राजस्थान की कलात्मक विरासत को सहेजती महिलाएं

शेफाली मार्टिन्स
जयपुर, राजस्थान

राजस्थान के विभिन्न हस्तशिल्प कलाओं में लाख की चूड़ियां अन्य आभूषणों से बहुत पहले से मौजूद थी. वैदिक युग की यह ऐतिहासिक विरासत कला पीढ़ी-दर-पीढ़ी उन व्यापारियों और कारीगरों के हाथों से चली आ रही है जो निर्माण से लेकर बिक्री तक की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग हैं. इसके विभिन्न रंगों और श्रमसाध्य प्रक्रिया के पीछे एक समृद्ध सांस्कृतिक संदर्भ जुड़ा है. बड़ी बात यह है कि इस विरासत को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाने में महिलाओं का विशेष योगदान है. लाख की चूड़ियां बनाने वाली इन्हीं महिलाओं में सलमा शेख और उनकी बहू आफरीन शेख भी एक हैं.

पुष्कर के बाहरी इलाका गन्हेरा गांव की रहने वाली ये महिलाएं इस पारंपरिक काम को उत्साह के साथ आगे बढ़ा रही हैं. उनके परिवार को व्यापार और कला विरासत में मिली है. पूरा परिवार चूड़ी बनाने के काम में लगा हुआ है. सलमा और आफरीन अपने उत्पाद बेचने के लिए दो दुकानें चलाती हैं. ज्ञात रहे कि राजस्थान में ज्यादातर लाख की चूड़ियां बनाने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग हैं. सलमा दिन में पुष्कर के मुख्य बाजार में अपनी 100 साल पुरानी दुकान चलाती है. जबकि उनकी बहू घर से सटे दुकान पर बैठती है, जो उनके वर्कशॉप के बगल में है, जहां वह चूड़ियां बनाती हैं. वह अपने हुनर से चूड़ियों में रंग भरती हैं जो ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करती है.

अन्य प्राचीन शिल्पों की तरह यह कला भी स्थिरता और प्राकृतिक रंगों से परिपूर्ण है. लाख कीड़ों द्वारा स्वाभाविक रूप से उत्पादित एक प्राकृतिक रालयुक्त पदार्थ है. झारखंड जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन पेड़ों में होता है. सलमा परिवार इसे राल को गांठ के रूप में प्राप्त करते हैं. मूल यौगिक बनाने के लिए वे इसे दो अन्य प्राकृतिक अवयवों के साथ पिघलाते हैं. फिर अन्य प्रक्रियाओं को पूरा करते हुए चूड़ी तैयार की जाती है. सलमा कहती हैं, “हम चूड़ियों को अलग-अलग रंग देने के लिए रंगीन लाह के पेस्ट का उपयोग करते हैं.” वह बताती हैं कि आजकल एक पतली धातु की चूड़ी को साँचे के रूप में उपयोग किया जाता है, लेकिन केवल लाख की चूड़ियों में लकड़ी के साँचे का उपयोग वांछित आकार देने के लिए किया जाता है.

यह पूरी तरह से हस्त श्रम प्रक्रिया है जिसमें गर्म अंगारों के सामने घंटों बैठने की आवश्यकता होती है. सलमा ने यह कला बचपन से अपने माता-पिता को देखते हुए सीखी, जबकि आफरीन ने इसे बड़ी उम्र में सीखा है. आफरीन कहती हैं “मैंने हाई स्कूल तक की पढ़ाई की है. मैं और पढ़ सकती थी, लेकिन मुझे इस काम में मजा आता है और शादी के बाद भी कर रही हूं. मेरा एक पांच साल का बेटा और दूसरी पांच महीने की बेटी है. मैं बहुत खुश हूं कि मैं घर, बच्चों और अपने काम को एक साथ मैनेज कर पा रही हूं.” 24 साल की आफरीन न केवल परिवार के साथ लाख की चूड़ियां बनाती है बल्कि वह एक प्रभावी सेल्स वीमेन भी हैं. जो अपनी चूड़ियों के टिकाऊपन के बारे में संभावित खरीदारों को आश्वस्त करती हैं.

राजस्थान में लाख की चूड़ियां बनाने का कार्य हमेशा से महिला उद्यमिता के हाथों में रहा है. यहां पीढ़ियों पहले हर गांव में एक मनिहार परिवार (स्थानीय भाषा में चूड़ी बनाने और बेचने वाले परिवार को कहा जाता है) हुआ करता था, जिन्हें गांव में रहने के लिए एक विशेष स्थान दिया जाता था. मनिहारन घर-घर चूड़ियां बेचने जाती थीं और बदले में चांदी या सोने की अंगूठी अथवा गेहूं प्राप्त करती थीं. इस समुदाय की केवल महिलाएं ही चूड़ियां बेचती थीं क्योंकि नई दुल्हनें और गांव की अन्य महिलाएं इनसे चूड़ी पहनने में सहज महसूस करती थीं. जबकि घर के पुरुष चूड़ियां तैयार करने का काम करते थे. इस पेशे में लड़के और लड़कियां दोनों समान रूप से अपने माता-पिता को देखकर इस कला को सीखते हैं, लेकिन आमतौर पर महिलाएं ही इस व्यवसाय को संभालती हैं. इस संबंध में सलमा के पति मुहम्मद शरीफ शेख कहते हैं कि “पुरुष ज़्यादातर चूड़ियां बनाने के बुनियादी कामों में शामिल होते हैं.

सलमा कहती हैं कि पहले हमारे पास महिलाएं अपनी कलाइयों के आकार की चूड़ियां बनवाती थीं, जो एक बार पहनने के बाद उतारी नहीं जा सकती थी. वह एक-दो साल बाद ही उसे उतारती थीं, लेकिन आजकल हर औरत अपने कपड़ों से मैच करती हुई चूड़ियां खरीदना चाहती है, इसलिए हम उन्हें विभिन्न रंगों में बनाते हैं. पहले चूड़ियां मोटी हुआ करती थीं, अब महिलाएं पतली चूड़ियां ही पहनना पसंद करती हैं. वह बताती हैं कि राजस्थान में हिंदू विवाह की रस्में लाखों की चूड़ियों के बिना अधूरी मानी जाती है. इससे पहले हर त्यौहार में भी हमारी चूड़ियों की बिक्री बहुत ज्यादा होती थी. आजकल फैशन और बिजनेस प्रमोशन के लिए वह लाखों चूड़ियों पर तस्वीरें और नाम भी लगाती हैं. खासतौर पर शादियों के लिए बनी चूड़ियों के सेट पर. वह बताती हैं कि दो चूड़ियों के एक सेट की कीमत 40 रुपये से लेकर 2500 रुपये तक होती है. सलमा के पति मुहम्मद शरीफ शेख एक दिन में करीब 150 से 180 चूड़ियां बनाते हैं.

सलमा के पति कहते हैं, “यह कला इन महिलाओं द्वारा ही आगे बढ़ाया जा रहा है. इससे उन्हें रोजगार भी मिलता है. जो घर में बैठकर चूड़ियां तैयार करती हैं उनके लिए घर बैठे पैसे कमाने का एक अच्छा माध्यम है. उनकी बनाई चूड़ियां पुष्कर से लेकर अजमेर शरीफ तक भेजी जाती हैं.’ वह जिन महिलाओं को काम पर रखती हैं, वे चूड़ियों में नग और अन्य सौंदर्य सामग्री जोड़कर प्रतिदिन लगभग 100 से 150 रुपये कमाती हैं. सलमा कहती हैं, “मौसम कोई भी हो, घंटों अंगारों के सामने बैठना वास्तव में थका देने वाला होता है. लेकिन चूंकि यह मेरा खुद का काम है, इसलिए मैं न केवल अपनी पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ाने में बल्कि खुद के पैसे कमाने से भी खुश हूं. आफरीन को भी अपने खर्चे के लिए पति से पैसे मांगने की भी जरूरत नहीं होती है.

तकनीक के इस युग में सलमा और उसके परिवार ने भी अपने व्यवसाय को अपडेट करने का प्रयास किया है. वह पिछले दो सालों से व्हाट्सएप ग्रुपों के जरिये अपने कारोबार का ऑनलाइन प्रचार भी कर रहे हैं. हालांकि उन्हें ई-कॉमर्स साइटों के बारे में कोई जानकारी नहीं है, लेकिन उन्हें लगता है कि अगली पीढ़ी इस मार्ग को अपना सकती है. सलमा चाहती है कि उनकी नई पीढ़ी अपने ज्ञान के उपयोग से इस कला को तकनीक से जोड़ने का काम करे क्योंकि तकनीक ही उनके व्यवसाय को दुनिया भर में परिचित कराने में मदद कर सकती है. यह केवल व्यवसाय नहीं है बल्कि महिलाओं द्वारा चलाई जा रही एक समृद्ध विरासत भी है. जिसे सहेजना और पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाना सभी की ज़िम्मेदारी है. यह आलेख संजॉय घोष मीडिया अवार्ड 2022 के तहत लिखा गया है. (चरखा फीचर)

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