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इसलाम और शाकाहार

सावधान ! कोई टोपी न पहिना दे !

टोपी लगाने वाले मुस्लिम नहीं मुशरिक है

आपने देखा होगा सामान्य मुस्लिम और बड़े बड़े मौलवी टोपियां लगा कर अकड़ कर चलते हैं और खुद को असली मुस्लिम साबित करने और लोगों डराने का काम करते हैं ऊपर से दावा करते हैं कि हम हर काम रसूल की सुन्नत के अनुसार करते हैं ,वास्तव में यह लोग मुशरिक हैं ,क्योंकि न तो कभी मुहम्मद ने टोपी पहिनी थी , और न किसी हदीस में टोपी लगाने का कोई आदेश है इस लिए इस लेख को ध्यान से पढ़िए

किसी को टोपी पहिना देना , हिन्दी का प्रसिद्ध मुहावरा है ,इसका अर्थ धोखा देना ,ठग लेना , उल्लू बना देना और छल करना है , पाठको को याद होगा कि कुछ समय एक सभा में एक मुल्ले ने मोदी जी को टोपी पहिनाने का प्रयास किया था , लेकिन मोदी उस मुल्ले के धोखे में नहीं आए , और टोपी पहनने से साफ मना कर दिया , और मुसलमानों ने इसे इस्लाम का अपमान बता कर मोदी पर सम्प्रदायवादी होने का आरोप लगा कर हंगामा कर दिया , और बिकाऊ मीडिया ने इस मुद्द्दे को काफी उछाला था ,वास्तव में टोपी का इस्लाम से दूर दूर तक का कोई सम्बन्ध नहीं है
फिर भी मूर्ख नेता टोपियां पहिन कर मुसलमानों की सभाओं में जाते हैं , और टोपी को इस्लाम का प्रतीक मान कर खुद को सेकुलर साबित करना चाहते हैं ,
ऐसे लोगों को पता होना चाहिए कि जोभी काम करते हैं रसूल की नकल करते हैं ,इसे सुन्नत कहा जाता जैसे , रसूल मूछें काट देते थे और दाढी रखते थे , ऐसा ही मुस्लिम करते हैं , लेकिन मुहम्मद ने पूरे जीवन में न तो टोपी लगाई और न उनके सहबियों ने कभी टोपी पहनी थी ,
इसलिए मित्रों के आग्रह से सेकुलरों की आंखें खोलने के लिए टोपी सम्बन्धी जानकारी दी जा रही है

कुरान का आदेश है “हे आदम की संतान हर इबादत के समय अपनी शोभा धारण करो “सूरा -अल आराफ 7:31

इसका अर्थ है कि अपनी परम्परा के अनुसार वस्त्र पहिनो

“O Children of Adam! Take your adornment while praying…” [al-A’raaf 7:31]

अरब के लोग गर्मी से सिर की रक्षा के लिए सिर पर एक छोटी सी चादर( (head gear ) बांध लेते हैं ,जो कानों तक लटकती रहती है , इसी के कोने से लोग पसीना भी पौंछ लेते हैं , अरबी में इसे “इमामा – -عِمَامَةٌ” कहते हैं , अरब के लोग कभी टोपी नहीं पहिनते ,टोपी पहिनने वाले मुसलमान नहीं हो सकते , यह बात खुद इस हदीस में कही गई है

1-टोपी पहिनने वाले मुश्रिक हैं !

“रुकना के बेटे अली ने कहा कि मेरे पिता रुकना ने रसूल से कुश्ती की , और रसूल में उसे मैदान के बाहर फेक दिया ,तब रसूल ने कहा कि हम में और मुश्रिकों में यही अंतर है कि हम इमामा बांधते हैं और मुश्रिक टोपी लगाते हैं .

Narrated Ali ibn Rukanah:
Ali quoting his father said: Rukanah wrestled with the Prophet (ﷺ) and the Prophet (ﷺ) threw him on the ground. Rukanah said: I heard the Prophet (ﷺ) say: The difference between us and the polytheists is that we wear turbans over and you wear caps ,.

، أَنَّ رُكَانَةَ، صَارَعَ النَّبِيَّ صلى الله عليه وسلم فَصَرَعَهُ النَّبِيُّ صلى الله عليه وسلم قَالَ رُكَانَةُ وَسَمِعْتُ النَّبِيَّ صلى الله عليه وسلم يَقُولُ ‏ “‏ فَرْقُ مَا بَيْنَنَا وَبَيْنَ الْمُشْرِكِينَ الْعَمَائِمُ عَلَى الْقَلاَنِسِ ‏”‏

https://sunnah.com/abudawud:4078

Sunan Abi Dawud 4078
In-book reference : Book 34, Hadith 59
English translation : Book 33, Hadith 4067

2-रसूल इमामा बांधते थे

“अनस बिन मलिक ने कहा कि रसूल जब भी वजू करते थे तो , सिर पर कतरी इमामा ( कतर में बना हुआ ) बांध लेते थे ,और उसी में हाथ डाल कर विधि पूरी कर लेते थे , और रसूल इमामा कभी नहीं उतारते थे ,

It was narrated that Anas bin Malik said:
“I saw the Messenger of Allah performing ablution, wearing a Qatari turban. He put his hand beneath the turban and wiped the front part of his head, and he did not take the turban off.”

، عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ، قَالَ رَأَيْتُ رَسُولَ اللَّهِ ـ صلى الله عليه وسلم ـ تَوَضَّأَ وَعَلَيْهِ عِمَامَةٌ قِطْرِيَّةٌ فَأَدْخَلَ يَدَهُ مِنْ تَحْتِ الْعِمَامَةِ فَمَسَحَ مُقَدَّمَ رَأْسِهِ وَلَمْ يَنْقُضِ الْعِمَامَةَ ‏.‏

Ibn majah- Vol. 1, Book 1, Hadith 564
Arabic reference: Book 1, Hadith 607

“अनस बिन मलिक ने कहा कि रसूल सिर पर कतरी इमामा बांधे रहते थे , और उसी में हाथ डाल कर वजू कर लेते थे , और उसी के कोने से माथे का पसीना पौंछ लेते थे , लेकिन उसे कभी खोलते नहीं थे ”

Narrated Anas ibn Malik:
I saw the Messenger (ﷺ) perform ablution. He had a Qutri turban. He inserted his hand beneath the turban and wiped over the forelock, and did not untie the turban.

، عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ، قَالَ رَأَيْتُ رَسُولَ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم يَتَوَضَّأُ وَعَلَيْهِ عِمَامَةٌ قِطْرِيَّةٌ فَأَدْخَلَ يَدَهُ مِنْ تَحْتِ الْعِمَامَةِ فَمَسَحَ مُقَدَّمَ رَأْسِهِ وَلَمْ يَنْقُضِ الْعِمَامَةَ ‏.‏

Sunnan abi dawood-Sunan Abi Dawud 147
In-book reference: Book 1, Hadith 147
English translation : Book 1, Hadith 147

इमामा का चित्र

http://www.uaestylemagazine.com/wp-content/uploads/2013/08/Keffiyeh.jpg

3-टोपी तुर्कों की ईजाद है

यद्यपि आज तुर्की एक इस्लामी देश माना जाता है ,लेकिन तुरकों के रीति रिवाज अरबों से अलग है , यहां तक वह अजान भी तुर्की भाषा में देते हैं और कुरान भी तुर्की में पढ़ते हैं , चूंकि अरब सिर पर इमामा बांधते है , तुर्कों ने इसके उलट टोपी का रिवाज निकाल दिया . टोपी को तुर्की भाषा में “fez ” कहा जाता है , यह उल्टे गमले की तरह नमदे से बनी होती है , अरबी में इसे “ताकीयह – طاقية‎‎ “कहा जाता है ,फेज़ को अरब के लोग “फास – فاس” कहते हैं , इस टोपी की खससियत है कि इसके ऊपर धागों का एक गुच्छा ( A tassel ) भी लगाया जाता है ,जिसे फारसी में “मंगूलह – منگوله ” कहते है . इस चोटी वाली विचित्र टोपी को अरब में ” तरबूश – طربوش‎‎ ” कहते हैं , और जब तुर्कों के वंशज मुगल भारत में आए तो यह टोपी भी साथ में लाए थे , उर्दू का शायर मिर्जा ग़ालिब भी ऐसी टोपी पहिनता था ,

चोटी वाली तुर्की टोपी
https://tinyurl.com/mt38fc5f

4-शाही टोपी कुलाह

तुर्की टोपी को देख कर बादशाह हुमायूँ ने भी एक टोपी ईजाद की ,लेकिन उसमे तुर्की टोपी की चोटी (गुच्छा ) निकाल दिया और इस टोपी का नाम
“ताजे कुलाह – تاجِ كُلاه ” रख दिया , यह उल्टी कटोरी जैसी थी , तब से औरंगजेब के समय तक यह टोपी शान की बात मानी जाती थी , मुसलमान इस टोपी को पहिंन कर हिन्दुओं धमकाते रहते थे , औरंगजेब हिन्दुओं नाराज हो जाता था तो टोपी तिरछी कर देता था , एक बार जब ईरान के शाह का दूत दिल्ली आया तो देखा औरंगजेब अपनी टोपी तिरछी करके हिन्दुओं और उनके धर्म को बुरा कह रहा था , तब उस राज दूत ने कहा

” हर दीं बराए हक्क अस्त ,हर एक बा रास्त राहे
अय काबऔ किब्ला मा कुन रास्त कज कुलाहे ”
अर्थात -” हर धर्म सच्चा है , और हर व्यक्ति सीधे रास्ते पर हैं , अतः काबा की तरह आदर योग्य आप अपनी टोपी सीधी कर लो ”

वासतव में टोपी लगाना मुश्रिकों , धोखे बाजों . मक्कारों की निशानी है , इसीलिए सिखों के ग्रन्थ में साफ कहा है

“सिर ऊपर टोपी जो धरे , सात जन्म कुष्टि हो मरे ” सिख रहत नामा

टोपी पहिनने और पहिनाने वाले मुसलमानों पर कभी भरोसा नहीं करना , यह आपको साथ कभी नहीं देंगे , सोचिये जब इनलोगों ने स्वार्थ के लिए रसूल की सुन्नत छोड़ दी तो आपका साथ भला कैसे निबाहेंगे ?

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ब्रजनंदन शर्मा

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