हिजाब और ईरान की औरतें

नाइश हसन

पश्चिमी ईरान में साकेज की रहने वाली 22 साल की महसा अमिनी 13 सितंबर को जब बिना हिजाब पहने तेहरान आईं, तो पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। कस्टडी में उनकी पिटाई की गई, जिससे महसा की मौत हो गई। ईरान की औरतें बड़ी आंदोलनकारी हैं। उनमें पुराना गुस्सा भी था ही, महसा की इस घटना से उनके गुस्से में और उबाल आ गया। इन औरतों ने अपने हिजाब को आग लगा दी है, बाल काट लिए हैं और आंदोलन छेड़ दिया है।

फैल रहा असंतोष
ईरानी औरतों के इस विद्रोह की आग तेहरान, साकेज और कुर्दिस्तान की राजधानी सननदाज सहित पूरे देश में फैल चुकी है। पूरी दुनिया इस विद्रोह को देख रही है और ईरानी महिलाओं को अपना समर्थन भी भेज रही है। ईरान की सरकार महिलाओं को 65 की उम्र में भी बिना हिजाब सड़क पर आने की इजाजत नहीं देती, दंडित करती है। मॉरल पुलिसिंग का अधिकार सरकार ने ही दिया है। बढ़ते विरोध को देखते हुए ईरानी सरकार अपनी नैतिक पुलिस की आलोचना करके काम चलाना चाह रही है।

ऐसा पहली बार ईरान में नहीं हुआ, जब महिलाओं को धर्म के नाम पर जबरन काबू में रखने की कोशिश की गई। धर्म और राजसत्ता का यह गठजोड़ वहां कमोबेश 1979 से ही चल रहा है-

ईरान में धर्मगुरु सैयद रूहोल्लाह मुसावी उर्फ अयातुल्लाह खोमैनी के नेतृत्व में 1979 में धर्म के नाम पर एक क्रांति हुई। इस दौरान महिलाओं के लिए दो नारे बहुत जोर-शोर से उछाले गए, ‘घरों की ओर लौट जाओ’ और ‘जड़ों की ओर लौट चलो।’
ईरान में जड़ों की तरफ लौटने मतलब जड़ता की तरफ लौटना साबित हुआ। आधुनिकता के खिलाफ परंपरावादी शक्तियां संगठित होने लगीं। संगीत पर पाबंदी लगाई जाने लगी। औरतों पर फर्जी इस्लामी कायदे-कानून लादे जाने लगे। सागर तटों पर स्त्री-पुरुष के स्नान पर रोक लगाई गई।
इसी दौरान औरतों को मनुष्य से मवेशी बनाने के लिए कई नियम भी लाए गए, मुताह (एक निश्चित रकम के बदले एक निश्चित समय के लिए शादी) उनमें से एक है। खोमैनी ने ही मुताह की इजाजत दी, इसे ब्लेसिंग बताया।
अवैध संबंधों के शक में 43 साल की ईरानी महिला शेख मोहम्मदी अश्तिआनी को 2010 में उसके नाबालिग बेटे के सामने 99 कोड़े मारे गए।
2015 में ईरान की एक नौजवान खातून मसीह अलीनेजाद ने अपने बालों को हवा में उड़ाया। उसने कहा कि उसे अपने उड़ते बालों को देखना बहुत पसंद है, वह हिजाब नहीं पहनेगी। उस युवा महिला के ऐसा करते ही मानो ईरान की सियायत में भूचाल आ गया। अलीनेजाद को निशाने पर लिया गया, धमकियां मिलीं। उसे अंडरग्राउंड रहना पड़ा। उसने एक ऑनलाइन कैंपेन चलाया, जिसका नाम था हिजाब फ्री कैंपेन, जिसे ईरान में 1 लाख लड़कियों का सपोर्ट मिला। अलीनेजाद का इतना विरोध हुआ कि उसे अमेरिका में शरण लेनी पड़ी।
मार्च 2019 में ईरानी मानवाधिकार कार्यकर्ता नसरीन को एक ईरानी अदालत ने 33 साल की जेल और 148 कोड़ों की सजा सुनाई। वजह, नसरीन अनिवार्य हिजाब के विरोध में आंदोलन का नेतृत्व कर रही थीं। उनके आंदोलन को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया गया।

कैसे हो रहा खेल

बता दें कि ईरान के संविधान में कहीं भी हिजाब शब्द का उल्लेख भी नहीं है। इसके अनुच्छेद 19 का अध्याय 3 कहता है कि ईरान के सभी लोगों को बराबरी का अधिकार है। अनुच्छेद 20 भी महिला पुरुष को कानून में बराबर संरक्षण दिए जाने की बात कहता है। इसी अनुच्छेद में इस बात के बाद यह शब्द और आ गया, ‘इन कन्फॉर्मिटी विद इस्लामिक क्राइटेरिया’। बस इसी शब्द ने ईरानी समाज के पितृसत्तात्मक तत्वों को स्वच्छंद बना दिया। इसी शब्द के बल पर ईरान में औरतों पर जुल्म पर जुल्म किए जा रहे हैं।

एक तरफ ईरान में बुर्का न पहनने पर मौत की सजा मिली तो दूसरी तरफ भारत में बुर्का और हिजाब पहनने वालों को रोका जा रहा है। यह सवाल भी उठाया गया है कि जब ईरान की महिलाएं हिजाब छोड़ रही हैं तो भारत में इसकी जिद क्यों। पर मूल मसला तो जबर्दस्ती का है। कुछ भी पहनना या न पहनना क्यों नहीं औरत की इच्छा पर छोड़ दिया जाता?

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