वर एक देसी अथवा एक देह में नहीं आता। ईश्वर सर्वत्र व्याप्त होने के कारण भी सर्वांतर्यामी एवं सर्वव्यापक कहा जाता है।
ईश्वर सृष्टि का पालन करता है और ईश्वर ही संहार करता है। आत्मा जो किसी शरीर में आती है वह एक देसी होती है तथा अल्पज्ञ होती है। परिमित होती है।आत्मा सृष्टि का निर्माण नहीं करती ना सृष्टि का पालन करती और ना ही सृष्टि का संहार करती। यह सभी गुण ईश्वर के अंदर हैं। इन गुणों को जब कृष्ण जी के अंदर मान कर उनको ईश्वर मान लेते हैं और वास्तविक ईश्वर की उपेक्षा कर देते हैं तो वहां से हमारी बुद्धि पर परदा पड़ना प्रारंभ हो जाता है।
कृष्ण जी ईश्वर के अवतार नहीं थे।
कृष्ण जी को अवतार के रूप में स्थापित करने में पुराणों की महत्वपूर्ण भूमिका है । परंतुआर्य समाज के लोग सद्विद्या के कारण वास्तविक तथ्यों को तथा सत्य को सभी जानते और समझते हैं कि पुराण में जो इतिहास लिखा है उसमें कुछ सत्यता महर्षि दयानंद ने बताई है लेकिन वह सभी झूठ से अधिक सम्मिश्रण है। इसलिए पुराणों की बात विश्वसनीय नहीं है आर्य समाज के गले नहीं उतरती है पुराणों में इस प्रकार की बातें लिख दी है जो सृष्टि नियम के विपरीत हैं जो कभी संभव नहीं हो सकती।
यह भी विवरण आता है
महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश के एकादश समुल्लास में और पक्षी के प्रश्नों का पुराणों के विषय में उत्तर देते हुए निम्न प्रकार लिखा है कि 18 पुराणों के कर्ता व्यास जी है। व्यास वचन का प्रमाण अवश्य करना चाहिए। इतिहास, महाभारत 18 पुराणों से वेदों का अर्थ पढ़ें, पढावें, क्योंकि इतिहास और पुराण वेदो ही के अर्थ अनुकूल है। पित्र कर्म में पुराण और खिल अर्थात हरिवंश की कथा सुनें ।इतिहास और पुराण पंचम वेद कहते हैं ।अश्वमेध की समाप्ति में 9वें दिन थोड़ी सी पुराण की कथा सुनें। पुराण विद्या वेदार्थ के जानने ही से वेद हैं। इत्यादि प्रमाणों से पुराणों का प्रमाण और उनके प्रमाण से मूर्ति पूजा और तीर्थों का भी प्रमाण है क्योंकि पुराणों में मूर्ति पूजा और तीर्थों का विधान है ।
इसका उत्तर देते हुए महर्षि दयानंद ने कहा कि
क्योंकि जो 18 पुराण के कर्ता व्यास जी होते तो उनमें इतने गपोड़े नहीं होते। शारीरकसूत्र, योग शास्त्र के भाष्य व्यासोक्त ग्रंथों के देखने से विदित होता है कि व्यास जी बड़े विद्वान, सत्यवादी, धार्मिक योगी थे ।वह ऐसे मिथ्या कथा कभी न लिखते। और इससे यह सिद्ध होता है कि जिन संप्रदाय ,परस्पर विरोधी लोगों ने भागवत आदि नवीन कपोल कल्पित ग्रंथ बनाए हैं उनमें व्यास जी के गुणों का लेश भी नहीं था, और वेद शास्त्र विरुद्ध असत्य वाद लिखना व्यास सदृश विद्वानों का काम नहीं किंतु यह काम विरोधी स्वार्थी विद्वान लोगों का है ।
कृष्ण जी के नाम पर भागवत पुराण जिन्होंने रची है वह भी स्वार्थी और लालची लोग हैं।
क्योंकि भागवत पुराण मध्य युग में उस समय लिखी गई है जब भारतवर्ष पर विदेशी आक्रमणकारियों का शासन था तब कुछ स्वार्थी और लोभी लोगों ने अपनी कलम को और अपनी आत्मा को बेचकर ,अपनी कलम को तवायफ बनाते हुए कृष्ण जी पर विभिन्न प्रकार के लांछन लगाकर का प्रस्तुत किया जिससे विधर्मी अपने मोहम्मद साहब रसूल की काम पिपासा एवं लंपटता को छिपा सके और हमारे महापुरूषों पर भी आक्षेप लगा सके। इसलिए हम वास्तविकता से दूर होते चले गए और कृष्ण जी के संबंध में अनर्गल प्रलाप करने लगे।
भागवत पुराण का एक उदाहरण लें जिसमें लिखा है कि विष्णु की नाभि से कमल ,कमल से ब्रह्मा, और ब्रह्मा के दाहिने पैर के अंगूठे से स्वायंभुव,और बाएं अंगूठे से शतरूपा रानी, ललाट से रुद्र और मरीचि आदि 10 पुत्र ,उनसे 10 प्रजापति, उनकी 13 लड़कियों का विवाह कश्यप से, उनमें से दिती से दनु,दनु से दानव ,अदिति से आदित्य, विनता से पक्षी, कद्रु से सर्प, शर्मा से कुत्ते ,स्याल आदि और अन्य स्त्रियों से हाथी ,घोड़े, ऊंट ,गधा, भैसा ,घास, फूस और बबूल आदि वृक्ष काटे सहित उत्पन्न हो गए। वाह रे वाह भागवत के बनाने वाले क्या कहना तुमको ऐसी ऐसी मिथ्या बातें लिखने में तनिक भी लज्जा और शर्म नहीं आई ।निपट अंधा ही बन गया ।
भला स्त्री और पुरुष के वीर्य के संयोग से मनुष्य बनते ही हैं। परंतु परमेश्वर के सृष्टिकृम के विरुद्ध पशु ,पक्षी, सर्प आदि कभी उत्पन्न नहीं हो सकते ,और हाथी ,ऊंट, सिंह ,कुत्ता ,गधा, वृक्ष आदि का स्त्री के गर्भाशय में स्थित होने का अवकाश (अर्थात स्थान)भी कहां हो सकता है। और सिंह आदि उत्पन्न होकर अपने मां-बाप को क्यों नहीं खा गए ?और मनुष्य शरीर से पशु ,पक्षी ,वृक्ष आदि का होना संभव हो सकता है? शोक है उन लोगों की इस महा असंभव लीला पर जिसने संसार को अभी तक भ्रम में रखा । यदि इन पुराणों के रचने वाले गर्भ में ही मर गए होते तो इन पापों से बचते और आर्यवर्त देश दुखों से बच जाता
भला हो इस देश का जो महर्षि दयानंद उस समय पर आए और वेद की विद्या का दर्शन कराया।

जबकि श्री कृष्ण जी महाराज सत्यवादी, धार्मिक, विद्वान और योगी थे।
कृष्ण जी ने धर्म की स्थापना करने के लिए दुष्टों का संहार करने में कोई संकोच नहीं किया। दुष्ट का दलन और दमन करके सतपुरुषों का सहयोग किया।
हम श्री कृष्ण जी का कर्म योगी के रूप में सम्मान करते हैं परंतु ईश्वर का अवतार नहीं मानते। क्योंकि आत्मा और परमात्मा में बहुत ही अंतर होता है।
आत्मा परमात्मा नहीं हो सकती और परमात्मा आत्मा नहीं हो सकता क्योंकि ईश्वर जीव और प्रकृति तीनों अनादि ,नित्य है।
कृष्ण जी की आत्मा जो उस शरीर में आई थी अब उसमें नहीं है । इस प्रकार वह शरीर उनका नष्ट हो चुका, देहांतर हो चुका है, शरीरान्तर हो चुका है। इसलिए वह नित्य नहीं कहे जा सकते।
उनकी ईश्वर से तुलना करना मिथ्या ज्ञान है।

देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन उगता भारत समाचार पत्र

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