भारतीय नौसेना के जनक क्यों कहे जाते हैं छत्रपति शिवाजी महाराज ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोचिन शिपयार्ड में दो सितंबर को भारतीय नौसेना का नया ध्वज जारी किया। मौका था विमानवाहक युद्धपोत आईएनएस विक्रांत (INS Vikrant) को नौसेना में शामिल करने का। नए ध्वज में ऊपर बाईं ओर तिरंगा बरकरार है, लेकिन सेंट जॉर्ज का क्रॉस हटा दिया गया है। यह क्रॉस ब्रिटिश शासन काल से ही झंडे पर था। अब इसकी जगह पर भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है। सत्यमेव जयते को एक नीले अष्टभुज के भीतर लिखा गया है। यह चिन्ह झंडे पर नीचे दाईं ओर है।

सुनहले बॉर्डर वाला यह अष्टभुज छत्रपति शिवाजी महाराज की शाही मुहर से लिया गया है। ‘शिवाजी: इंडियाज ग्रेट वारियर किंग’ किताब लिखने वाले वैभव पुरंदरे का कहना है, ‘पहली बार भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से माना है कि छत्रपति शिवाजी भारतीय नौसेना के जनक थे। शिवाजी ने स्वदेशी नौसेना तैयार करने में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने यह बेड़ा तब बनाया था, जब भारत में ब्रिटेन, पुर्तगाल, फ्रांस और नीदरलैंड्स के लोगों का दबदबा था।’

पुरंदरे का कहना है, ‘13वीं सदी के मध्य तक चोल वंश का पराभव हो चुका था। उसके बाद इस्लामी आक्रमण हुए और फिर मुगल साम्राज्य और दक्षिण में सल्तनतों का दौर आया। इस दौरान भारतीय शासक समुद्र की अहमियत को नजरंदाज कर चुके थे। मध्य काल में समुद्र पर विदेशियों का दबदबा बढ़ने लगा। पुर्तगाली आए, डच आए, ब्रिटिश आए और फिर फ्रेंच लोग आए। 1630 में शिवाजी का जन्म हुआ। तब तक भारत की तट रेखा पर विदेशियों का एक तरह से नियंत्रण हो चुका था।‘

हाल यह था कि अगर अहमदनगर के निजाम शाह या आदिल शाह के परिवार या मुगल बादशाह के परिवार के लोगों को मक्का या मदीना जाना होता तो उन्हें इन समुद्री ताकतों से इजाजत लेनी पड़ती थी ताकि इनके जहाज आगे बढ़ सकें।

यही हाल व्यापार में भी था। अगर विदेश से माल मंगाना हो या भारत से विदेश भेजना हो तो इन्हीं समुद्री ताकतों की मंजूरी लेनी पड़ती थी। पुरंदरे का कहना है, ‘शिवाजी ने जल्दी ही यह बात समझ ली थी कि रक्षा और व्यापार के मामले में समुद्र कितना अहम है। उन्होंने अपनी ताकतवर मराठा नौसेना बनाई। चोल वंश के पराभव के करीब सात सदियों बाद यह काम हुआ। लिहाजा शिवाजी को फादर ऑफ इंडियन नेवी माना जाता है। और इस बात को अब पहली बार आधिकारिक मान्यता भी मिल गई है।’

नौसेना बनाने में शिवाजी की भूमिका के बारे में पूछे जाने पर पुरंदरे का कहना था, ‘पश्चिमी छोर पर कुछ किलों को अपने अधिकार में लेने के साथ उन्होंने जहाज बनवाने शुरूकिए। इस तरह उन्होंने नौसेना का बेड़ा बनाने का कदम उठाया। शुरुआती जहाज तो बहुत अच्छे नहीं थे क्योंकि मराठों को जहाज बनाने की अच्छी जानकारी नहीं थी। ऐसी टेक्नॉलजी ब्रिटेन और पुर्तगाल जैसी विदेशी ताकतों के पास थी।’

पुरंदरे बताते हैं, ‘शिवाजी ने ब्रिटेन और पुर्तगाल के लोगों से टेक्नॉलजी लेने में कोई हिचक नहीं दिखाई। जहाज बनाने में उन्होंने कुछ पुर्तगालियों की मदद भी ली। अपने लोगों को उनसे ट्रेनिंग भी दिलवाई। इस काम में ब्रिटिश इंजीनियरों की भी सहायता ली गई। ब्रिटिश फैक्ट्री के रिकॉर्ड्स के अनुसार, सूरत और राजापुर सहित कई जगहों के ब्रिटिश लोगों ने शिकायत की थी कि उनके कई इंजीनियर शिवाजी के साथ चले गए हैं और उनके जहाज बनाने लगे हैं।’

पुरंदरे के मुताबिक, ‘शिवाजी के शुरुआती जहाज भले ही बहुत अच्छे नहीं थे, लेकिन धीरे-धीरे करके उन्होंने बड़े और अच्छे जहाज बनवाए। उनके बड़े जहाजों को गुराब के नाम से जाना जाता था। उन्होंने गलबत और दूसरे पोत भी बनवाए, जो हल्के थे और तेजी से मूव कर सकते थे। उनके कुछ जहाज इतने अच्छे थे कि उन पर तोपें लादी जा सकती थीं। एक तरह से उन्होंने तेजी से हमला करने के लिहाज से भी जहाज बनवाए और लंबे खिंच सकने वाले युद्ध को ध्यान में रखकर भी जहाज बनवाए।’

शिवाजी ने ब्रिटिश और पुर्तगालियों के अलावा सिद्दियों से भी लड़ाई लड़ी। सिद्दियों का पश्चिमी तट के जंजीरा बंदरगाह पर कब्जा था। अफ्रीका और अबीसीनिया के सिद्दियों का इस बंदरगाह पर लंबे समय तक कब्जा रहा।

पुरंदरे बताते हैं, ‘शिवाजी यह भी जानते थे कि कोंकण तट के बीच में होने के चलते जंजीरा का किला बहुत अहम है, लिहाजा उन्होंने जंजीरा पर एक के बाद एक हमले किए। ब्रिटिश और पुर्तगाली सिद्दियों की मदद कर रहे थे। इसलिए सिद्दियों ने मराठों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। लेकिन शिवाजी के हमलों ने समुद्र तट पर मौजूद सभी ताकतों को खतरे की चेतावनी दे दी थी।‘

‘इन सबके बीच 15 वर्षों में शिवाजी ने 50 से ज्यादा जहाज और युद्धपोत बनवा लिए थे। उनकी नौसैनिक गतिविधियां 1658 तक शुरू हो चुकी थीं, जब वह मात्र 28 वर्ष के थे। 1674 में छत्रपति की उपाधि धारण करने तक उनके पास 50 से ज्यादा युद्धपोत थे।’ पुरंदरे बताते हैं, ‘अगर इन युद्धपोतों के साथ व्यापारिक जहाजों को भी गिना जाए तो 1674 में शिवाजी के पास 700 जहाज थे। यानी डेढ़ दशक में ही उन्होंने एक बड़ा नौसैनिक बेड़ा तैयार कर लिया था।’

सवाल यह है कि शिवाजी की इस नौसेना के बड़े योद्धा कौन थे, सैनिक कौन थे? पुरंदरे बताते हैं, ‘मुख्य रूप से कोंकण तट पर रहने वाले कोली समुदाय के लोग थे। पश्चिमी तट के मछुआरों में से भंडारी समुदाय के लोग थे। कई मुसलमान भी उनकी नौसेना में थे। उनकी नौसेना के दो बड़े ओहदेदार दौलत खान और दरिया सारंग थे। ये दोनों मुसलमान थे।’

शिवाजी की इस समुद्री ताकत से विदेशी शक्तियां और मुगल चौकन्ने हो गए थे। पुरंदरे बताते हैं, ‘शुरू में तो ब्रिटिश लोगों को लगा कि शिवाजी के जहाज अच्छे नहीं है तो उनकी नौसेना कुछ खास नहीं है। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें भी शिवाजी की ताकत का अहसास होने लगा। मुगलों को भी ऐसा ही अहसास हुआ क्योंकि शिवाजी सूरत पर लगातार हमले कर रहे थे। उस समय गोवा पर पुर्तगालियों का कब्जा था। वे भी चौकन्ना हो गए क्योंकि ऐसी खबरें उन्हें मिल रही थीं कि शिवाजी किसी भी समय गोवा पर धावा बोल सकते हैं।‘

‘लेकिन जहां पुर्तगाली शिवाजी के हमले के खतरे को देखते हुए तैयारी में जुटे थे, वहीं शिवाजी ने दुश्मनों को हैरान करने वाली एक और चाल चल दी। हुआ यह कि शिवाजी एक जहाज में सवार हुए और आगे बढ़े। सबको लगा कि उनकी सेना गोवा पर हमला करने निकली है। लेकिन शिवाजी ने गोवा को बाईपास कर दिया और कारवाड़ पहुंच गए। कारवाड़ के शासक भौचक्का रह गए। इस तरह से देखें तो ब्रिटिश और पुर्तगालियों से लेकर मुगलों तक, सभी शिवाजी की बढ़ती ताकत से सतर्क हो गए थे। शिवाजी ने बहुत सोचे-समझे तरीके से अपनी नौसेना को मजबूत बनाया था।’

 

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