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क्या काबा अल्लाह का घर है ?

क्या काबा अल्लाह का घर है ?
यदि कोई निष्पक्ष होकर इस्लाम के बारे में जानकारी करेगा तो यही कहेगा कि इस्लाम को धर्म कहना उचित नही होगा .क्योंकि इसकी सभी मान्यताएं अंधविश्वास और परस्पर विरोधी विचारों पर आधारित हैं ,जैसे मुसलमान दावा करते हैं कि उनका अल्लाह निराकार और सर्वव्यापी है .लेकिन साथ में यह भी दावा करते हैं , कि वह मक्का में अल्लाह के घर यानी काबा के दर्शन करने के लिए हज करते हैं .और मुसलमानों के इसी अंधविश्वास को सही मानकर हमारी सेकुलर सरकार प्रत्येक हाजी को हजारों रुपये सबसीडी देती है . जो हिन्दुओं द्वारा दिए गए टेक्स से दी जाती है .
लेकिन बड़े दुःख की बात है कि अज तक किसी ने यह बात पता करने का प्रयत्न नही किया कि वाकई काबा अल्लाह का घर है ? और उसे किसने और कब बनाया था ?और काबा के निर्माण से पहले अल्लाह कहाँ रहता था .या अल्लाह को एक ही दरवाजे वाले छोटे से कमरे में क्यों बंद किया गया . दूसरा दरवाजा या खिड़की क्यों नहीं बनायीं गयी ?
प्रस्तुत लेख में कुरान बाइबिल और इस्लाम से पहले के अरब के कवियों की कविताओं के आधार पर काबा के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है क्योंकि खुद मुहम्मद साहब काबा के इतिहास से अनभिज्ञ थे .जैसा कि कुरान की इस आयत में बताया गया है ,
1-रसूल इतिहास से अनभिज्ञ
हे रसूल यह तो परोक्ष की घटनाये हैं , जिसका सही ज्ञान न तो तुम जानते हो , और न तुम्हारी जाति के लोग जानते है ”
सूरा -हूद 11:49

सीधी सी बात है कि जब खुद रसूल को पता नहीं था कि काबा किसने और कब बनाया था तो मुसलमानों की इस बात पर कैसे विश्वास किया जा सकता है कि काबा अल्लाह का घर है .
2-क्या काबा इब्राहीम ने बनाया ?

कुरान में दावा किया गया है कि मक्का स्थित काबा का निर्माण इब्राहीम और उसके पुत्र इस्माइल ने किया था ,जैसा कि इन आयातों में कहा गया है
“याद रखो जब इब्राहीम और इस्माइल इस घर की बुनियाद रख रहे थे तो दुआ की ,हे रब इसको हमारी तरफ से स्वीकार कर ले .सूरा -बकरा 2 :127

याद रखो जब हमने इस घर को लोगों के लिए केंद्र और शांति का स्थल बनाया ,और कहा इब्राहीम के इस निवास को नमाज की जगह बनाओ ” सूरा -बकरा2: 125
3-काबा इब्राहीम ने नही बनाया
लेकिन बाइबिल में इसके विपरीत बात कही है ,
जब सारा कनान में मर गयी , तो इब्राहीम ने हित्तियों से कहा मुझे अपनॆ कबरिस्तान में ऎसी जगह दे दो जो मेरी खुद की हो जाए जहाँ मैं अपने लोगों के मुर्दे गाड़ सकूँ “उत्पत्ति -23:4

जब इब्राहिम की आयु 175 साल हो गयी तो बुढ़ापे के कारण उसकी मौत हो गयी .और उसे उसी भूमि में दफना दिया गया जो उसने हित्तियों से खरीदी थी .”उत्पत्ति -25 :10
इन सबूतों से सिद्ध होता है कि इब्राहीम कनान देश छोड़ कर कभी अरब नहीं गया , तो उसके द्वारा मक्का में काबा बनाने का प्रश्न ही नहीं उठता ,
चूँकि इस विषय में मुसलमानों और ईसाईयों में सदा से मतभेद रहा है , इसलिए इनको छोड़कर हम इस्लाम के पहले अरब के जो कवि थे उनके द्वारा लिखी गयी उन कविताओ का हवाला दे रहे हैं , जो काबा पर लटका दी जाती थीं
4-काबा पर लटकी हुई कविताये

इस्लाम के पहले पढ़े लिखे अरब लोगों में शायरी करने और पढ़ने का शौक था .लोग अंनेक विषय पर कविता करते थे .अक्सर धर्म और इतिहास सम्बन्धी कविता को लिख कर शायर काबा की दीवार के अन्दर और बाहर लटका देते थे .ऐसी कविता को “शनका कसायद -شنقا قصائد ” कहा जाता है .इसका अर्थ लटकायी हुई कविता (hanged poems) होता है .इन कविताओं में जिस छंद का प्रयोग किया जाता था उसे ” कसीदः ” कहा जाता था ,जिसा बहुवचन ” कसायद – قصائد ” है .अब तक एसे सात कवियों के कसीदे उपलब्ध है और इनके संग्रह को “अल मुल्लिकात – المعلقات ” कहा गया है .इनमे इस्लाम से पहले के रीति रिवाज ,इतिहास ,और धार्मिक आस्था के बारे में जानकारी मिलती है ,जो प्रमाणिक है .

5-अरब में कई काबा थे

अरब के इतिहास में कई काबा का उल्लेख मिलता है जिनमे मूर्तिपूजक अरब पूजा करते थे . ऐसे ही कुछ काबा का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है .इनमे कुछ का निर्माण ईसाईयों और यहूदियों ने किया था और कुछ को खुद अरब लोगों ने बनाया था ,
A-लात देवी का मंदिर
इस्लाम के पहले अरब के तायफ शहर में एक मंदिर था ,जिसमे तीन देवियों की पूजा होती थी .इन देवियों में “अल लात – اللات‎” को बड़ा माना जाता था , और उसी के नाम से मदिर का नाम रखा गया था . इस्लाम के बाद अबू सुफ़यान ने इसे तुड़वा दिया था .लोग इस मंदिर को भी अल्लाह का घर मानते थे .
B-नजरान का काबा
इस्लाम से काफी पहले अरब के” नजरान – نجران ” शहर से 25 किलो मीटर दूर एक पहाड़ी पर एक चौकोर कैथेड्रल (cathedral) बना हुआ था . खजूर के के बाग़ थे .लोग इसको नजरान का काबा कहते थे . उस समय चर्च का मुख्य पादरी “बनी अब्दल मदान इब्न दयान अल हारिसी ” था .इस काबा के बारे में अरब के शायर “अल अशआ -اَلأَعْشَ”( d.c. 570– 625 ) ने अपनी यह कविता लिखी थी .

“وكعبة نجران حتمٌ عليــــك حتى تُناخـي بأبوابهـــا
تزور يزيداً بن عبد المدان وقيساً هم خير أربابهـا
وشاهِهدنا الورد والياسمين والمسْمعـات بقصَّابهـــا

“आप नजरान के काबा का दर्शन अवश्य करिए ,जहाँ अतिथि की तरह सम्मान देने को यजीद बिन अब्दल मदान और सहचर मौजूद होंगे .यहाँ चमेली के फूलों की सुगंध घंटियों की मधुर ध्वनि फैली हुई है .”

the Kaaba of Najran is a must for you (to visit),
Until you are honored (as a guest) at its doors.
To visit Yazeed Bin Abdul Madan,
And Qays, (they) are its stewards,
And the sight of flowers and jasmines will greet you there,
And the ringing chimes of its threshold.

C- शद्दाद का काबा
अरब इतिहास के अनुसार इस्लाम से 1400 अरब की “आद – عاد” कबीले के बादशाह “शिद्दाद – شدّاد) ” ने एक भव्य उपासना स्थल बनवाया था .जिसे “इरम -أرام ” कहा जाता था . इसमे कई ऊंन्चे स्तम्भ (Pillars) थे .इस बादशाह को ” नूह -(نوح ” का वंशज माना जाता है .उस समय के अरब इसी भवन में इबादत और पूजा करते थे . इसका पूरा विवरण अरबी किताब “अलिफ़ लैला(One Thousand and One Nights) में प्रष्ट 277 से 279 तक मिलता है . और कुरान में भी इसका उल्लेख इस आयात में दिया है .

” क्या तुमने नहीं देखा रब ने के आद साथ क्या किया ,जो स्तभों वाले इरम बनाते थे . जिसके जैसा किसी देश ने नहीं बनाया .”
सूरा -अल फज्र 89:6 -8

D- बनू गफ्तान का काबा
मदीना के उत्तर पश्चिम में बनू गफ्तान नाम का कबीला रहता था .वहां सैकड़ों साल पहले एक उल्कापिंड ( meteorite ) गिर गया था . लोगों ने उसे उठा कर एक मंदिर में रख दिया था .उस मंदिर को लोग “कअबतुल गफ्तान- – كعبةُالغفطان ” कहते थे .वहां लोग उसी उल्का पिंड की पूजा करते थे .हिजरी सन 7 यानी सन 628 में मुहम्मद साहब ने 1600 सैनिकों की फ़ौज लेकर इस मंदिर को तुडवा दिया था

E-सनआ का काबा
इस्लाम से पहले यमन में इसाईं बादशाह हिमायार अबराह की हुकूमत थी .उसके दक्षिण प्रान्त के गवरनर “अबराह अल अशरफ -أبرهة الأشرم ” ने खुद को स्वतन्त्र घोषित करके सन 525 ईस्वी में यमन की राजधानी “सनआ -صنعاء”में
एक भव्य कैथड्रल (cathedral ) बनवाया था . और आसपास के अरब लोगों को आदेश दिया कि वह उसी का हज किया करे .और उसी की तरफ इबादत किया करें ..लेकिन एक बार कुछ अरब लोगों ने उसे अपवित्र कर दिया जिस से नाराज होकर अबराह ने हाथियों की फ़ौज लेकर मक्का के काबा को नष्ट करने के लिए चढ़ाई कर दी .इतिहास में इसे “आम अल फील – عام الفيل‎ ” यानी हाथियों का साल(Year of the Elephant ) कहा जाता है .इसी साल मुहम्मद साहब का जन्म हुआ था .उस समय इस कैथेड्रल को यमन का काबा कहा जाता था . लेकिन इस्लाम के बाद इसे नष्ट कर दिया .
F-यमन का प्राचीनं मंदिर
यमन के अखबार के अनुसार वहाँ के पुरातत्व विभाग ने 25 दिन खुदाई कर के ईसा पूर्व पांचवी सदी का एक भव्य और विशाल मंदिर का पता किया है , जो पूरे अरब में सबसे बड़ा मंदिर है .इसकी लम्बाई 42 मीटर और चौडाई 35 मीटर है .इसमे जाने के लिए 16 गज लम्बी ग्रेनाईट की सीढियाँ भी बनी हुई है .वहां के निर्देशक “खिरान मोहसिन जुबैरी ” ने बताया कि पहले यहाँ ” ओमी” देवता की पूजा होती थी .(Source: Yemen Observer (21 January 2006)

G-जिल खलसा का काबा
इस्लाम से पहले फिलिस्तीन के उत्तरपश्चिम में एक पहाड़ी के ढलान पर “जिल खलसा – ذِي الْخَلَصَةِ “नामका शहर था .वहाँ एक मंदिर था जिसमे अरब के लोग अपने देवताओं की पूजा करते थे .और आसपास के लोग उस मंदिर का दर्शन करने आते थे . इसके बारे में हदीसों में भी बताया गया है , जैसे ,
“अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल ने बताया है , जब तक ” दौस – دَوْسٍ “कबीले की एक औरत जिल खलसा के मंदिर में जाकर वहाँ के देवता की परिक्रमा नही कर लेगी तब तक दुनिया का अंतिम दिन नहीं आयेगा ”
सही मुस्लिम – किताब 41 हदीस 6944
“अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल ने बताया है , जब तक ” दौस -دَوْسٍ”कबीले की एक औरत अपने नितम्ब ( buttocks ) सबको दिखाते हुए जिल खलसा के मंदिर की परिक्रमा नहीं कर लेगी दुनिया का अंतिम दिन नहीं आयेगा “
Narrated Abu Huraira:
Allah’s Messenger () said, “The Hour will not be established till the buttocks of the women of the tribe of Daus move while going round Dhi-al-Khalasa.” Dhi-al-Khalasa was the idol of the Daus tribe which they used to worship in the Pre Islamic Period of ignorance.
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“حَدَّثَنَا أَبُو الْيَمَانِ، أَخْبَرَنَا شُعَيْبٌ، عَنِ الزُّهْرِيِّ، قَالَ قَالَ سَعِيدُ بْنُ الْمُسَيَّبِ أَخْبَرَنِي أَبُو هُرَيْرَةَ ـ رضى الله عنه ـ أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم قَالَ ‏ “‏ لاَ تَقُومُ السَّاعَةُ حَتَّى تَضْطَرِبَ أَلَيَاتُ نِسَاءِ دَوْسٍ عَلَى ذِي الْخَلَصَةِ ‏”‏‏.‏ وَذُو الْخَلَصَةَ طَاغِيَةُ دَوْسٍ الَّتِي كَانُوا يَعْبُدُونَ فِي الْجَاهِلِيَّةِ‏.‏
सही बुखारी – जिल्द 9 किताब 88 हदीस 232

6-अरब में कोई नबी नहीं आया
सन 628 इसवी में मुहम्मद साहब ने अबूसुफ़यान के हाथों रोम के सम्राट हरकुलिस (Herculis) के नाम एक पत्र भेजा था . जिसमे उस से इस्लाम कबूल करने का न्योता दिया गया था . पत्र पढ़कर हरकुलिस ने अबू सुफ़यान से मुहम्मद और इस्लाम के बारे में कुछ सवाल किये थे .जिनका उत्तर अबू सुफ़यान ने दिया था .ऐसे ही एक प्रश्न का उत्तर इस हदीस में दिया गया है .

“जब हरकुलिस ने अबू सुफ़यान से पछा क्या तुम्हारी जाति में मुहम्मद से पहले कोई नबी आया था ? तो सुफ़यान ने कहा नही ”
बुखारी – जिल्द 1 किताब 1 हदीस 6
इस हदीस से सिद्ध होता है कि मुसलमान झूठ बोलते हैं कि इब्राहीम ने काबा बनाया था . जब मुहम्मद से पहले कोई नबी अरब नहीं गया था , तो इब्राहीम अरब् में काबा कैसे बना सकता था .वास्तव में का निर्माण मुहम्मद साहब के पुरखों ने किया था , ताकि काबा से होने वाले चढ़ावे से उनकी कमाई हो सके ,जैसा कि अरब के एक कवि ने कहा है ,

7-काबा कुरैशियों ने बनवाया
मुहम्मद साहब के कबीले का नाम कुरैश है , पहले यह लोग काफिले वालों को अपने ऊंटों से सामान भेजा करते थे , चूँकि मक्का यमन और सीरिया के व्यापर मार्ग में पड़ता था ,इसलिये कमाई करने के लिए कुरैश ने बीचमें काबा बना दिया , ताकि उसकी चढोती से कमाई हो सके .इसके बारे में अरब के शायर “जुहैर इब्न अबी सलमा -زهير بن أبي سلمى ” ( c. 520 – c. 609 ) ने अपनी कविता में इस प्रकार वर्णन किया है
“मैं कसम खाता हूँ इस मन्दिर ( काबा ) की , तुम लोग जिसकी परिक्रमा करते हो ,कि जिन लोगों ने इसको बनाया वह कुरैश थे .और उनके साथ जुहरुम के लोग भी शामिल थे .(यह दौनों कबीले रिश्तेदार थे )

“Then I swear by the temple, round which walk the men,who built it from the tribes ,of Quraysh and Jurhum.

“فَأَقْسَمْتُ بِالْبَيْتِ الذِّي طَافَ حَوْلَهُ

رِجَـالٌ بَنَوْهُ مِنْ قُرَيْشٍ وَجُرْهُـمِ

يَمِينـاً لَنِعْمَ السَّـيِّدَانِ وُجِدْتُمَـا

कुरान भी इस बात की पुष्टि करती है कि काबा की कमाई से कुरैश भुखमरी से बच गए , कुरान में कहा है ,
“जिसने उन्हें भूख में खिलाया और भूख के भय से निश्चिन्त किया ”
सूरा -कुरैश 106 :4

8-काबा में प्रसूति गृह

मुहम्मद साहब के चचेरे भाई “अली इब्न अबी तालिब -علي بن أبي طالب ” की माता का नाम ” फातिमा बिन्त असद -فاطمة بنت أسد” था . और जब वह काबा की परिक्रमा ” तवाफ़ -(طواف ” कर रही थी तो गर्भवती थी .अचानक उसको प्रसववेदना होने लगी .इसलिये वह काबा के अन्दर एक कोने में चली गयी , जिस ” रुक्ने यमनी – الركن اليماني ” यानी यमनी कोना ( Corner of yaman ) कहा जाता है. .उसी जगह काबा के भीतर ही सन 599 ईसवी में अली का जन्म हुआ था , अली की माता तीन दिन तक काबा में ही रही .यद्यपि काबा की कई बार मरम्मत की जा चुकी है ,लेकिन दायीं तरफ वह जगह आज भी साफ दिखाई देती है , यही नहीं अली के जन्म पर किसी शायर ने जो कविता लिखी थी वह काबा के भीतर उसी कोने में लगी हुई है .वह कविता इस प्रकार है .

अली के जन्म पर काबा में लिखी हुई कविता
A Poem About the Birth of Imam Ali, PBUH

( أبيات شعر في ولادة أمير المؤمنين، علي بن أبي طالب، عليه السلام:)

في الكعبة واتّخذتها كالصدف كالدرّ ولدت يا تمام الشّرف
والكعبة وجهها تجاه النجف فاستقبَلَتِ الوجوه شطر الكعبة ”
“हे परिपूर्ण तुम कब में एक मोती की तरह पैदा हुए . जिसे अल्लाह ने शरण में ले लिया .और उच्चता प्रदान की .लोग तो काबा की तरफ चेहरा करते हैं ,लेकिन काबा ने अपना चेहरा नजफ़ की तरफ किया हुआ है .”

“O thee Complete Exaltedness, born like a pearl,
In the Kaabah, which thee took for a shell!
So the faces turn towards the Kaabah,
And yet the Kaabah faces towards Najaf!

वास्तव में वर्तमान काबा मुसलमानों का पहला ” क़िबला – القبلة ” यानि नमाज पढ़ने की दिशा (direction of paryer ) यरूशलेम स्थित ” मस्जिदुल अक्सा- – المسجد الأقصى ” है . जिसे “अल कुद्स – – القدس ” भी कहा जाता है .मुसलमान पहले उसी की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ते थे.इसी को “ऊला किबलतैन -أولى القبلتين” यानी दौनों में पहला किबला कहा जाता है . अर्थात काबा को बाद में अल्लाह का घर घोषित कर दिया गया .
9-रसूल की काबा तुड़वाने की इच्छा
“आयशा ने कहा कि रसूल ने मुझ से कहा कि मैं तुम्हें यह गुप्त बातें बता रहा हूँ ,फिर मेरे पूछने पर रसूल ने बताया कि आज भी लोग इस्लाम के पहले की जाहलियत भरी परम्परा से चिपके हुए हैं . मेरा इरादा है कि इस काबा को तुड़वा दिया जाए और इसमे दो दरवाजे बना दिए जाएँ ,एक अन्दर जाने के लिए और दूसरा बाहर जाने के लिए .इब्न जुबैर ने इस हदीस की पुष्टि की है ”

“عَائِشَةُ تُسِرُّ إِلَيْكَ كَثِيرًا فَمَا حَدَّثَتْكَ فِي الْكَعْبَةِ قُلْتُ قَالَتْ لِي قَالَ النَّبِيُّ صلى الله عليه وسلم ‏ “‏ يَا عَائِشَةُ، لَوْلاَ قَوْمُكِ حَدِيثٌ عَهْدُهُمْ ـ قَالَ ابْنُ الزُّبَيْرِ بِكُفْرٍ ـ لَنَقَضْتُ الْكَعْبَةَ فَجَعَلْتُ لَهَا بَابَيْنِ باب يَدْخُلُ النَّاسُ، وَبَابٌ يَخْرُجُونَ ‏”‏‏.‏ فَفَعَلَهُ ابْنُ الزُّبَيْرِ‏.‏ ”

बुखारी – जिल्द 1 किताब 3 हदीस 128

इस लेख के माध्यम से हम लोगों से अनुरोध करते हैं कि मुसलमानों के अंधविश्वास और अज्ञान के आधार पर हज में देने वाली सबसिडी का विरोध करें .और मुसलमानों से भी गुजारिश है कि रसूल की इस इच्छा को पूरी करें कि काबा को तोड़ कर उसमे दो दरवाजे बनवा दिए जाये . वर्ना दम घुट जाने से कहीं अल्लाह मर न जाये . हो सकता है अब तक मर भी गया हो .अगर वह निराकार होता तो उसे घर की क्या जरुरत थी ?हमारे विचार से काबा को अल्लाह का घर नहीं प्रसूतिगृह (Maternity Home ) कहना उचित होगा !

ब्रजनंदन शर्मा

लेखक के यह निजी विचार हैं इनसे उगता भारत समाचार पत्र का कोई संबंध नहीं है।

(200/136)

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