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जनसंख्या समीकरण, स्वामी श्रद्धानन्द और हिन्दू मुस्लिम समस्या

सर संघचालक श्री मोहन भागवत जी ने गोवाहाटी में बयान दिया कि 1930 से मुस्लिमों की आबादी बढ़ाई गई क्योंकि भारत को पाकिस्तान बनाना था। इसकी योजना पंजाब, सिंध, असम और बंगाल के लिए बनाई गई थी और यह कुछ हद तक सफल भी हुई। माननीय सर संघचालक जी ने अपने बयान में कहा है कि यह प्रयास 1930 के दशक से बाद से शुरू हुआ। हम भागवत जी के बयान को अपूर्ण मानते है क्योंकि कुछ ऐसे ऐतिहासिक तथ्य है जिनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। यह प्रक्रिया 1930 से कहीं पहले आरम्भ ही चुकी थी।
1924 में आर्यसमाज के प्रसिद्ध नेता स्वामी श्रद्धानन्द जी द्वारा ‘हिन्दू संगठन’ के नाम से एक पुस्तक प्रकाशित की गई थी। इस पुस्तक में पिछले 1200 वर्षों में हिन्दुओं का किस प्रकार से धर्म परिवर्तन हुआ और इसे रोकने के उपायों और हिन्दुओं के संगठन की आवश्यकता पर गंभीर चर्चा की गई थी। महात्मा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण और दलितों के अधिकारों की अनदेखी को देखकर स्वामी जी ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया। और स्वामी जी देश भर में शुद्धि और हिन्दू संगठन के लिए आंदोलन को आरम्भ कर दिया। स्वामी जी की भेंट कोलकाता दौरे के समय श्री मुखर्जी महोदय से हुई थी। मुखर्जी जी 1911 और 1921 की जनगणना की तुलना कर यह सिद्ध किया कि अगले 420 वर्षों में भारतीय आर्य जाति संसार से मिट जायेगी। उनके अनुसार पिछले 30 वर्षों में हिन्दुओं की जनसंख्या का प्रतिशत 74% से 69% अर्थात 5% कम. हो गया है। 1911 जनगणना के अनुसार मुसलमानों की वृद्धि दर 6.7 और हिन्दुओं की 5% थी। आगे स्वामी जी लिखते है कि मुसलमानों की उत्पादक शक्ति अधिक है। मुसलमानों में 15-40 वर्ष तक के प्रत्येक आदमी के 5 साल की उम्र तक के 37 बच्चे हैं, जबकि हिन्दुओं में केवल 33 ही होते हैं। 1881 से जनगणना वाले इलाकों में मुसलमानों की संख्या 26.4% बढ़ गई जबकि वहां के हिन्दुओं की जनसंख्या 15.1% ही बढ़ी।
स्वामी श्रद्धानन्द जी ने हिन्दुओं की जनसंख्या घटने के निम्नलिखित कारण गिनाये-
1. जबरन धर्म परिवर्तन- 1200 वर्षों में इस्लाम और ईसाइयत के नाम पर कैसे हिन्दुओं का जबरन धर्म परिवर्तन हुआ। मुस्लिम आक्रांता से लेकर मुग़लों के शासन काल का रक्तरंजित इतिहास इसका प्रमाण हैं।
2. राजनीतिक इच्छा शक्ति- मुस्लिम और ईसाई शासक अपने मत में परिवर्तन करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। जबकि हिन्दू शासक अनदेखी करते थे।
3. सूफियों द्वारा बनावटी चमत्कार की कहानियां प्रचारित करना।
4. ईसाई पादरियों जैसे रोबर्ट नोबिली द्वारा धोखे से अथवा फ्रांसिस ज़ेवियर द्वारा जबरन ईसाई बनाना।
5. अस्पृश्यता अर्थात छुआछूत की बीमारी। जिसके कारण दलित और पिछड़ी जातियों का ईसाई करण हुआ।
6. हिन्दुओं में बाल विवाह का होना जिसके चलते अकाल मृत्यु होने से विधवाओं का अधिक होना। उन विधवाओं का हिन्दू समाज में तिरस्कार होने पर मुसलमानों के घरों में स्वीकार किया जाना।
7. चार आश्रम अर्थात ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम की व्यवस्था का भंग होना। इसके कारण हिन्दू समाज को आदर्श व्यक्ति धर्म प्रचार के लिए उपलब्ध नहीं हो पाते।
8. हिन्दू मुस्लिम दंगों के समय सरकार का एक पक्षी होना और हिन्दुओं का नेतृत्व विहीन होना।
9. हिन्दू समाज में शुद्धि अर्थात बिछुड़े हुए भाइयों को वापिस लाने के प्रति बेरुखी होना। वापिस आये हुओं से रोटी-बेटी का सम्बन्ध स्थापित नहीं करना।
10. हिन्दुओं का एक राष्ट्रीय स्तर पर संगठन का न होना। जो हिन्दू समाज के हितों की रक्षा के लिए एक शक्तिशाली प्रतिनिधित्व कर सकें।
1924 में प्रकाशित पुस्तक ‘हिन्दू संगठन’ में लिखी गई एक एक बात आज भी 100 वर्ष के पश्चात भी उतनी ही व्यवहारिक और कारगर हैं। आज 100 वर्ष के पश्चात 1947 के विभाजन को झेलने के पश्चात हिन्दू समाज फिर से उसी चौराहे पर खड़ा है। अभी भी समय है। आपको रोग और उसका निदान बता दिया गया हैं। पर यह दवाई तो आपको खुद ही लेनी पड़ेगी।
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(स्वामी श्रद्धानन्द द्वारा रचित पुस्तक हिन्दू संगठन का हिंदी और अंग्रेजी में 5 वर्ष पहले प्रकाशित किया गया है।)

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