विश्व में ईसाइयत और इस्लाम के मध्य उभरता अंतद्र्वन्द हमारा ध्यान इन जातियों के पतन की ओर दिलाता है। इतिहास ने ‘ओसामा बिन लादेन’ और ‘जार्ज डब्ल्यू बुश’ को पतन के मुखौटे के रूप में तैयार कर दिया है। इनके पश्चात इनके उत्तराधिकारी आते रहेंगे और पतन की दलदल में ये और भी धंसते चले जाएंगे। इनमें से किसी के उत्थान करने की भ्रांति भी हमको होती रहेगी, किंतु वास्तव में वह पतन की डगर पर चल रहा होगा।
इतिहास में हमने रावण और कंस को अंतिम समय तक गर्व की फुंकार मारते देखा है। कभी-कभी लगा कि वह जीत की ओर बढ़ रहे हैं किंतु अंतिम परिणति वही हुई जिसे स्वतंत्र भारत की सरकार ने अपना आदर्श वाक्य स्वीकार किया है-‘सत्यमेव जयते नानृताम्।’ अर्थात अंत में सत्य की ही जय होती है, असत्य की नहीं।
प्रकृति का यही अटल सत्य भारत को उन्नति की ओर ले जा रहा है और इसी अटल सत्य के कारण यह राष्ट्र अपना बहुत कुछ गंवाकर भी बहुत कुछ बचाने में उन क्षणों में भी सफल रहा जब कुछ भी बचने की संभावना शेष नहीं रही थी। यह थोड़े साहस की बात नहीं थी कि पांच सौ वर्षों तक अकेले इस्लाम की निर्मम तलवार को यह राष्ट्र झेलता रहा, किंतु इसकी जिजीविषा फिर भी बनी रही-जिसके फलस्वरूप आज भी यह राष्ट्र जीवित है। परतंत्रता के काल में इसका ताज (कोहेनूर) गया, कुछ सीमा तक इसका राज गया, इसका धर्म (वेद) गया। इसकी भाषा संस्कृत, हिंदी के स्थान पर उर्दू व अंग्रेजी आ गयी। क्या बचा था इसके पास शेष? जो कुछ शेष बचा था-वह इसकी केवल जिजीविषा थी, इसका पुरूषार्थ था और इसकी उद्यमशीलता थी।
”पूज्यवर स्वामी दयानंद जी ने जर्मनी से वेदों को पुन: मंगाया। जिस दिन वेद वापस भारत आये-हम तो उसी दिन को भारतीय उत्थानवाद की ओर ले चलने का शुभ संकेत मानते हैं, क्योंकि वेदों पर आस्था रखने वाला व्यक्ति धार्मिक बाद में होता है पहले वह राष्ट्रप्रेमी होता है।
यही कारण था कि वेदों के यहां आते ही स्वतंत्रता की मांग दिन दूनी और रात चौगुनी गति से बढ़ती चली गयी।”
हमारे आप्त और दिव्य पुरूष श्रीराम और श्रीकृष्ण वेद में आस्था रखते थे। इसलिए वह पहले ‘राष्ट्ररक्षक’ थे बाद में ‘धर्मरक्षक’। देखिये, महर्षि दयानंद का जीवन भी ऐसा ही था। उनके लिए भी राष्ट्र पहले था शेष अन्य बातें बाद में थीं।
आज जो भी व्यक्ति वेद से जुड़ रहा है, मानो वही अपनी निजता से जुड़ रहा है। उसे आत्मबोध हो रहा है। उसे लग रहा है कि हम क्या थे और क्या हो गये? तथा (यदि नहीं सुधरे तो) क्या होंगे अभी? इसलिए ऐसे लोग सरकार की नाथ में झटका मारने को तैयार रहते हैं। वे किसी भी ऐसे अवसर को खाली नहीं जाने देते कि जब उचित समय पर उचित वार ना करें। निजता का यह आत्मबोध राष्ट्र के भविष्य की उज्ज्वलता का प्रतीक है। इस पर जितना निखार आयेगा हम उतने ही प्रगतिशील होंगे और संसार में सम्मान का स्थान प्राप्त करेंगे।
ईश्वर दो प्रसंगों पर हंसता है
किसी विद्वान का कथन है कि ‘ईश्वर को हंसी दो बातों पर आती है’ एक तो तब जब किसी व्यक्ति को अपने अशुभ कर्मों का फल ईश्वर की ओर से मिल रहा हो और कोई उसे उस फल से बचाने की झूठी दिलासा दे रहा हो। दूसरे, तब जब किसी व्यक्ति को अपने शुभ कर्मों का फल मिल रहा हो और दुष्ट लोग इस फल के मिलने में व्यवधान डाल रहे हों।
हमारा आशय ईयाइयत और इस्लाम के अशुभ कर्मों के फल से उसे बचाने में लगे लोगों की ओर है। साथ ही वैदिक धर्मियों (हिंदुओं) के शुभ कर्मों के फल को उनसे छीनने में लगे लोगों की ओर भी हमारा संकेत है। ऐसे लोग अपने ऊपर ईश्वर को भी हंसा रहे हैं। ये वे लोग हैं जो भारत में जनसांख्यिकीय आंकड़े पुन: विघटन और विखण्डन के बीच बो रहे हैं अथवा आतंकवाद की भट्टी में देश को झोंककर इसकी उन्नति में व्यवधान उत्पन्न करना चाहते हैं।
(लेखक की पुस्तक ‘वर्तमान भारत में भयानक राजनीतिक षडय़ंत्र : दोषी कौन?’ से)
पुस्तक प्राप्ति का स्थान-अमर स्वामी प्रकाशन 1058 विवेकानंद नगर गाजियाबाद मो. 9910336715

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