योगी आदित्यनाथ के बाद अब जनसंख्या नियंत्रण पर मोहन भागवत भी हुए मुखर

 

गाजियाबाद ( डॉ राकेश कुमार आर्य ) हमारे देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए एक स्पष्ट और ठोस नीति की चिरकाल से आवश्यकता अनुभव की जा रही है। जनसांख्यिकीय आंकड़ों को गड़बड़ाने के लिए जिस प्रकार मुस्लिम समुदाय बच्चे पैदा करता जा रहा है उसके दृष्टिगत कुछ हिंदूवादी संगठनों और राष्ट्रवादी लोगों को इस बात की देर से चिंता सताती रही है कि यदि ऐसा ही होता रहा तो निश्चय ही एक दिन देश का दूसरा विभाजन भी हमें देखना पड़ जाएगा।

देश में स्पष्ट और ठोस जनसांख्यिकीय नीति की दिशा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुछ ठोस पहल करके दिखाई है। अब उसी दिशा में आगे बढ़ते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी दशहरा के पर्व पर लोगों को संबोधित करते हुए कहा है कि एक “व्यापक जनसंख्या नियंत्रण नीति” की आवश्यकता इस समय हमारे लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता है। आर एस एस प्रमुख ने यह स्पष्ट किया है कि एक ऐसी “जनसंख्या नियंत्रण नीति” होनी चाहिए जो सभी पर “समान” रूप से लागू हो। उन्होंने अपने संबोधन में यह भी स्पष्ट कर दिया है कि “जनसंख्या असंतुलन” पर नजर रखना राष्ट्रीय हित में है। उनके इस कथन का संकेत यही है कि हिंदू और मुसलमान दोनों एक दिशा में एक साथ आगे बढ़ें और राष्ट्रहित में जो उचित है उसे करने में देश का कोई भी समुदाय संकोच ना करे। देश के भीतर ही कुछ ऐसी शक्तियां हैं जो लोगों में विभाजन पैदा करके अपने-अपने सत्ता स्वार्थ साधने में लगी हुई हैं। उनकी ओर भी संकेत करते हुए श्री मोहन भागवत ने कहा है कि जब समाज को विभाजित करने के प्रयास किए जा रहे हैं तो ऐसे में “हमें एक साथ रहना होगा।” भागवत की ये टिप्पणियां पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी को बहुत ही अच्छी लगी हैं। उन्होंने श्री भागवत की इन टिप्पणियों को बहुत ही संतुलित बताया है और स्पष्ट किया है कि श्री भागवत ने किसी समुदाय विशेष की ओर उंगली नहीं उठाई है बल्कि एक सामान्य बात कही है। अपनी पुस्तक ‘द पॉपुलेशन मिथ: इस्लाम, फैमिली प्लानिंग एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया’ में मुस्लिम जनसंख्या से संबंधित कई मिथकों का भंडाफोड़ करने वाले कुरैशी ने कहा कि भागवत का विचार सही है कि परिवार नियोजन को भारतीय समाज के सभी वर्गों द्वारा अपनाया जाना चाहिए।
कुरैशी ने कहा, “लोग मेरी किताब ‘पॉपुलेशन मिथ-इस्लाम, फैमिली प्लानिंग एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया’ का जिक्र कर रहे हैं, जिसे मुझे हाल ही में श्री भागवत के सामने पेश करने का मौका मिला, जहां मैंने संक्षेप में इसके केंद्र बिन्दुओं का जिक्र किया।” कुरैशी ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि आरएसएस प्रमुख ने ”मेरी बात ध्यान से सुनी।’
जनसंख्या नीति पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि देश पहले ही प्रतिस्थापन दर हासिल कर चुका है। ओवैसी ने एक ट्वीट में कहा, “यदि हिंदुओं और मुसलमानों का एक ही डीएनए है तो असंतुलन कहां है? जनसंख्या नियंत्रण की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि हमने पहले ही प्रतिस्थापन दर हासिल कर ली है।”
ओवैसी की टिप्पणी निश्चित ही देश की आवश्यकताओं के प्रतिकूल है। वास्तव में ओवैसी उस परंपरा से हैं जिस में प्रारंभ से ही देश विरोधी गतिविधियों का पाठ पढ़ाया जाता है। उनके दल ने देश की आजादी के संघर्ष के काल में भी देश का साथ में देकर विघटनकारी शक्तियों का साथ दिया था। ऐसे में उनसे राष्ट्र हितों को साधने वाली टिप्पणी देने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। उनकी सोच आज भी कहीं पाकिस्तान और मुगलिस्तान के पालने में झूल रही है और झूलते झूलते सुनहरे सपने संजो रही है। उन सुनहरे सपनों को यदि कहीं से भी चोट लगती है या चोट लगने की संभावना दिखाई देती है तो वह चिल्ला पड़ते हैं।
हमारा मानना है कि बढ़ती हुई जनसंख्या न केवल देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है बल्कि इसके आर्थिक और सामाजिक प्रभाव भी पड़ने निश्चित है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार हमें पता चलता है कि भारत में व्यक्ति के पास खेती की जमीन कम पड़ती जा रही है। विश्व बैंक के द्वारा जारी किए गए आंकड़ों से चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। जिनके अनुसार 2001 में हर भारतीय के हिस्से में 0.15 हेक्टेयर खेती की जमीन थी, जो 2018 में घटकर 0.12 हेक्टेयर हो गई। यदि यही स्थिति रही तो आने वाले कल की स्थिति और भी ज्यादा भयानक हो जाएगी। उस समय जब देश के पास भोजन, वस्त्र और आवास की भी समस्या खड़ी हो जाएगी, कोई यह नहीं देखेगा कि कौन मुस्लिम है कौन हिंदू ? उस समय हर नागरिक जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से जूझ रहा होगा। आज भी देश में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो दो जून की रोटी के लिए तरस रहे हैं, तड़प रहे हैं। यदि 1947 के बराबर की जनसंख्या आज देश की होती तो सबके पास सब प्रकार के साधन होते हैं। इतना ही नहीं उस समय की जनसंख्या के दोगुने भी यदि हम आज होते तो भी देश में हर व्यक्ति संपन्न होता। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसका कारण केवल एक है कि देश की जनसंख्या निरंतर बहुत तीव्र गति से बढ़ती चली गई। मुसलमान समाज ने इस दिशा में कतई भी नहीं सोचा कि बढ़ती जनसंख्या के दुष्परिणाम क्या होते हैं ?
संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2050 तक विकसित देशों में हर वर्ष 1.5 करोड़ युवा श्रम शक्ति से जुड़ जाएंगे। कहने का अभिप्राय है कि हर दिन 33 हजार लोग ऐसे होंगे, जिन्हें नौकरी की जरूरत होगी। भारत में हर वर्ष युवाओं का श्रम शक्ति सहभागिता दर बढ़ रही है। 2017-18 में युवाओं की सहभागिता दर 38.2% थी, जो 2020-21 में बढ़कर 41.4% पर आ गई। इस दौरान बेरोजगारी दर में भी कमी आई है। 2017-18 में युवाओं में बेरोजगारी दर 17.8% थी, जो 2020-21 में घटकर 12.9% से हो गई। यद्यपि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, 45 लाख भारतीय ऐसे भी हैं, जिन्होंने अब काम की तलाश करना छोड़ दिया है।
नवंबर 2021 तक भारत में 13 लाख से ज्यादा एलोपैथिक और 5.65 लाख आयुर्वेदिक डॉक्टर थे। इस हिसाब से हर 834 लोगों पर एक डॉक्टर था। जबकि, 2011 में 608 लोगों पर एक डॉक्टर था। स्पष्ट है कि आबादी बढ़ते ही डॉक्टरों पर बोझ भी बढ़ गया। 2019-20 के आर्थिक सर्वे में केंद्र सरकार ने माना था कि अगर आबादी ऐसी ही बढ़ती रही, तो आने वाले समय में रोगियों के लिए अस्पताल में बिस्तर कम हो जाएंगे। इस पर हमारा मानना है कि बिस्तर होंगे ही नहीं। अभी कोविड-19 के दौरान हमने देख लिया है कि किस प्रकार लोगों को अस्पतालों में जगह नहीं मिली थी ? भगवान ना करे कि ऐसी स्थिति भविष्य में फिर से आए, परंतु यदि आ गई तो बहुत बुरी स्थिति बन जाएगी। इसके बारे में ओवैसी जैसे लोगों को अवश्य ही अपनी सोच और मानसिकता में परिवर्तन करना चाहिए। हम जैसे लोगों को देश की बढ़ती हुई जनसंख्या को हिंदू मुस्लिम के रूप में नहीं देखना चाहिए ।

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