नमाज़ से रोकना कैसा ?* *पुण्य या महापाप!!!* ——————–


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आज देश में नफरत इतनी बढ़ चुकी है कि आए दिन हिंदू मुस्लिम नफरत की खेती करती मीडिया आपको नजर आयेगी, क्यों कि नेता हो या मीडिया उनकी दुकान आज ऐसे ही मुद्दो से चल रही है ।

आज समय समय पर नमाज़ को लेकर देश में हो हल्ला और विरोध हो रहा है , अब नया मामला लखनऊ के नव निर्मित लुलु माल का सुनने में आ रहा है कि कुछ लोगों ने वहाँ नमाज़ पढ़ी, उन लोगों के खिलाफ शिकायत भी दर्ज हो चुकी है और अब मामला तूल ही पकड़ रहा है ।

आज हिन्दू और सर्व समाज के भाइयों के सामने, जो मुसलमानों को कुछ ऐतिहासिक राजनैतिक घटनाक्रमों और समाज में फैले भ्रम के कारण *अपना शत्रु समझ बैठे हैं*, उन तक ये तथ्य पहुंचाना चाहिए कि *नमाज़ अरबी भाषा का शब्द नहीं है…. नमाज़ संस्कृत भाषा का शब्द है* जिसका अगर विच्छेद किया जाए *(नमः+ अजन्मा)* तो इसका अर्थ होता है *”नमन करो अजन्मे को”*(नमन करो उसको जिसका जन्म नही हुआ /जो स्वयं ही अनंत से अनंत के लियें विद्यमान है।

*इस विषय में वेद में वर्णित है*
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“स एष एक एकव्रदेक एव” (अथर्ववेद13:4:12) अर्थात “वह एक अकेला, एक ही है।”

कोई भी मनुष्य आसानी से बता सकता है कि *अजन्मा तो मात्र वह एक अकेला ईश्वर ही है* जिसने सारी सृष्टि बनाई और फिर ईश्वर ने संपूर्ण मानवजाति को एक माता-पिता की संतान बनाया।
अब मानव को चाहिए की उस *अजन्मे प्रभु के आगे अपना माथा झुकाकर उसकी उपासना- आराधना करनी चाहिए…. और इस उपासना की विधि को नमाज़ कहते है।*
यह वही विधि है जो श्री कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को निराकार ईश्वर की उपासना के लियें सिखाई थी।

गीता में वर्णित है
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*संप्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशशचानवलोकयं-(6:13)*

अर्थात
*अपनी ही नाक के अग्र भाग पर इस प्रकार दृष्टि रखो कि किसी और दिशा में ध्यान न भटके* और सारा ध्यान एकाग्रता के साथ निराकार ईश्वर की तरफ रहे।

वेद में वर्णित है:
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*भुवनस्य यस्पतिरेक एव नसमयो विक्षवीडयमः(अ.2:2:1)*
अर्थात
*सब ब्रह्मांड का वह एकमेव स्वामी, सभी प्रजाओं द्वारा सिर झुकाने व उपासना करने योग्य है।*

ऋषि-मुनियों ने इस योग विधि का एक स्वरूप यह भी समझाया था, जिसको *साष्टांग (स+अष्ट+अंग)* नमन कहते हैं अर्थात अपनी नाक के अग्र भाग पर दृष्टि रखते हुए *शरीर के आठ अंगों सहित ईश्वर को नमन करो*….अब इस प्रकार नमन केवल धरती पर बैठ कर हो सकता है और *एक ही स्वरूप में हो सकता है जिसे मत्था टेकना या अरबी भाषा में सजदा कहते हैं।*

*नमाज़ योग विधि है*, योग मतलब जोड़ (+) होता है और इस *योग का मतलब था मनुष्य का अपने रचियता, अपने पालनहार प्रभू से जुड़ जाना* ताकि मनुष्य अपने जीवन में ईश्वर की याद में ध्यानमग्न हो जाए और ईश्वर के आदेशानुसार कर्मों की साधना करे।
अब हिन्दू और बाकी समाज के मन में *यह प्रश्न उठता है कि मुसलमान तो ईश्वर को नहीं अल्लाह को मानते हैं* तो मेरे प्यारे भाईयों आप आज जान लो कि *मुसलमान एक निराकार ईश्वर की ही उपासना करते हैं* क्योंकि *ईश्वर पालनहार प्रभू और अल्लाह अलग-अलग नहीं हैं* बल्कि उसी एक निराकार सर्व शक्तिमान के नाम हैं जिसने सारे संसार की रचना की है और जो सारे संसार का सत्य पालनहार, उद्धारक और विनाशक भी है…. *इन नामों में अगर अंतर है तो केवल भाषा का है और कोई नहीं…. !*
*कैसे??*
आईये जानें

ईश्वर= *ईश+वर*(वह शक्ति जिसका वरण/उपासना की जाए)

अल्लाह= *अल+इलाह*(वह उपासनीय/वह शक्ति जो पूज्य है)

उपर्युक्त वर्णन से आसानी से समझा जा सकता है कि *ईश्वर और अल्लाह इस संसार के रचियता के संस्कृत और अरबी भाषा के अनुवादक नाम हैं।*

अब हम आसानी से यह बात समझ सकते हैं कि नमाज़ कोई पराई विधि नहीं है बल्कि ईश्वर द्वारा आदेशित *वही योग विधि है जो ईश्वर/अल्लाह ने आदि-पुरुष (प्रथमपुरुष जो प्रथम ईशदूत भी थे और स्वर्ग से भारत की धरती पर उतरे थे)* के माध्यम से और अलग अलग समय में, विश्व के अलग अलग भागों में, अलग अलग ईशदूत और महापुरुषों के माध्यम से ईश्वर ने मानवजाति को सिखाई है और *यही योग विधि ईश्वर ने अंतिम ईशदूत मुहम्मद साहब के माध्यम से सिखाई गई, जो अरब की धरती पर आए।*
यह बाद के *मुसलमानों की अज्ञानता रही* कि उन्होंने भी *ईश्वर और अल्लाह को अलग-अलग समझा* और इसके अलावा ईश्वर का संदेश लोगों तक पहुंचाने के स्थान पर अपना शासन स्थापित करने में लग गए *जिसके कारण इतिहास में बहुत से राजनैतिक घटनाक्रम हुए जो नफरत और दूरी का आज तक कारण बने हुए हैं* और हमारे *हिन्दू भाई भी अपने धर्म ग्रंथों को न समझने के कारण ईश्वर के आदेशों को भूल गए और आज इसका परिणाम यह है* कि मनुष्य ने *न सिर्फ अपने मालिक को बांट लिया* बल्कि *मानव जो आपस में खूनी रिश्ते का भाई है* (क्योंकि ईश्वर ने मानवजाति को एक माता-पिता की संतान बनाया है) *एक दूसरे के खून का प्यासे हो गये है।*

*जब हमारा रचियता, पालनहार एक निराकार ईश्वर/अल्लाह है और उसी ने हमें एक माता-पिता की संतान बनाया है (एक वंशज) तो फिर उस एकमेव पालनहार ने मानवजाति को धर्म भी एक ही दिया होगा, न कि अलग-अलग* क्योंकि *ईश्वरीय_आदेश न तो मानव को बांटना है और न ही आपस में लड़वाना है।*

मेरा हिन्दू भाईयों से नम्रतापूर्वक अनुरोध है कि ज़रा इतिहास के कड़वे समय को अलग रख कर सोचें, *क्या नमाज़ से रोकना अर्थात ईश्वर की भक्ति उपासना से रोकना घोर पाप हुआ की नही❓ ?????*

*आईये हम सब सत्य को पहचानें*…. *अपने धर्म ग्रंथों को समझें और अपने रचियता को पहचान कर सिर्फ उसी की उपासना करें* और मानवजाति के बीच अज्ञानता के फलस्वरूप फैल चुकी *दूरी और नफरत को खत्म करें और सब आपस मे प्रेम से रहें*….तभी *ईश्वर की सत्ता मानवजीवन में स्थापित होगी* और तभी *सतयुग* आएगा।

मेरी *ईश्वर/अल्लाह से प्रार्थना है* कि *ईश्वर समस्त मानवजाति को सन्मार्ग दिखा कर* मानवजाति का इस धरती पर उद्धार करे और *विश्व में शांति स्थापित करे* ताकि हर मनुष्य परलोकीय जीवन में *स्वर्ग को प्राप्त कर सके।*

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