‘नो टेरर’ का “टेरर” कब परिभाषित होगा ?

no money for terror

यह अत्यंत सुखद है कि दिल्ली में वैश्विक आतंकवाद को नियन्त्रित करने के लिए विश्व के लगभग 70 देशों का “नो मनी फॉर टेरर” पर दो दिवसीय सम्मेलन हुआ है l कुछ समय पूर्व दिल्ली में ही संयुक्त राष्ट्र संघ की आतंकवाद निरोधी समिति एवं इंटरपोल का भी एक महत्वपूर्ण सम्मेलन हुआ था l यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कि जब से केंद्र में भाजपानीत शासन मोदी जी के नेतृत्व में सक्रिय हुआ है तभी से भारतीय शासन निरन्तर वैश्विक जिहाद से जुझ रहे राष्ट्रों को एकजुट करके आतंकवाद (टेरर) पर अंकुश लगाने के लिए निरन्तर सक्रिय है l हमारे प्रधानमंत्री जी वर्षो से सतत् यह साहसिक प्रयास कर रहे हैं कि यदि भारत सहित विश्व को आतंकवाद से मुक्त कराना है तो उसके लिए विश्व को इसके विरुद्ध संगठित करना ही होगा l

इसी संदर्भ में उन्होंने अनेक अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर स्वयं भाग लेकर अपने ठोस विचारों से विभिन्न पीड़ित देशों के शासकों को अवगत कराया और करा भी रहे हैं l हमें यह गर्व करना चाहिए कि अमेरीका, रूस, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन एवं इजराइल आदि देश वैश्विक आतंकवाद के विरुद्ध सकरात्मक नीतियां बनाने के लिये भरसक प्रयास कर रहे हैं l संयुक्त राष्ट्र संघ में हमारे प्रतिनिधियों ने भी अनेक अवसरों पर आतंकवाद की विभीषिका पर अपने-अपने आक्रमक विचारों से आतंकवाद के पोषक पाकिस्तान सहित सभी देशों को चेताया है l

हमारे प्रधानमंत्री जी ने पिछले 7-8 वर्षो से अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर यह भी प्रयास किया हैं कि “आतंकवाद” को परिभाषित किया जाय l उनका स्पष्ट मत है कि जब तक “आतंकवाद” का स्वरुप व उद्देश्य समझ में नहीं आएगा तो फिर हज़ारों लाखों मासूमों व निर्दोषों पर हो रहे अमानवीय अत्याचारों से मानवता की रक्षा कैसे हो पायेगी ?

यह भी विचार करना चाहिये कि महान् विद्वान व चार बार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे विलियम ग्लैडस्टोन ( जीवनकाल: 1809-1898) ने ब्रिटिश पार्लियामेंट में इस्लामिक धर्म ग्रंथों के संदर्भ में उल्लेख किया था कि जब तक धार्मिक ग्रन्थ में अन्य सभ्यताओं और संस्कृति के प्रति घृणित बातें रहेगी तब तक दुनिया में शान्ति नहीं होने वाली है l

वैसे तो विभिन्न देशों के नेताओं ने अनेक अवसरों पर आतंकवाद रुपी जिहाद को इस्लामिक दर्शन व उनकी शिक्षाओं को ही उत्तरदायी माना है l परंतु इस मानवीय आपदा को अमरीका के भूतपूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने समझा था और उन्होंने अपने पिछले चुनावी अभियान में अनेक विरोधाभासों के उपरान्त भी आतंकवाद को कट्टरवादी इस्लामिक विचारधारा से जोडते हुए इसको नष्ट करने के स्पष्ट संकेत दिए थे l इसी संदर्भ में स्मरण रखना होगा कि 26 जून 2017 को रोज गार्डन, व्हाइट हाऊस, वॉशिंग्टन में राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड ट्रम्प व प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की जो एतिहासिक संयुक्त पत्रकार वार्ता हुई थी उसमें तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रम्प ने आतंकवाद को बड़े साहस के साथ “कटटर इस्लामिक आतंकवाद” (रेडिकल इस्लामिक टेररिज्म) कहकर संबोधित किया था, उससे यह स्पष्ट संकेत मिला कि कहीं न कहीं श्रीमान मोदी जी कि कूटनीति सफल हुई। जिसके कारण आतंकवाद को कम से कम उस समय एक सांकेतिक परिभाषा अवश्य मिली। निसंदेह उस समय मोदी जी अमरीकी राष्ट्रपति के इस साहसिक वक्तव्य पर कोई टिप्पणी करने से अपने को अलग रखने को राजनैतिक कारणों से विवश थे ? परन्तु उनके इस कूटनीतिज्ञ प्रयास से उस समय करोडों भारतभक्त संतुष्ट हुए थे। क्योंकि मोदी जी ने भी उस समय आतंकियों की शरणस्थली व आतंकवादी संगठनों के प्रति कठोर कार्यवाही करके इस (इस्लामिक) आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने का अमरीका के साथ संयुक्त अभियान चलाने के लिये अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय भी दिया था l उन्होंने स्पष्ट किया था कि आतंकवाद का सर्वनाश हमारी शीर्ष प्राथमिकताओं में एक है।

यहाँ यह भी समझना आवश्यक है कि अधिकाँश आतंकी संगठन जैसे अलकायदा, इस्लामिक स्टेट , जैश-ए-मोहम्मद , लश्कर-ए-तोइबा ,हिजबुल मुजाहिद्दीन व डी. कंपनी आदि सभी कट्टर इस्लामिक आतंकवादियों के ही संगठन है और अनेक आतंकी आक्रमणों के बाद यह भी स्पष्ट हुआ है कि वे यह जिहाद केवल इस्लाम की स्थापना के लिए ही कर रहे थे, है और करते रहेंगे l

चिंतन करना होगा कि टेरर की जड़ों पर प्रहार करने के लिए जितनी आवश्यकता उसकी फंडिंग को रोकने की है उससे अधिक आवश्यकता उन शिक्षाओं को रोकने की है जो बाल्यकाल की मासूमियत को ऐसे वातावरण में पोषित करती है, जिनसे उनकी मानवीय संवेदनाएं ही लगभग शून्य हो जाती है। उनको धर्म के नाम पर अन्य विश्वासियों के प्रति घृणा के ढांचे में ढाल कर इतना कट्टर और क्रूर बना दिया जाता है जो ह्रदय विदारक नरसंहारों एवं अन्य सभ्यताओं की विनाश लीलाओं को जन्म देती हैं l

पिछले कुछ वर्षो से आतंक से पीड़ित राष्ट्र मिलकर आतंकवाद को नियन्त्रित करने के लिए “नो मनी फॉर टेरर” या आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिए उनके आर्थिक स्रोतों पर प्रहारक नीतियां बना रहे है l यह कहना भी अनुचित नहीं होगा कि आतंकवाद में “अर्थ” की महत्वपूर्ण भूमिका को कम नहीं किया जा सकता फिर भी यह चिंतन करना भी आवश्यक है कि आतंकवादियों के मन-मस्तिष्क में अमानवीय अत्याचार करने का बीजारोपण मुख्य रूप से इस्लामिक शिक्षाओं के प्रसार व प्रचार द्वारा ही होता आया है l अतः आतंकवाद को नष्ट करने के लिए उसकी जड़ मूल में जाना होगा और उनकी शिक्षाओं में आवश्यक संशोधन करने के लिए भी भरसक प्रयास करने होंगे l इसके लिए “नो एजुकेशन फॉर टेरर” पर भी वार्ताओं और सम्मेलनों का आयोजन होना चाहिए l इसके अतिरिक्त पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के समान निर्भीक होकर टेरर (आतंकवाद) को “रेडिकल इस्लामिक टेररिज्म” (कट्टर इस्लामिक आतंकवाद) परिभाषित करके घोषित करना होगा l ऐसा होने से इस मानवीय आपदा की जड़ को समझ कर पीड़ित देशों के साथ-साथ वैश्विक समाज भी उससे बचने के लिए उचित उपाय भी कर सकेगा l वैसे भी इस सत्य को नकारा नहीं जा सकता कि शत्रु की पहचान के बिना संघर्ष किससे और क्यों ? अतः आतंकवाद को नो मनी फॉर टेरर के साथ-साथ “नो एजुकेशन फॉर टेरर” एवं “टेरर” को परिभाषित करके भी नो टेरर अभियान को तीव्र गति दी जा सकती है l

विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी चिंतक एवं लेखक)
गाज़ियाबाद

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