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20 मिनट शेर की तरह दहाड़ा पर हिन्दूवादी प्रशंसा से भी भागे* *कम्युनिस्ट और मुसलमान सिर पर उठा लेते, हिन्दुत्व के पतन का यही कारण*

( हिंदू एक्टिविस्टों की पीड़ा )

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आचार्य श्री विष्णुगुप्त

मुझे तो एक से बढ़ कर एक भीषण, खतरनाक और जानलेवा अुनभव है, हिन्दुत्व के लिए अपनी जान जोखिम में डाला, दो-दो बार जानलेवा हमले का शिकार हुआ, कई बार जान लेने की कोशिश हुई पर भगवान-भाग्य भरोसे बचता गया। अपनी अक्ल और दूरदर्शिता की कसौटी पर विधर्मियों से अपनी जान खुद बचायी और अपनी खुद सुरक्षा की। पर जानकारी के बाद भी हिन्दूवादी संगठन न तो बचाव में उतरे और न ही कोई मदद की, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि प्रशंसा में भी दो-चार बातें बोलने के लिए तैयार नहीं हुए।
अभी-अभी का अनुभव मेरा बहुत ही पीड़ा दायक है। यह अनुभव गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से जुड़ा हुआ है, स्वामी नारायण संप्रदाय से जुड़ा हुआ है। यहां पर मुझे कोई खतरा तो नहीं था पर अनुभव बहुत ही निराशाजनक और हताशा वाला है। मुझे स्वामी नारायण संप्रदाय ने अपने प्रखर स्वामी के जन्मa शताब्दि समारोह में दलित विमर्श सत्र का वक्ता सुनिश्चित किया था। समारोह में भारी-भरकम लोग उपस्थित थे। एक से बढ़कर एक। कोई संत था, तो कोई महासंत था। कोई राजनीतिज्ञ था तो कोई महाराजनीतिज्ञ था। हिन्दूवादी संगठनों से जुड़े लोग भी कम नही थे। स्वामी नारायण संप्रदाय के भक्त और मतिभ्रमित लोग तो बड़ी संख्या में थे ही।
जैसी परमपरा है। यानी की भाड़चारण और स्तुतिगान की। हवाई खर्च देकर बुलाया है, लग्जरी टेन से बुलाया है, अच्छी जगह ठहराया है, साथ लड़का-लड़की अटेडेंट के रूप में लगाया है तो इसकी कीमत भी तो वसुलेंगे। वक्ताओं को इसकी कीमत भी तो चुकानी होती है। प्रतिफल में वक्ताओं ने खूब भांड चारण किया और खूब स्तुतिगान किया, स्वामी नारायण संप्रदाय की खूब प्रशंसा की। स्वामी नारायण मनुष्य थे पर इन्हें भगवान घोषित कर दिया गया। कोई मनुष्य भगवान कैसे होगा, इस पर कोई प्रश्न नहीं उठाया। ये अपने पंथ को चमकाने के लिएa सनातन धर्म की बात कभी कभार जरूर करते हैं पर ये रामख् कृष्ण, शंकर, विष्णु और ब्रम्हा की पूजा कभी नहीं करते है। ये सिर्फ लक्ष्मी नारायण की पूजा करते हैं। लक्ष्मी नारायण का कार्यकाल और अंग्रेजों का कार्यकाल एक ही था। अगर लक्ष्मी नारायण भगवान थे तो फिर अंग्रेजों से इन्होंने आजादी क्यों नहीं दिलायी थी? जब स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों से लड़ रहें थे तब स्वामी नारायण क्या कर रहे थे? मुगलों और मुसलमानों से सनातन की सुरक्षा क्यों नहीं की थी? ऐसे प्रश्न पूछने की हिम्मत और नैतिकता किसमें थी?
मेरी बारी आयी। शायद अनुमान लोगों ने लगा लिया था। स्वामी संप्रदाय के संतो ंके कान खड़े हो गये थे, उनकी भृकुटियां तन गयी थी। ऐसा मुझे उनके चेहरे के बदलते रंग से अहसास हो गया था। मैंने शुरूआत में ही कह डाला कि मैं किसी के स्तुतिगान के लिए जन्म नहीं लिया हूं और न ही मैं किसी का चमचा हूं, मैं एक देशभक्त की कसौटी पर ही स्वामी संप्रदाय की देखूंगा और बोलूंगा। मैंने कह दिया कि सनातन नहीं बचेगा तो फिर स्वामी संप्रदाय पंथ भी नहीं बचेगा। मैंने यह कह दिया कि जब हमारे सभी भगवान शस्त्रधारी हैं, भगवान श्रीराम के पास धनुष है, हनुमानजी के पास गदा है और श्रीकृष्ण के पास सुदर्शन चक्र है तो फिर शंकर के पास त्रिनेत्र है। स्पामी नारायण संप्रदाय के लोग अपने भक्तों को शास्त्र की शिक्षा देते हैं कि नहीं यह मूझे नहीं मालूम है पर मुझे ये मालूम है कि ये शस्त्र की शिक्षा और प्रशिक्षण नहीं देते हैं। शस्त्र का प्रशिक्षण और शिक्षा न देकर हिन्दुओं को हिजड़ा बनाया जा रहा है। शस्त्रधारी संत होते तो फिर पालघर में संतों की निर्मम और घृणित हत्या नहीं होती। देश के उपर तालिबानी खतरे बढें हैं और इस्लामीकरण हो रहा है। ऐसी स्थिति में स्वामी नारायण संप्रदाय के साधुओं का गेरूआ भी नहीं बचेगा।
मैंने दलित विमर्श में तर्क रखा कि हमारे किसी भी ग्रंथ में छूछाछूत नहीं है। फिर छूआ छूत कहां से आया? मनु ने तो चार जातियां बनायी थी। फिर लाखों जातियां कहां से आयी। सनातन के खिलाफ साजिश हुई है। कांग्रेस और मुसलमानों ने मिल कर इतिहास को हिन्दू विरोधी और इस्लामीकरण किया। मुर्ख हिन्दू इसके सहचर बन गये। देश में लंबे समय तक शिक्षा मंत्री मुसलमान रहे थे। एक साजिश के तहत मुसलमानों को शिक्षा मंत्री बनाया जाता था। शिक्षा का इस्लामीकरण किया गया। आक्रमणकारी और हत्यारे अकबर को महान बना दिया। जबकि महाराणा प्रताप को खलनायक घोषित कर दिया गया।
मैने जब कांग्रेस और मुसलमानों को निशाना बनाया और उनकी साजिशों पर पर्दा हटाया तो फिर हंगामा मच गया। अध्यक्षता करने वाले ने मुझे झिझक दिया और कहा कि आप विषय से बाहर जा रहे हैं। मैंने उत्तर दिया कि मैं विषय पर ही हू और स्तुति गान नहीं करूंगा, मैं अपनी बात रखूंगा। मैने अध्यक्षता कर रहे मतिभ्रम की आपत्ति के बाद भी कई ज्वलंत विषयों को उठाया और कहा कि अब आप लोगों के कारण ही देश का इस्लामीकरण हो रहा है। मैंने फिर स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती का प्रश्न उठाया और कहा कि संत तो स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती जैसा होना चाहिए। जिन्होंने उड़ीशा में ईसाई मिशनरियों से जम कर लोहा लिया, अपनी कार्यक्षमता और दृष्टिकोण से ईसाई मिशनरियों के पैर जमने नहीं दिये। अंत में ईसाई मिशनरियों ने लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या करा डाली। अगर आज कोई संत धर्मातंरण के खिलाफ सीधी लड़ाई लड़ता है तो फिर उसकी लक्ष्मणांनद सरस्वती की तरह हत्या हो सकती है। इसलिए हमें शास्त्र से ज्यादा शस्त्र की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।
मेरे उद्बोधन के दौरान स्वामी नारायण संप्रदाय की घंटिया बार-बार बजती रही और पीछे से भाषण बंद करने की सलाह मिलती रही। पर मैंने सनातन की रक्षा की भीष्म प्रतिज्ञा पूरी कर ही उद्बोधन छोड़ा। जब मैं अपने उद्बोधन से मुक्त होकर मंच पर बैठा तो सभी लोग मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे मैंने कोई बड़ा गुनाह कर दिया हो, कोई बड़ा अपराध कर दिया हो और मैं बड़ा अपराधी हूं। लेकिन मुझे आत्मसंतोष था कि बाध के मांद में जाकर, दुश्मन के दांव में जाकर अपनी सनातनी भीष्म प्रतिज्ञा पूरी की है। इसलिए मुझे विजयश्री की अनुभूति हो रही थी।
मैंने लगभग 20 मिनट तक अपनी दहाड़ भरी थी। मेरी दहाड़ को सुनकर पूरा हॉल चकित था और अनहोनी की डर से भी चिंतित था। बहुत से लोगों की चिंता थी कि स्वामी नारायण संप्रदाय के लोग मुझे छोडेंगे नहीं, इनके संतों में आंतरिक हिंसा चलती रहती है, इनके अंधभक्त और मतिभ्रमी लोग कुछ भी कर सकते हैं? ऐसी सोच क्यों उभेरती है। इसलिए कि पंथों और स्वयं भू भगवान समझने वाले तथाकथित संतों के अंधभक्त और मतिभ्रम के शिकार लोग कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं। आप क्या रामपाल के भक्तों और मतिभ्रम लोगों की हिंसा भूल गये हैं? राम-रहीम के भक्तों और मतिभ्रम लोगों की हिंसक कहानी आपको मालूम नहीं है क्या? स्वामी नारायण संप्रदाय वाले कोई दूध के धूले हुए हैं नहीं। इनके लोग भी पूरी तरह से समर्पित हैं। इसी कारण स्वामी नारायण संप्रदाय खुद कोई एक नहीं बल्कि कई गुटों में विभाजित हैं और इन सभी गुटों में प्रतिस्पर्द्धा चलती रहती है। फिर भी मैं किसी भी अप्रिय और हिंसक स्थिति से निपटने और सामना करने के लिए तैयार था। स्वामी नारायण पंथ को सबसे ज्यादा नाराजगी इस्लाम, कांग्रेस, मुसलमानों के खिलाफ बोलने को लेकर थी, ये नही चाहते थे कि हम मुसलमानों, कांग्रेसियों और इस्लाम के खिलाफ बोलें। जबकि इनके मंदिर अक्षरधाम पर एक बार भीषण मुस्लिम आतंकी हमला हो चुका है, इसके बाद भी स्वामी नारायण संप्रदाय का मुस्लिम प्रेम जारी है।
मेरे स्वयं के अटेंडेंट और गाइड ने जो लोकल था पर राजनीतिक कार्यकर्ता भी था। मुझे बताया कि पूरा हॉल झगडे की आशंका से ग्रसित था। उसने यह भी बताया कि इस समारोह में कोई एक नहीं बल्कि कई दर्जन लोग हिन्दूवादी संगठन से उपस्थित हैं। कई लोग तो हिन्दूवादी संगठनों के पदाधिकारी के साथ-साथ नामचीन लोग उपस्थित हैं।
मुझे घोर आश्चर्य हुआ कि मैंने भारी विरोध के बावजूद भी हिन्दुत्व की दहाड़ मारी थी, स्वामी नारायण संप्रदाय के लोगों और संतों को सच का आईना दिखाया था फिर भी एक भी हिन्दूवादी मुझे शाबशी देने के लिए आगे नहीं आया और न ही किसी ने मुझसे बात करने की कोशिश की, परिचय भी करने की जरूरत नहीं समझी। मेरा अटेंडेंट ने कुछ लोगो से परिचय भी कराया फिर भी प्रशंसा के उनके भाव गायब थे।जबकि अन्य उपस्थित लोगों ने अप्रत्यक्ष तौर पर और दबी जबान से मेरी इस दहाड की प्रशंसा कर रहे थे। ऐसा मुझे अटेंडेट ने बताया।
इसके विपरीत किसी ने इस्लाम और कम्युनिस्ट के प्रति दहाड़ मारी होती तो निश्चित मानिये कि मुस्लिम और कम्युनिस्ट दुनिया न केवल प्रशंसा करती बल्कि उसे अपने सिर पर उठा लेती। उनसे परिचय ही नहीं करते, प्रशंसा ही नहीं करते बल्कि उनकी आर्थिक और सुरक्षागत मदद करने के लिए भी तत्पर रहते। आज मुस्लिम और कम्युनिस्ट के पक्ष में बोलने और लिखने वाले लोग पुरस्कार पर पुरस्कार ग्रहण करते हैं, फेलोशिप ग्रहण करते हैं, जीवन इनकी मौज से कटती है, मनोरंजन के सारे साधन इनके लिए उपलब्ध रहते हैं।
लेकिन हिन्दुत्व के लिए काम करने वाले लोग जब संकट में फंसते हैं, जब उनकी जान खतरे में होती है तब मदद करने के लिए हिन्दूवादी संगठन और समर्थक नदारत होते हैं। रामजन्म भूमि आंदोलन में जो लोग मारे गये उनके बलिदान को उचित स्थान नहीं मिला। विजय मौर्य नामक व्यक्ति का रामजन्म भूमि आंदोलन में हाथ उडत्र गया था आज वह लवारिश तथा अभावग्रस्त की जिंदगी व्यतित कर रहा है। हिन्दुत्व के लिए लडते-लड़ते लोग बलिदान हो गये, अपना घर द्वार तथा धंधा बर्बाद कर दिये पर कोई मदद या फिर प्रशंसा भी नहीं मिली। हिन्दूवादी संगठनों में वीरता और प्रंचडता की खामोशी हमेशा पसरी रहती है। हाल के वर्षो में कोई एक नहीं बल्कि सैकड़ों हिन्दू एक्टविस्टों ने जान गंवायी पर उनके बलिदान को प्रशसा नहीं मिली, उनके परिजनों को सम्मान नहीं मिला। हर साल दर्जनों गौ सेवक विधर्मियो द्वारा मारे जाते हैं पर उन्हें अपराधी ही घोषित कर उनकी खिल्ली उड़ायी जाती है। हिन्दुत्व के दफन होने का असली कारण यही है।

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संपर्क :
आचार्य श्री विष्ण्गुप्त
नई दिल्ली

मोबाइल 9315206123

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