मदनी और अतिथि धर्म का अतिक्रमण

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भाजपा के फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ ने मौलाना अरशद मदनी द्वारा ओ३म और अल्लाह के एक होने संबंधी दिए गए बयान के संदर्भ में यह कहना उचित ही है कि भारत हिंदू राष्ट्र था, है और आगे भी रहेगा। यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हिंदू कोई मजहब या संप्रदाय नहीं है। जिस पर योगी जी का भी स्पष्ट कहना है कि हिंदू एक सांस्कृतिक शब्दावली है जो भारत के हर नागरिक के लिए संबोधन के रूप में प्रयोग की जाती है। यह बात तब और भी अधिक स्पष्ट हो जाती है जब भारत का कोई व्यक्ति हज करने के लिए जाता है तो वहां उसका संबोधन हिंदू नाम से होता है। वहां किसी को परेशानी नहीं होती। उस परिप्रेक्ष्य में आप देखेंगे तो भारत हिंदू राष्ट्र है।
हमें ध्यान रखना चाहिए कि ‘हिंदू’ के बारे में भारत के अनेक विद्वानों सहित न्यायालयों का भी यह मत रहा है कि यह हमारी राष्ट्रीयता को प्रकट और प्रतिबिंबित करने वाला शब्द है। हमारी राष्ट्रीयता के संदर्भ में इसके प्रयोग होने का अभिप्राय है कि भारत का हर नागरिक हिंदू है। हिंदू कोई जाति सूचक शब्द नहीं है। यह आर्य वैदिक संस्कृति का उत्तराधिकारी है। आर्य समाज जैसी संस्था को हिंदू की कई पौराणिक मान्यताओं से असहमति हो सकती है, पर इस सबके उपरांत भी हम सब खूबसूरती के साथ एक दूसरे के साथ मिलकर रहना जानते हैं।
भारत की वैदिक संस्कृति के प्रति समर्पित भाव रखने वाला कोई भी हिंदू सनातनी या वैदिक धर्मावलंबी ओ३म और अल्लाह के एक होने की बात से सहमत नहीं हो सकता। क्योंकि जिस अल्लाह के नाम पर लोगों ने खून की नदियां बहाई हैं और आज भी खून खराबा कर रहे हैं, वह अल्लाह दया और करुणा के सागर उस ओ३म के जैसा नहीं हो सकता जो प्रत्येक प्राणी में एक ही ज्योति को प्रतिबिंबित होते हुए देखने के लिए मानव समाज को प्रेरित करता है और उसे प्रत्येक प्रकार की हिंसा से रोकता है।
वैदिक धर्म की खूबसूरती ही यह है कि ये संपूर्ण सृष्टि को एक ही परमपिता परमेश्वर की ज्योति से ज्योतित आलोक नगरी के रूप में देखता है और इसके प्रत्येक प्राणी के प्रति दया और करुणा का भाव रखना अपना धर्म मानता है। वेद – धर्म का सौंदर्य बोध उसकी अहिंसा में झलकता है। जो वेद – धर्म के सौंदर्य को समझ जाता है ,वह वसुधा को ही परिवार मानने लगता है। ऐसा व्यक्ति किसी के अधिकारों का अतिक्रमण नहीं करता। जबकि इस्लाम को मानने वाले लोगों ने केवल और केवल खूनखराबा करने को ही अपने मजहब का सौंदर्य माना है। हमारे ऋषियों की मान्यता रही है कि अहिंसा का सामान्य अर्थ ‘हिंसा न करना’ है। इसका व्यापक अर्थ है – किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन और वाणी से कोई क्षति न पहुँचाना। मन में किसी का अहित न सोचना, किसी को कटुवाणी आदि के द्वार भी हानि न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था में, किसी भी प्राणी कि हिंसा न करना, यह अहिंसा है।
ओ३म और अल्लाह के एक होने की बात करने वाले इस्लामिक विद्वानों से ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे अहिंसा की इस सौन्दर्य परक परिभाषा को अपनाकर अपने मजहब के लोगों को तदनुसार आचरण करने के लिए प्रेरित कर सकें?
हिंदू शास्त्रों की दृष्टि से “अहिंसा” का अर्थ है सर्वदा तथा सर्वथा (मनसा, वाचा और कर्मणा) सब प्राणियों के साथ द्रोह का अभाव। (अंहिसा सर्वथा सर्वदा सर्वभूतानामनभिद्रोह: – व्यासभाष्य, योगसूत्र 2। 30)। अहिंसा के भीतर इस प्रकार सर्वकाल में केवल कर्म या वचन से ही सब जीवों के साथ द्रोह न करने की बात समाविष्ट नहीं होती, प्रत्युत मन के द्वारा भी द्रोह के अभाव का संबंध रहता है।
प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते हैं। वह किसी भी धर्म विरोधी और देशद्रोही को कड़ी फटकार लगाते हुए देखे गए हैं। यही कारण है कि अपने दोगलेपन के कारण देश के सामाजिक परिवेश को जो लोग विकृत करने में लगे रहते हैं, योगी की उपस्थिति मात्र से भी वे भयभीत हो जाते हैं। मौलाना अरशद मदनी ने चाहे ओ३म और अल्लाह के एक होने की बात कह दी हो, पर अब उनकी फजीहत उनके अपने मजहबी मंच पर भी हो रही है, लोग तेजी से मौलाना मदनी के बयान से हुई क्षति की पूर्ति करने के लिए पापड़ बेलते नजर आ रहे हैं। इसका कारण केवल एक है कि क्षतिपूर्ति में लगे लोग यह भली प्रकार जानते हैं कि देश में इस समय योगी आदित्यनाथ जैसे नेता भी हैं। जिन्हें हिंदुत्व के समर्थन में बोलने में तनिक भी संकोच नहीं होता है।
अब आते हैं महर्षि मनु पर। जहां तक हमारे महर्षि मनु की बात है तो वे सृष्टि के सबसे पहले राजा हैं। जिन्होंने अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए राजा बनना स्वीकार किया था। उनके पुत्र प्रियव्रत और प्रियव्रत के पुत्र उत्तानपाद थे। इसका एक स्वर्णिम और बहुत ही गौरवशाली इतिहास हमारे पास उपलब्ध है। यद्यपि आज के इतिहास से हमारे इस स्वर्णिम इतिहास को निकाल दिया गया है, पर इसका अभिप्राय यह नहीं है कि हिंदू समाज के पास मदनी जैसे लोगों को जवाब देने वाले और शास्त्रार्थ करने वाले लोग उपलब्ध नहीं हैं। जैन संत लोकेश मुनि ने संपूर्ण हिंदू समाज की ओर से मौलाना मदनी को करारा प्रत्युत्तर दिया है, उन्हें खुले मंच पर आकर शास्त्रार्थ करने की चुनौती दी है। जिसे मदनी जैसे लोग कभी स्वीकार नहीं कर सकते। लोकेश मुनि ने मदनी को स्पष्ट बता दिया कि महर्षि मनु की पीढ़ी में ही जन्मे ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम से हमारे इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।
भारतवर्ष के गौरवपूर्ण अतीत को इस्लाम की उस काली चादर के साथ नहीं जोड़ा जा सकता जिसने इंसानियत का खून करना अपना मजहबी फर्ज समझा और उसी मजहबी फर्ज के उन्माद के वशीभूत होकर आज भी काले कपड़ों में आतंकवाद फैलाने के घृणित कार्य में लगा हुआ है। जब हम वैदिक धर्म और इस्लाम की तुलना करते हैं तो समझ लेना चाहिए कि यह सृजन और विध्वंस की तुलना के समान है। अपने गुण, कर्म, स्वभाव के कारण ओ३म सृजनात्मकता का प्रतीक है तो अल्लाह विध्वंसात्मक मनोवृति का प्रतीक है। अल्लाह के मानने वाले विध्वंस कर रहे हैं और ओ३म को मानने वाले सृजन कर रहे हैं। दोनों की मनोवृति और मनोदशा अपने अपने इष्ट की महानता या श्रेष्ठता को प्रकट कर देती हैं।
यहां पर यह स्पष्ट करना भी आवश्यक है कि मौलाना मदनी ने यह टिप्पणी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान पर की जिसमें उन्होंने कहा था कि मुसलमान चाहें तो अपने धर्म पर रहें या अपने पूर्वजों की ओर लौट आएं। मौलाना मदनी ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को इस समय अवसर पर “जाहिल” भी कहा। इस संदर्भ में हम मौलाना मदनी को यह भी बताना चाहते हैं कि यदि उनके पूर्वज भारतीय मूल के नहीं हैं तो वे हमारे देश में एक विदेशी मजहब के मानने वाले होकर एक “अतिथि” के रूप में रह रहे हैं । जिन्हें अपनी सीमाएं पहचाननी चाहिए। आरएसएस प्रमुख इस देश के बहुसंख्यक समाज के सबसे बड़े और सम्मानित नेता हैं। हमारे आपसी मतभेद हो सकते हैं , किसी भी मुद्दे पर असहमति भी हो सकती है, किसी भी शास्त्र की व्याख्या को लेकर भी असहमति हो सकती है, पर इसका अभिप्राय यह नहीं है कि हम अपने बहुसंख्यक समाज के बड़े नेता के प्रति किसी विदेशी मजहब को मानने वाले व्यक्ति के द्वारा की गई अभद्र टिप्पणी को सहज स्वीकार कर लें। हम मतभेदों के साथ जीना जानते हैं । मदनी जैसे नेताओं को यह समझना चाहिए कि हम नींबू को अपने दूध के साथ कभी भी न मिलने देने के लिए अपनी सामूहिक चेतना के साथ वचनबद्ध भी हैं।
अंत में हम यह भी बताना चाहेंगे कि जिस समय मौलाना मदनी ने ओ३म और अल्लाह के एक होने की बात कही, उसी समय उन्होंने एक ऐसी बात भी कही जिसे हमने अधिक ध्यान से नहीं सुना। अरशद मदनी ने कहा, ‘जिस तरह आज दुनिया भटकी हुई है ( उसी प्रकार मोहम्मद साहब के आने से पहले) हम भी भटके हुए थे। हमने 365 देवी देवता बना रखे थे। सुबह उठकर हम भी उनकी इबादत करते थे। हम मनु के बताए हुए रास्ते से भटके हुए थे।’
भारतवर्ष में सेकुलरिज्म के नाम पर जो लोग पुरुषोत्तम नागेश ओक जैसे विद्वानों के इस दावे को नकारते रहे हैं कि मक्का मदीना में कभी 365 हिंदू देवी देवताओं के मंदिर हुआ करते थे, जिन्हें तोड़फोड़ कर वहां पर मस्जिदें बनाई गई थीं , उसे मदनी ने एक झटके में स्वीकार कर लिया। उन्होंने ऐसा कह कर इस रहस्य से पर्दा हटा दिया कि अरब कभी-कभी वैदिक हिंदू स्वरूप था। महाभारत के पश्चात वहां पर भी पाखंड फैला और कई प्रकार की सामाजिक कुरीतियां विकसित हो गई। उन्हीं के फलस्वरूप वहां पर मूर्ति पूजा का भी प्रचलन हुआ । 365 हिंदू देवी देवताओं के मंदिरों या उनकी मूर्तियों के अस्तित्व को स्वीकार करके मदनी ने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि अरब निश्चित रूप से कभी वैदिक ऋषियों की तपोभूमि रहा है। निश्चित रूप से मदनी जैसे लोगों को अपने मूल धर्म को पहचानना चाहिए।
योगी आदित्यनाथ ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत प्रारंभ से ही एक आर्य हिंदू राष्ट्र रहा है, आज भी है और आगे भी रहेगा। योगी आदित्यनाथ ने ऐसा कहकर यह स्पष्ट कर दिया कि भारत की चेतना शक्ति समय जागृत है और वह अपनी जागृतावस्था में पूर्ण विवेक से यह निर्णय लेने में सक्षम और समर्थ है कि भारत का हित किसमें है और अहित किसमें है? जब भारत देश या समाज की चेतना शक्ति पूर्ण विवेक के साथ निर्णय लेने में सक्षम और समर्थ होती है तो समझना चाहिए कि वह अपनी दिशा अपने आप तय कर सकता है और आज का भारत ऐसा ही सक्षम समर्थ और सशक्त भारत है जो अपने निर्णय अपने आप ले सकता है और न केवल निर्णय ले सकता है बल्कि उन निर्णयों को लागू करने की क्षमता भी रखता है । हम यह भली प्रकार जानते हैं की ओ३म क्या है, ओ३म के उपासक कौन हैं और ओ३म की उपासना के लाभ क्या हैं? इसी प्रकार अल्लाह क्या है! अल्लाह के उपासक कौन हैं और अल्लाह की उपासना के लाभ- हानि क्या है ? “ईश्वर अल्लाह तेरो नाम” गा गाकर देश को बंटवाने वाले लोग अब चले गए। ऐसे में मदनी जैसे लोगों को अपनी जुबान सुधार लेनी चाहिए और उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि यदि वह विदेशी मजहब को अपनाकर धर्म भूमि भारत में रहना चाहते हैं तो उन्हें एक अतिथि के रूप में रहने की छूट हो सकती है, पर अतिथि धर्म का अतिक्रमण करने की छूट कभी नहीं हो सकती।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

    

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