ममता बनर्जी को पीएम पद की उम्मीदवार बताना सुब्रमण्यम स्वामी के लिए कितना उचित ?

नीरज कुमार दुबे
इसमें कोई दो राय नहीं कि पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी एक विद्वान राजनेता और चिंतक हैं। उनकी कई जनहित याचिकाओं पर आये निर्णयों ने भी देश और समाज को लाभ पहुँचाया है। लेकिन यह बात भी सही है कि सुब्रमण्यम स्वामी एक अस्थिर राजनेता भी हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि स्वामी किसी दल के साथ ज्यादा समय टिकते नहीं, यही नहीं वह अपने खुद के दल में भी ज्यादा समय नहीं टिके थे। स्वामी का हालिया राजनीतिक इतिहास देखें तो कांग्रेस विरोध से अपनी राजनीतिक शुरुआत करने वाले सुब्रमण्यम स्वामी ने 1999 में कांग्रेस से हाथ मिला लिया था और सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनवाने के चक्कर में स्वामी ने जयललिता से समर्थन वापस करवा कर अटलजी की सरकार तक गिरवा दी थी। लेकिन मध्यावधि चुनावों में देश की जनता ने अटलजी को दोबारा देश की कमान सौंप दी थी। स्वामी की योजना कामयाब नहीं होते देख जयललिता ने उनसे दूरी बना ली और कुछ दिनों बाद स्वामी के जयललिता से राजनीतिक रिश्ते बिगड़ गये थे और बात कोर्ट कचहरी तक गयी थी। कुछ समय बाद स्वामी ने अपनी जनता पार्टी का एनडीए के साथ गठबंधन कर लिया और फिर बाद में अपनी पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया। स्वामी मोदी-मोदी के नारे लगाने लगे और खुद को सबसे बड़े हिंदूवादी नेता के रूप में देखने लगे। स्वामी को मोदी इतने भाये कि वह उनके पक्ष में वह हर मंच से दलीलें देने लगे।
केंद्र में मोदी सरकार बनने पर स्वामी को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया और दिल्ली के लुटियंस जोन में बड़ा बंगला भी दे दिया गया लेकिन जैसे ही उन्हें भनक लगी कि उनको राज्यसभा में दोबारा नहीं भेजा जायेगा वैसे ही वह सरकार के आलोचक बन गये। अब वह हर मंच से भाजपा और मोदी की बुराई करते नजर आते हैं। स्वामी की नजर में अब प्रधानमंत्री पद के लिए ममता बनर्जी सबसे उपयुक्त शख्सियत हैं। लेकिन सवाल उठता है कि जिन मुख्यमंत्री के कार्यकाल में मानवाधिकारों के हनन के सबसे ज्यादा आरोप लगते हैं, जिन मुख्यमंत्री का राज्य राजनीतिक हिंसा की घटनाओं, भ्रष्टाचार, परिवारवाद और प्रशासनिक नाकामियों के मामले में शीर्ष पर है और जिन्हें अदालत से लगातार फटकार सुनने को मिलती है, वह मुख्यमंत्री आखिर किस लिहाज से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नेतृत्व करने लायक हैं?
हम आपको बता दें कि 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले ‘मोदी हटाओ’ अभियान को विपक्ष के नेता तो आगे बढ़ा ही रहे हैं साथ ही स्वामी जैसे कुछ भाजपा नेता भी इस मिशन की सफलता के लिए दिन-रात एक कर रहे हैं। इसी कड़ी में स्वामी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की और उन्हें एक ऐसा व्यक्ति करार दिया जिसे “ब्लैकमेल” नहीं किया जा सकता। यही नहीं स्वामी यह भी कह गये कि ममता बनर्जी को भारत का प्रधानमंत्री होना चाहिए। स्वामी ने कहा, “ममता बनर्जी को भारत की प्रधानमंत्री होना चाहिए। वह एक साहसी महिला हैं। देखिए कैसे उन्होंने वामपंथियों का मुकाबला किया….।” यह पूछे जाने पर कि बैठक में ममता बनर्जी और उनके बीच क्या बातचीत हुई, इस पर उन्होंने कहा कि इस बात पर चर्चा हुई कि 2024 कैसा होगा और उस समय अर्थव्यवस्था का क्या स्वरूप होगा। टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी का जिक्र करते हुए सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि उन्हें “ब्लैकमेल करना असंभव” है। आज के समय में देश की सबसे शक्तिशाली महिला के बारे में उनकी राय के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा, “एक समय था जब जयललिता हो सकती थीं; एक समय था जब मैं मायावती के बारे में ऐसा सोचता था। फिलहाल …ममता बनर्जी। वह एकमात्र महिला नेता हैं, जिनके पास खड़े होने की हिम्मत है।”
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी ने विपक्ष को भी सलाह देते हुए कहा कि देश को एक सच्चे विपक्ष की जरूरत है जो सत्तारुढ़ पार्टी से डरे नहीं। सुब्रमण्यम स्वामी ने फिक्की द्वारा आयोजित एक संवाद सत्र में कहा, “मुझे लगता है कि देश को एक वास्तविक विपक्ष की जरूरत है जिसे सत्ता में बैठे लोगों द्वारा ब्लैकमेल नहीं किया जा सके।” स्वामी ने कहा, “मैं आज बहुत से लोगों को जानता हूं। वे मौजूदा सरकार के खिलाफ एक हद से आगे नहीं बढ़ पाएंगे। क्योंकि उन्हें डर है कि प्रवर्तन निदेशालय या कोई और उन पर शिकंजा कस देगा। यह भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।”
बहरहाल, स्वामी जो कुछ भी कहना चाहते हैं वह कहें, जिसका विरोध या समर्थन करना चाहते हैं वह करें, लेकिन एक सवाल का जवाब तो उन्हें देना ही चाहिए क्योंकि वह अपने को विराट हिंदू नेता कहलवाना पसंद करते हैं। इसलिए स्वामी को यह बताना चाहिए कि भाजपा के खिलाफ जिहाद छेड़ने की बात कहने वालीं ममता बनर्जी को वह प्रधानमंत्री पद पर क्यों देखना चाहते हैं? स्वामी को बताना चाहिए कि जो मुख्यमंत्री रामनवमी शोभायात्रा को मुस्लिम इलाकों से नहीं निकालने की बात कहती हों वह धर्मनिरपेक्ष देश की प्रधानमंत्री कैसे हो सकती हैं? स्वामी को यह भी बताना चाहिए कि तुष्टीकरण की राजनीति का आजीवन विरोध करने के बावजूद क्यों उन्हें तृणमूल कांग्रेस सरकार की तुष्टिकरण वाली नीतियां भा रही हैं? स्वामी को यह भी बताना चाहिए कि जो मुख्यमंत्री खुद अपना विधानसभा चुनाव हार जाये क्या वह लोकसभा चुनावों में अपनी पार्टी का नेतृत्व कर पायेगा?