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अपने दादा महाराणा संग्राम सिंह, पन्नाधाय और मां जयवंत कौर का विशेष प्रभाव था महाराणा प्रताप पर

महाराणा प्रताप सिंह अपने पितामह राणा संग्राम सिंह के प्रति अत्यधिक समर्पित थे। वह उन्हीं की भांति वीरता और देशभक्ति के कीर्तिमान स्थापित करना चाहते थे। उनका संकल्प यही था कि जैसे उनके पितामह महाराणा संग्राम सिंह ने मुगलों और मुसलमानों को देश से बाहर निकालने के लिए कार्य किया था वैसे ही जीवन भर वह भी मुगलों और मुसलमानों को देश से बाहर निकालने के लिए कार्य करते रहेंगे। अपने इस महान संकल्प की पूर्ति के लिए महाराणा प्रताप ने राजभवन के सुख ऐश्वर्य को लात मार दी थी। उन्होंने जंगलों में रहना पसंद किया पर किसी विदेशी मुगल शासक के सामने सर झुकाना उचित नहीं माना।

जन्म और बचपन

महाराणा प्रताप सिंह का जन्म 9 मई, 1540 ई0 को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। वह राणा उदय सिंह के सबसे बड़े पुत्र थे। उनका जन्म उसी समय हुआ था जिस समय महाराणा उदय सिंह मेवाड़ के शासक बने थे। उनकी जयंती विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। कहा जाता है कि जिस समय महाराणा उदय सिंह के राज्याभिषेक का विशेष कार्यक्रम संपन्न हो रहा था उसी समय धायमाता पन्ना ने दो ढाई महीने ( कहीं-कहीं यह एक माह भी लिखा है ) के शिशु महाराणा प्रताप को लाकर महाराणा उदय सिंह की गोद में दिया था। उस समय राज्याभिषेक के समारोह में उपस्थित हुए सभी गणमान्य लोगों ने महाराणा उदय सिंह के इस शिशु का करतल ध्वनि के साथ स्वागत किया था।
उस समय महाराणा उदय सिंह का भी अपने इस नवजात बालक से विशेष अनुराग था। कालांतर में राणा उदय सिंह अपनी सबसे छोटी रानी के पुत्र जगमाल के प्रति अधिक स्नेह भाव रखने लगे थे। इसका कारण केवल एक था कि वे अपनी छोटी रानी पर अधिक आसक्त रहते थे। महाराणा प्रताप को उनके पिता कुछ उपेक्षित से करने लगे थे। जिससे दोनों पिता पुत्रों में कुछ दूरी भी बन गई थी। राणा उदय सिंह को अपनी कई रानियों से कुल 22 पुत्र उत्पन्न हुए थे। महाराणा प्रताप उनमें सबसे बड़े थे। उन्हें बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। मुस्लिम इतिहासकारों ने तो उन्हें अक्सर इसी नाम से संबोधित किया है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि मुस्लिम इतिहासकारों को महाराणा प्रताप के चरित्र से घृणा थी। उन्होंने हमारे अधिकतर वीरों को उनके उपनाम या बिगड़े हुए नाम से ही लिखने या पुकारने का काम किया है।

पन्ना धाय का आशीर्वाद

महाराणा प्रताप उस समय अपने वंश की पहली किरण के रूप में आए थे। बनवीर के अत्याचारों से अभी मेवाड़ निकला ही था। मेवाड़ के सरदार, सामंत, मंत्री व सैन्याधिकारी सभी महाराणा प्रताप में भविष्य का एक महान योद्धा और महान शासक देख रहे थे। यही कारण था कि उन सबके स्नेह का भाजन महाराणा बने। सभी उन्हें असीम प्यार करते थे। महाराणा वंश में उनके आने से मानो गई हुई खुशियां फिर से लौट आई थीं। पन्ना गूजरी ने राज्यसिंहासन पर विराजमान हुए राणा उदय सिंह को जब उनके पुत्र कीका को गोद में दिया तो समय उस वीरमाता ने कहा था कि “हे मेवाड़ कुल के गौरव ! क्षत्रिय कुल पालक, धर्म रक्षक !! आज मैं तुम्हें पूर्वजों के राज्य सिंहासन पर विराजमान देखकर अत्यधिक भाव विभोर हो गई हूं, लो अपनी धायमाता का एक और नजराना ( प्रताप को महाराणा उदयसिंह की गोद में रखते हुए ) स्वीकार करें। इस मां ने तुम्हारे लिए अपने पुत्र चंदन का बलिदान दिया था , परंतु आज मैं उससे भी अधिक प्राणप्रिय के रूप में कीका प्रताप को तुम्हें सौंप रही हूं। यह मेरा आशीर्वाद है कि तुम्हारा यह पुत्र कभी पराजित नहीं होगा और धर्म व धरती की सदा रक्षा करता रहेगा।”
वास्तव में यह किसी मां के शब्द नहीं थे। यह शब्द एक ऐसी तपस्विनी के थे, जिसने राष्ट्र की आराधना की थी। राष्ट्र निर्माण के लिए जिसने अपने पुत्र की बलि दे दी थी। यह उस मां के बोल थे जो उस समय तप, त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति बन चुकी थी। यही कारण था कि समय आने पर उस राष्ट्रसाधिका के ये शब्द अक्षरश: सत्य साबित हुए।

महाराणा प्रताप के आदर्श

महाराणा प्रताप की माता जीवत कंवर या जयवंत कंवर थीं। प्रताप ने बचपन में ही अपने पितामह राणा संग्राम सिंह के बारे में बहुत कुछ सुना था। यही कारण था कि वह उनके प्रति अत्यधिक श्रद्धा रखते थे। इसके अतिरिक्त वह मेवाड़ के इतिहास के ही नहीं बल्कि भारतवर्ष के इतिहास के गौरव बप्पा रावल, खुमाण प्रथम, महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा से भी प्रभावित थे, जिन्होंने समय-समय पर इतिहास रचा था और अपनी वीरता एवं पराक्रम से समकालीन इतिहास को प्रभावित किया था।
गौरवशाली बप्पा रावल के गौरव प्रताप बने,
औषधि बने दीन भारत की शत्रु के संताप बने,
खुमाण और हमीर से उनको जीवन का वरदान मिला
कुम्भा से मिली अनुपम शक्ति भारत मां के भाल बने।।

महाराणा प्रताप भली प्रकार जानते थे कि मुगल वंश के शासन के स्थापित होने के समय से ही किस प्रकार उससे शत्रुता चली आ रही है? इसके अतिरिक्त मुगल काल से पूर्व सल्तनत काल में अलाउद्दीन खिलजी के समय से भी किस प्रकार देश की रक्षा करने में उनके वंश ने कैसी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ?
जब महाराणा प्रताप का जन्म हुआ तो लगभग उसी समय अकबर का जन्म हुआ था। यह अलग बात है कि महाराणा प्रताप जहां 1572 ई0 में राजा बने वहीं अकबर अपने पिता के देहांत के पश्चात 1556 ई0 में ही शासक बन गया था। संस्कृतिनाशक अकबर का उद्देश्य संपूर्ण भारतवर्ष को अपने झंडे तले लाकर वैदिक संस्कृति का सर्वनाश करके इस्लामिक संस्कृति को भारत में स्थापित करने का था। भारतीय पराक्रम और पौरुष को मिटाकर वह संपूर्ण भारत को इस्लाम के रंग में रंगने की तैयारी कर रहा था। इसके लिए अकबर ने भारत में हिंदुओं पर वैसे ही अत्याचार किए थे जैसे उसके पूर्ववर्ती तुर्क शासक करते आए थे। उसका भी अपने पूर्ववर्ती इस्लामिक शासकों वाला ही लक्ष्य था अर्थात हिंदुओं का विनाश और इस्लाम का विकास।
अकबर की इस प्रकार की नीति और सोच को महाराणा प्रताप भली प्रकार जानते थे। यही कारण था कि अकबर से उनका युद्ध अवश्यंभावी था। अपने दादा महाराणा संग्राम सिंह की भांति वह इस्लाम के शासन को उखाड़ कर भारत में भारतीयों का शासन स्थापित करने के पक्षधर थे। अतः अकबर को उनके द्वारा सहन करना कदापि संभव नहीं था। महाराणा प्रताप अत्यंत स्वाभिमानी और राष्ट्रभक्त थे । यही कारण था कि उन्होंने कभी भी अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। अकबर के लिए सदा सिरदर्द बने रहने वाले महाराणा प्रताप अपने निर्णय पर अडिग रहे।

डॉ राकेश कुमार आर्य

“मेवाड़ के महाराणा और उनकी गौरव गाथा” से

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