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मुस्लिमों का पसमांदा समाज और भाजपा

अजय कुमार 

भाजपा में अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी खुद पसमांदा वर्ग से हैं। उनका कहना है कि भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा में सभी स्तर पर पसमांदा मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व है। पीएम की अपील पर काम करते हुए मोर्चा एक राष्ट्रीय कमेटी गठित कर रहा है।

उत्तर प्रदेश की सियासत में मुस्लिम और उसमें भी पसमांदा समाज के वोटर हमेशा निर्णायक भूमिका में रहते हैं। यह वोटर जिसके पक्ष में वोट करते हैं उसके जीत की संभावनाएं काफी बढ़ जाती हैं, लेकिन इस बात का फायदा यह समाज नहीं उठा पाता, बल्कि इनकी जगह मुसलमानों में अगड़ी जाति के नेता और लोग इसका फायदा उठा लेते हैं। यूपी में बड़े-बड़े पदों और राजनीति में इन्हीं अगड़ी जाति के मुसलमानों का वर्चस्व है। अब इस नाइंसाफी के खिलाफ पसमांदा समाज के भीतर से भी आवाज उठने लगी है। पसमांदा समाज को लीड करने वाले नेता कहते हैं कि हम कांग्रेस के साथ में रहे, जब उसकी सत्ता गयी तो सपा, बसपा में गए तो वह सरकार बनाने में सफल रहे, लेकिन हमारी परेशानियों की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया। हमारा समाज अशिक्षा, बेरोजगारी और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है, लेकिन हमारी आवाज मुस्लिमों की अगड़ी जातियों के बीच दब के रह जाती है। योगी सरकार ने हमारे समाज के एक नेता को मंत्री बनाया है। योगी सरकार गरीबों के लिए जो योजनाएं चला रही है उसका फायदा भी हमारे समाज के लोगों को मिल रहा है। अब प्रधानमंत्री मोदी ने पसमांदा समाज के विकास की ओर ध्यान देने की बात कही है, यह हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है। हमारी मुसलमानों की कुल आबादी में करीब 80-85 फीसदी  भागीदारी है, अगर बीजेपी सरकार हमारी समस्याओं को सुनती और समझती हैं तो हमें बीजेपी से कोई एतराज नहीं होगा।

गौरतलब है कि बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की एक मीटिंग में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से अपील की थी कि वह समाज के सबसे पिछड़े तबके तक अपनी पहुंच बनाएं। उन्होंने कहा था कि केवल हिंदू ही नहीं, बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों के कमजोर तबके तक भी हमें पहुंच बनानी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पसमांदा मुस्लिमों को पार्टी से जोड़ने के लिए की गई अपील के बाद पसमांदा समाज को लेकर सियासत तेज हो गई है। उधर, मोदी के मुंह से पसमांदा समाज की बात निकली और इधर भाजपा ने इस दिशा में काम भी शुरू कर दिया है। इसके साथ ही विपक्षी दलों में भी मुस्लिम वोटों को लेकर झटपटाहट साफ देखी जा सकती है।

बहरहाल, पीएम मोदी की इस अपील के बाद सवाल यह भी उठने लग है कि क्या भाजपा पसमांदा मुस्लिमों को जोड़ने और उन्हें अपने वोट बैंक में तब्दील करने में सफल होगी? पिछले कुछ चुनावों से भाजपा को आठ से नौ फीसद मुस्लिम वोट मिलने के आंकड़े आते रहे हैं। इसमें पसमांदा समाज के वोटरों की संख्या ज्यादा है। भाजपा इसी वोट बैंक को और मजबूत करना चाहती है। इससे भाजपा को लंबे समय तक केंद्र में सत्ता बनाए रखने और दक्षिण के राज्यों में पकड़ मजबूत करने में मदद मिलेगी।
खैर, मोदी के इस बयान के बाद विपक्ष पूछ रहा है कि क्या भाजपा की इस मुहिम का पसमांदा या कहें दलित व पिछड़े मुस्लिमों पर कोई असर पड़ेगा? उर्दू दैनिक इंकलाब के पूर्व संपादक और मुस्लिम उद्धार के लिए काम करने वाले शकील शम्सी बताते हैं कि इस्लाम में जात-पात का कोई भेदभाव नहीं है। यही वजह है कि पूर्व में बड़े पैमाने पर गैर मुस्लिम लोगों ने इस्लाम धर्म अपनाया था। हिंदुओं में भी सामान्य, पिछड़े और दलित वर्ग के काफी लोगों ने धर्म परिवर्तन किया था। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमानों में ही ये भेद देखने को मिलता है। यहां जिन्होंने धर्म परिवर्तन किया, वो अपनी वंशावली सिस्टम से बाहर नहीं निकल सके। 
राज्यसभा के पूर्व सांसद अली अनवर ‘पसमांदा मुस्लिम महाज’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। अली अनवर के मुताबिक अभी मुस्लिमों की जो राजनीति है, उसका केंद्र अशराफ (अपर कास्ट) हैं। अजलाफ (ओबीसी) और अरजाल (दलित), जिन्हें मिलाकर पसमांदा कहा जाता है, राजनीति में उनकी हिस्सेदारी बहुत सीमित है। अरजाल मुस्लिमों को तो दलित आरक्षण का लाभ तक नहीं मिलता। नौकरियों में भी उनकी भागीदारी बहुत कम है। केवल पसमांदा की बात करने से कुछ नहीं होगा। राजनीति में उनकी भागीदारी बढ़ानी होगी। आज तक किसी दल ने पसमांदा मुस्लिमों की तरफ ध्यान नहीं दिया, इसीलिए भाजपा को ये मौका मिल रहा है। इसका दूरगामी प्रभाव अवश्य पड़ेगा। कहा यह भी जाने लगा है कि मुस्लिमों में पसमांदा का अनुपात अगर 100 में से 80 का है तो उन्हें उनका अधिकार मिलना चाहिए। भाजपा के इस कदम से अन्य दलों को भी इस तरफ ध्यान देना होगा।

भाजपा में अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी खुद पसमांदा वर्ग से हैं। उनका कहना है कि भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा में सभी स्तर पर पसमांदा मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व है। पीएम की अपील पर काम करते हुए मोर्चा एक राष्ट्रीय कमेटी गठित कर रहा है। ये कमेटी राज्यों में पिछड़ों की भागीदारी और उन्हें मिलने वाली सरकारी योजनाओं के लाभ की निगरानी करेगी। राज्य स्तर पर भी इसी तरह की कमेटी बनेगी। इसके अलावा संगठन में पसमांदा मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। सिद्दीकी के अनुसार मुस्लिमों की राजनीति करने वाले दलों ने भी उन्हें हमेशा उन्हें नजरअंदाज कर अशराफ को आगे बढ़ाया है। इन्हीं दलों ने मुस्लिम समाज में ये खाई, भ्रम और डर पैदा किया है। यही वजह है कि मुस्लिम समाज लगातार भाजपा से जुड़ रहा है। आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव इसका ताजा उदाहरण है।
पसमांदा समाज को लेकर प्रधानमंत्री की अपील के बाद मीडिया में भी यह मुद्दा सुर्खियां बटोरने लगा है। इसके मुताबिक पसमांदा मुस्लिमों की राजनीति से भाजपा को लाभ मिलेगा या नहीं, इस पर बहस हो सकती है। लेकिन इतना साफ है कि भाजपा की इस पहल से पसमांदा मुस्लिमों की स्थिति मजबूत होगी। पसमांदा मुस्लिमों की अनदेखी करने वाले अन्य दलों को भी अब इनकी तरफ ध्यान देना होगा। यूपी के एमएलसी चुनाव में इसका उदाहरण देखा जा चुका है। योगी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में पसमांदा मुस्लिम दानिश अंसारी को कैबिनेट में जगह दी। दानिश तब राज्य के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। भाजपा के इस कदम ने सभी दलों को चौंका दिया। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी को जैसे ही विधान परिषद में किसी को भेजने का मौका मिला, उसने भी पसमांदा मुस्लिम जसमीर अंसारी को चुना।
मोदी की तरह ही राजनीति के कुछ पंडित व सामाजिक सुधार का काम करने वाले लोगों का भी मानना है कि पसमांदा मुसलमानों को बाकी मुस्लिमों की तुलना में निचले स्थान पर रखा गया। ऐसा इसलिए क्योंकि ये वो मुसलमान हैं, जिन्होंने दूसरे धर्मों से परिवर्तित होकर इस्लाम अपनाया। धर्म परिवर्तन करने वाले ये मुसलमान स्थानीय आबादी का हिस्सा थे और इन्होंने काफी बाद में इस्लाम धर्म अपनाया है। इनमें से ज्यादातर लोगों ने व्यवसाय के आधार पर अपने टाइटल का इस्तेमाल किया, जैसे अंसारी (बुनकर) और कुरैशी (कसाई) आदि। बता दें कि मुस्लिम समाज में पिछड़े और दलित वर्ग से आने वाले मुसलमानों को पसमांदा मुसलमान कहा जाता है। मुस्लिम समुदाय में इनकी संख्या करीब 80 प्रतिशत बताई जाती है। बाकी के 20 प्रतिशत में सैयद, शेख, पठान जैसे उच्च जाति के मुसलमान हैं। दावा है कि सबसे ज्यादा संख्या में होने के बाद भी इन्हें अपनी संख्या के हिसाब से हक नहीं मिल पाया है। समाज पर राज 20 प्रतिशत मुसलमान करते हैं, जो इन्हें धर्मांतरित मानते हैं और खुद को अरब, मध्य एशिया से आए मुसलमानों के वंशज मानते हैं।
यही नहीं ये 20 प्रतिशत अगड़े मुसलमान सामाजिक और आर्थिक तौर पर ये मजबूत हैं और सभी सियासी दलों में इन्हीं का वर्चस्व रहा है। पसमांदा समाज के नेताओं का मानना है कि कांग्रेस, सपा, बसपा आदि पार्टियों में पसमांदा समाज के उत्थान के लिए कुछ खास नहीं किया गया। राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी वैसा नहीं मिला, जितनी जरूरत थी। दरअसल 2014 से 2017 तक यूपी के चुनावों पर गौर करें तो बीजेपी ने अपनी पूरी रणनीति गैर मुस्लिम मतदाताओं पर ही केंद्रित रखी। पार्टी अपर कास्ट के साथ पिछड़ों और दलित वर्ग को जोड़ते हुए हिंदुत्व की राह पर चलते हुए केंद्र और यूपी की सत्ता तक पहुंची। अब 2022 में भाजपा दोबारा यूपी की सत्ता पर काबिज हो गई है। लेकिन इस बार की सफलता में अहम बदलाव शामिल है। इस बार की जीत में में पसमांदा मुसलमानों से मिले ‘थोड़े समर्थन’ को लेकर पार्टी नेता काफी उत्साहित हैं। पार्टी नेताओं का मानना है कि यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान तमाम सरकारी योजनाओं में इस वर्ग को लाभ देने की कोशिशें कीं। इन योजनाओं का फायदा पसमांदा मुसलमानों को भी मिला। इसी का नतीजा था कि ऐसे लोगों ने भी बीजेपी को वोट किया।
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक की सियासत शुरू से ही अपनी अलग पहचान रखती है। कभी ये वोट बैंक कांग्रेस का आधार माना जाता था लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस से इसका मोहभंग हुआ और समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी जैसे नए दलों में ये बंटने लगा। यूपी में 90 के दशक में तमाम सियासी घटनाक्रम ऐसे हुए कि समाजवादी पार्टी की मुस्लिम-यादव पॉलिटिक्स और बसपा की मुस्लिम दलित सियासत तो इस कदर परवान चढ़ी कि दोनों ही पार्टियों ने इसके दम पर कई बार उत्तर प्रदेश की सत्ता हासिल की। बात मौजूदा दौर की जाए तो सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे के अनुसार 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को सबसे ज्यादा 70 प्रतिशत तक मुस्लिम वोट मिले। ऐसा नहीं था कि मुस्लिम पूरी तरह से भाजपा से दूर रहे, पार्टी को 8 प्रतिशत वोट मिले। अब भाजपा इसी प्रतिशत में उम्मीद देख रही थी। इसके बाद आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनावों में बीजेपी की जीत ने पार्टी नेताओं को और ऊर्जा से भर दिया है। दरअसल इन दोनों ही सीटों पर मुस्लिम वोट बैंक निर्णायक की भूमिका निभाता रहा है। रामपुर में तो पहले भाजपा जीती भी थी लेकिन आजमगढ़ की जीत उसके लिए सबसे बड़ी थी। यहां सपा और बसपा वर्षों से यादव-मुस्लिम और दलित-मुस्लिम सियासत के दम पर चुनाव लड़ती आ रही थीं। आजमगढ़ की जीत के बाद माना गया कि योगी सरकार के पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री आवास, उज्ज्वला योजना से लेकर तमाम योजनाएं ऐसी रहीं, जिसमें मुस्लिम समाज के लोगों को भी लाभ मिला, जिसका असर इन चुनावों में देखने को मिला।

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