गांधी जी का चरखा और गांधीवादियों का झूठ

कांग्रेसी , कांग्रेस के समर्थक और गांधीवादी – सब यह कहते हैं कि गांधी के चरखा चलाने से हमें आजादी प्राप्त हो गई थी। यदि इस बात पर विचार किया जाए तो संसार के समकालीन इतिहास का यह सबसे बड़ा झूठ है। भारतवर्ष के संदर्भ में इस बात को पूरी तरह समझ लेना चाहिए कि भारत के लोगों ने सौ पचास वर्ष नहीं बल्कि सन 638 में केरल पर हुए प्रथम इस्लामिक आक्रमण के पश्चात वर्ष 1947 तक अर्थात 1309 वर्ष तक (बहुत से विद्वान लेखक वर्ष 712 में सिंध के राजा दाहिर पर मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण को प्रथम आक्रमण मानते हुए उससे जब समय की गणना करते हैं तो 1235 वर्ष का स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास लिखते हैं) दूसरे विद्वान लेखकों के अनुसार 1235 वर्ष तक अपनी स्वतंत्रता के पौधे को सीचने के लिए अपने खून को बहाया है।
जब 638 में मुसलमानों ने भारत की स्वतंत्रता को रोंदने एवं हरण करने का पहला आक्रमण भारत पर किया था ।जब उस दुस्साहस का सामना हमारे वीर योद्धाओं ने अपनी छाती को तानकर किया था तो उन लोगों ने ऐसा बलिदानी कार्य केवल भारत की आजादी के लिए ही किया था। इसके बाद मुस्लिम हमलावरों के आक्रमणों का सिलसिला जारी हो गया। 712 ईसवी में मोहम्मद बिन कासिम नाम का विदेशी लुटेरा आक्रमणकारी जब भारत में आया तो उससे पहले 8 आक्रमण भारत पर हो चुके थे। इतने सारे आक्रमणों में जिन लोगों ने अपना बलिदान दिया निश्चित रूप से वे सारे के सारे भारत की स्वतंत्रता के सिपाही थे। सिलसिला यहां भी रुका नहीं बल्कि यहां से तो सिलसिला आरंभ हुआ था। महमूद गजनबी, मोहम्मद गोरी ,अलाउद्दीन खिलजी, बलबन, बाबर और उसके बाद नादिरशाह , अहमद शाह अब्दाली तत्पश्चात पुर्तगाली, डच, फ्रांसिसी, अंग्रेज – इस देश में इन जैसे कितने ही क्रूर निर्दई ,निर्मम शासक और विदेशी हमलावर आए और यहां पर खून के दरिया बहाने को ही अपना कर्तव्य धर्म समझते रहे ।
इन सारे आततायियों एवं आक्रमणकारियों से लड़ने वाले हमारे नागभट्ट प्रथम, नागभट्ट द्वितीय, सम्राट मिहिर भोज, परमार भोज और महाराणा प्रताप, शिवाजी, छत्रसाल , रानी दुर्गावती और रानी लक्ष्मीबाई जैसे कितने ही क्रांतिकारी योद्धा और वीरांगनाएं देश की स्वाधीनता के संग्राम के महान सेना नायक थे। अतः गांधी के चरखे से अलग हटकर अपने इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों को भी नमन करना हमारा राष्ट्रीय दायित्व है। यदि इस राष्ट्रीय दायित्व से हम मुंह फेरते हैं तो समझ लो कि हम अपने पैरों पर अपने आप कुल्हाड़ी मारते हैं। वास्तव में भारत ही एक ऐसा देश है जहां पर अपने क्रांतिकारियों का इतना बड़ा अपमान देखने को मिलता है।
।यदि फिर भी गांधी के चरखे को वरीयता दी जाती है तो हमारा एक ही प्रश्न है कि क्या यह शहीदों का अपमान नहीं?
क्या यह इतिहास की सत्य घटनाओं का विलोपीकरण नहीं है!
वैसे भी यदि गांधीवादी या कांग्रेसियों से पूछे तो गांधी के चरखा चलाने से जो सूत बना था उससे कितनी दरियां, कितनी चादर, कितनी दुतही, कितने खेस, कितने कपड़े बने थे? सचमुच भारत के लोग भी बहुत चाटुकार अथवा बहकावे में आने वाले हैं। जिनको आराम से पागल बनाया जा सकता है। इन लोगों को पागल बनाने का ही परिणाम है कि कांग्रेस चरखे के नाम पर 60 साल देश पर शासन करने में सफल रही।
गांधी के चरखे के कते हुए सूत का हिसाब तो कांग्रेसियों के पास ही होगा ,परंतु यदि हिसाब उनके पास हो तो उनको वह हिसाब देश की जनता के समक्ष रखना चाहिए,जिससे देश की जनता भी जान सके कि गांधी के सूत कातने से कितने कपड़े तैयार हो गए थे?
गांधी का हरिजन प्रेम भी बहुत ही अद्भुत है। जिनकी बकरी मेवा खाती थी और वह हरिजन के यहां रहते हुए केवल बकरी का दूध पीते थे ।यदि वह इतने ही हरिजन सेवा वाले थे तो हरिजन के यहां खाना खाते, उसके यहां प्रत्येक प्रकार की जो कमी थी, गरीबी थी उसको दूर करने का प्रयास करते। लेकिन गरीबी दूर करने के नाम पर तो मात्र 60 साल भारतवर्ष पर कांग्रेस ने गांधी की आड़ में शासन किया गया।
।भारत के लोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि गांधी जी, उनके समर्थकों, गांधीवादियों और कांग्रेसियों के कारण ही देश से वेदों को विदा करने का षडयंत्र रचा गया। संस्कृत भाषा को मृत भाषा घोषित किया गया । हिंदी की उपेक्षा की गई । भारतीय मूल्यों, संस्कारों को पलीता लगाने का हर संभव प्रयास किया गया । उपनिषदों ,गीता, महाभारत, रामायण आदि की अच्छी सच्ची बातों को भी नकारने का हर संभव प्रयास किया गया और दूसरे धर्म ग्रंथों की अवैज्ञानिक मान्यताओं को भारत पर थोपने का मूर्खतापूर्ण कार्य किया गया। आज देश के लोगों को, खासतौर से युवाओं को कांग्रेस के इस प्रकार के दुराचरण के प्रति सावधान होकर भारत और भारतीयता के प्रति समर्पित होने का संकल्प लेना चाहिए।
लाहौर की जेल में बंद तीनों शहीदों के विषय में गांधी से जब वॉइस राय द्वारा गोलमेज सम्मेलन के दौरान पूछा गया कि इनके बारे में आपका क्या विचार है तो गांधी ने उन को आतंकवादी कहा था?
विदेशी सत्ताधारियों के सुर में सुर मिलाकर गांधीजी ने उस समय अपनी शक्तियों का प्रयोग न करके शहीदे आजम भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी चढ़ जाने दिया था । आज का प्रासंगिक प्रश्न केवल यही है कि क्या हम आज भी अपने शहीदों को और जो आज के देशभक्त लोग हैं उनको फांसी चढ़ने देंगे ? क्या कांग्रेस के षड्यंत्र को अपनी मान्यता देने में हमारा भला है या कांग्रेस के मिथ्या आडंबर और पाखंडी दम्भी आचरण की पोल खोलना समय की आवश्यकता है ? निश्चय ही आप लोगों को यह विचार करना चाहिए।

देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन : उगता भारत

देवेंद्र सिंह आर्य
(लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।)

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