पंडित केरी पोथियां जो तीतर को ज्ञान,


ऋषि राज नागर एडवोकेट

हमारे देश में विभिन्न धर्म एवं जाति के मनुष्य रहते हैं, जो अपने- अपने व्यवसाय या विभिन्न कार्य (कर्म) करके अपना व अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। कुछ मनुष्य कृषि करके कुछ वाणिज्य-व्यापर द्वारा तो कुछ, देश की सरहदों की सुरक्षा में व कुछ देश की आन्तरिक सुरक्षा में, कुछ साफ सफाई में लगकर आदि -आदि। अपना कार्य सफलता पूर्वक कर रहे हैं । संत महात्मा, योगी सन्यासी आदि परमात्मा की प्राप्ति के ज्ञान ध्यान में लगाकर लोगों को सत्य मार्ग पर चलने का उपदेश दे रहे हैं। आज के युग मे सत्मार्ग पर चलना बहुत ही कठिन हैं लेकिन जरुरी भी होता है। क्योकि “संत न होते जगत में तो जल मरता संसार” ।
सन्त महात्मा समाज सुधारक रहे है और ईश्वर या प्रभु पति का सुगमता से इस सृष्टि में शुरु से ही करते आ रहे है। जो जिज्ञासू है, वह उस प्रभु ज्ञान को जीवन का अंग मानते हैं , क्योंकि प्रभु या परमात्मा कहीं कहीं बाहर नहीं बल्कि हर जीव के अन्दर है। लेकिन मनुष्य जन्म के रहते ही प्रभु या परमात्मा को संतों की युक्ति द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है, तथा अनुभव किया जा सकता है । गुरु नानक देव जी की वाणी है कि –

‘आदि सच, जगादि सच है,भी सच, नानक होसी भी सच,’
सच क्या है?
सच परमात्मा है और परमात्मा आदि – जुगादि समय से था, अब भी है और भविष्य में भी वह इस सृष्टि में व्याप्त रहेगा ।
कुछ कर्म काण्डी लोग कर्म काण्ड का उपदेश अपनी आजीविका का साधन देखकर वाचक, ज्ञानी पोथिया आदि का गलत संदेश या उपदेश देकर लोगों को गुमराह करते हैं ।दुनिया में जब से भी धर्म ग्रंथ बने हैं उनकी प्रामाणिकता को लेकर वे सब विद्वानों की चर्चा का विषय रहे हैं । कुछ प्राचीन ग्रंथ प्रमाणित भी नहीं है कुछ ग्रंथों पोथियों में विरोधाभाष है ।
लेकिन एक बात अवश्य सत्य है कि सब धर्म ग्रंथ कहते हैं कि परमात्मा या अल्लाह, god एक ही है, लेकिन फसाद या झगड़े की वजह क्या है ? वह है हम लोगों में ज्ञान की सोच का अभाव, शिक्षा या धर्म ग्रंथों की तुलनात्मक विश्लेषण करने की क्षमता की कमी । इस कारण सब लोग पानी को कोई वाटर कह रहा है, तो कोई छबील, कोई जल, कोई पानी अपनी अपनी भाषा में अलग -अलग नाम से संबोधित कर रहे हैं ।लेकिन अलग-अलग भाषा से पानी का स्वरूप तो नहीं बदल जाएगा ? पानी तो पानी ही रहेगा । इसी प्रकार प्रभु या परमात्मा को चाहे जिस भाषा में उसे याद करो या जिस नाम से भी उसे प्रेम से बोलो वह प्रेम की भाषाओं को सुनता है, स्वीकार करता है । जैसे हम लोग अलग-अलग देशों में अलग-अलग भाषाओं में उस प्रभु या परमात्मा को स्वामी, राम – रहीम ,अल्लाह, god ,वाहेगुरु आदि – आदि नामों से पुकारते हैं ये सब नाम लिखे हुए बोले जाते हैं और उनके समय तथा इतिहास का पता लगाया जा सकता है, इन परमात्मा के नामों को लिखा या बोला जा सकता है । इसलिए इन्हें वर्णनात्मक नाम प्रभु का नाम कहा गया है। प्रभु या परमात्मा के इन वर्णनात्मक नाम के अलावा उस प्रभु या परमात्मा का सच्चा नाम ना लिखा जा सकता है और ना ही बोला जा सकता है। उस सच्चे नाम का सब संत महात्मा संकेत करते हैं। उसका कोई निश्चित समय नहीं है, वह अनादि है। वह इस सृष्टि की रचना के पहले भी व्याप्त था । गुरु अमरदास जी कहते हैं कि –

नामै ही ते सभ किछ होआ ।( आदि ग्रंथ पृष्ठ संख्या 753 )

अतः संत महात्मा संकेत करते हैं कि प्रभु के वर्णनात्मक नाम के साथ-साथ प्रभु का नाम धुनात्मक है ।इस रचनात्मक शक्ति को संत महात्माओं ने शब्द, नाम ,धुन ,आकाशवाणी धुर की वाणी आदि कहां है, तो मुसलमान फकीरों ने इसी को कलमा, बाग -ए -इलाही , निंदा – ए – आसमानी कहा है । बाइबिल में इसी शक्ति को ‘वर्ड ‘शब्द लोगस,( प्रभु की इच्छा) स्प्रिट (चेतना या आत्मा) होली घोस्ट( पवित्र नाम या शब्द) आदि नामों से याद किया है ।

गुरु नानक देव जी ने इसी सत्य को इस प्रकार प्रकट किया है –

धरती सबदे आगाश ।सबदे सबद भया परगास ।
सगली सृष्टि सबद के पाछे, नानक नाम घटे झिर आछे ॥

संत महात्मा कहते हैं कि नाम या शब्द के रूप में सर्व शक्तिमान परमात्मासारी सृष्टि में व्याप्त हो रहा है। यह नाम या शब्द पुस्तकों तथा धर्म ग्रंथों में नहीं मिलता, धर्म ग्रंथ तो नाम की उपमा करते हैं। यह नाम तो हमारे अपने अंदर है। गुरु नानक देव जी इस प्रकार उल्लेख करते हैं कि –

देहि अन्दर नाम निवासी, आपे करता है अविनाशी॥
संत महात्माओं के द्वारा बताए गए मार्ग पर चलकर ही हम परमात्मा को अपने अंदर ही प्राप्त कर सकते हैं। वह है भजन सुमिरन। पथियों व किताबों में वह परमात्मा नहीं मिल सकता है, किताबें तो केवल उस परमपिता परमात्मा की ‘उपमा’ या बडाई में भरी पड़ी हैं।
घट – घट मेंरे साइयाँ, सूनी सेज ना कोय, बलिहारी उस घट की जा घट प्रगद होया।
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि –
कलयुग में है नाम अधारा ,
सुमिर -सुमिर जन उतरैं पारा।

कर्मकांडी पंडित व वाचक ज्ञानी –

यह विषय (चैप्टर) कर्मकांडी व वाचक ज्ञानी लोगों के लिए है, जो धर्म अथवा धर्म शास्त्रों के सहारे अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं, वे लोग मूर्ति पूजा, जागरण ,जल, नदी, तीर्थ स्थलों आदि के सहारे भी भोले भाले मनुष्य और धर्म का अनुसरण करने वाले या धर्म पर समर्पित लोगों को गलत मार्ग दर्शन (Mis gayde) करके खूब लूटते हैं। जो व्यक्ति जितना डरा होता है, उसे तो यह लोग किसी भी हालत में नहीं बक्श सकते। कर्मकांडी व वाचक ज्ञानी लोग कलयुग में ज्यादा सक्रिय हैं। इन लोगों के आडंबर से बचाने के लिए ऋषि संत महात्माओं ने हमें चेताया है। महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश में सत्य की व्यापक व्याख्या अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश के 14 समुल्लास अर्थात् 14 विभागों में अच्छी प्रकार से की है । पंडित और वाचक ज्ञानी या कथावाचक के विषय में भी समाज को सुधारने के लिए संत कबीर साहिब जी ने कहा है कि –
“पंडित केरी पोथियां जो तीतर को ज्ञान,
औरन शगुन बता वही अपना फंद न जान॥
कबीर पढ़ना दूर करूं, पुस्तक देहु बहाय ।
बावन अक्षर सोधि के, संत नाम लो लाय॥
पंडित और मसालची दोनों सूझै नाहि ।
औरन को करें चांदनी, आप अंधेरे माहि ॥
पंडित बोरौ पन्तरा, काजी छोड़ कुरान ।
वह तारीख बताईदे, थे न जमी आसमान॥

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