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करोड़ों हरिजनों को इस्लाम में जाने से रोकने वाले श्रद्धानंद थे भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के महानायक : डॉ राकेश कुमार आर्य

महरौनी ललितपुर। महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान महरौनी के तत्वावधान में विगत 2 वर्षों से युवा पीढ़ी को भारत और वैदिक धर्म के बारे में विशेष जानकारी देने के चल रहे अभियान के अंतर्गत “भारत को समझो” मिशन के राष्ट्रीय प्रणेता एवं सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि स्वामी श्रद्धानंद जी महाराज को लोग अक्सर 5 लाख मलकाने राजपूतों को फिर से हिंदू धर्म में दीक्षित करने के कारण तो जानते हैं पर यह कम लोग जानते हैं कि वे 4 करोड़ हरिजन भाइयों को मुस्लिम धर्म में दीक्षित करने से रोकने वाले भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के महानायक भी थे।
ज्ञात रहे कि “भारत को समझो” अभियान के अंतर्गत दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के मंत्री आर्य रतन शिक्षक लखनलाल आर्य द्वारा ‘आर्यों का महाकुंभ’ में स्वामी श्रद्धानंद जी के बलिदान दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित विशेष कार्यक्रम में डॉ राकेश कुमार आर्य अपना संबोधन दे रहे थे।
डॉ आर्य ने कहा कि स्वामी श्रद्धानंद जी महाराज पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 8 अप्रैल 1915 को हरिद्वार के ज्वालापुर महाविद्यालय में आयोजित किए गए एक विशेष कार्यक्रम में महात्मा गांधी को महात्मा की उपाधि प्रदान की थी। स्वामी श्रद्धानंद ही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने गांधी जी को उनके दोगलेपन के कारण सबसे पहले सार्वजनिक रूप से लताड़ कर हमेशा हमेशा के लिए छोड़ दिया था। स्वामी श्रद्धानंद जी महाराज ने असहयोग आंदोलन में गांधीजी का साथ दिया और जब गांधीजी असहयोग आंदोलन को छोड़कर अपने दोगलेपन की नीतियों के चलते खिलाफत आंदोलन के साथ जा जुड़े और मोपला कांड में उनके इस गलत निर्णय के कारण 25000 हिंदुओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा तो स्वामी श्रद्धानंद जी की आत्मा कराह उठी और उन्होंने दोगले महात्मा को छोड़ना ही उचित समझा।
इतिहासकार डॉ आर्य ने कहा कि स्वामी श्रद्धानंद जी ने हिंदू महासभा का नेतृत्व किया और राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू शुद्धि सभा का गठन किया। गांधी जी और उनकी कांग्रेस का कहना था कि यदि स्वामी श्रद्धानंद जी कॉन्ग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं तो उन्हें शुद्धि आंदोलन में किसी भी प्रकार की भूमिका नहीं निभानी चाहिए। परंतु स्वामीजी पर कांग्रेस और उसके नेताओं के इस प्रकार के दबाव का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि यदि तबलीग वाले लोग हिंदुओं के साथ ऐसा बर्ताव करते हैं तो उन्हें जवाब देने के लिए हिंदुओं की ओर से भी प्रतिक्रिया जानी चाहिए।
डॉक आर्य ने कहा कि वास्तव में स्वामी श्रद्धानंद जी राष्ट्रभक्त थे और गांधीजी राज भक्त थे । यही कारण था कि इन दोनों के बीच कई मुद्दों पर तकरार होती थी। गांधी जी ने स्वामी जी के हत्यारे को भाई कहा था । आज के कम्युनिस्ट लेखक गांधीजी के हत्यारे को तो हत्यारा कहते हैं पर स्वामी श्रद्धानंद जी के हत्यारे को इतिहास में विशेष स्थान नहीं दिया जाता।
इस विषय पर अन्य व्यक्तियों में प्रसिद्ध वैदिक विद्वान प्रोफेसर व्यास नंदन शास्त्री जी ने भी अपने विचार व्यक्त किए और कहा कि स्वामी श्रद्धानंद जी जैसे क्रांतिकारियों के कारण ही देश को आजादी मिली। इसी प्रकार के विचार डॉ वेद प्रकाश शर्मा, अनिल कुमार नरूला ,आर्य चंद्रकांता , युद्धवीर सिंह, देवी सिंह आर्य, शिक्षिका सुमनलता सेन आर्य , शिक्षिका आराधना सिंह, शिक्षक अवधेश प्रताप सिंह बैंस ,श्रीमती दया आर्य आदि ने भी व्यक्त किए।
कार्यक्रम का सफल संचालन भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति एवं भारत को समझो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक
आर्य रतन शिक्षक लखनलाल आर्य द्वारा किया गया। जिन्होंने स्वामी श्रद्धानंद जी के बलिदान को न भूलने की अपील देश की युवा पीढ़ी से की। प्रधान मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने सभी वक्ताओं के प्रति अंत में आभार व्यक्त किया।

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