इस्लाम के अत्याचार और विश्व सभ्यताओं का विनाश

विश्व प्रसिद्ध लेखक अनवर शेख ने इस्लाम के विषय में लिखा है कि यह हिंसा और संभोग से आगे कुछ नहीं सोचता। तलवार के बल पर मानवता का हत्यारा बनकर इस मजहब ने अब तक करोड़ों लोगों को मारने का अपराध किया है। यदि मोहम्मद साहब के समय की बात की जाए तो उन्होंने भी अपने जीवन में अनेक लोगों को हिंसा का शिकार बनाया।
मोहम्मद साहब के समय से ही इस्लाम राजनीतिक हिंसा को अपनाकर राजनीति प्रेरित मजहब बन चुका था। इतिहास के प्रमाण हैं कि मोहम्मद साहब ने 622 ई0 से लेकर 634 ई तक मात्र 12 वर्ष में अरब के सभी मूर्तिपूजकों को तलवार से जबरदस्ती मुसलमान बना दिया था! (मक्का में महादेव काबळेश्वर (काबा) को छोड कर!)
इसके पश्चात पारसी लोगों की बारी आई। जिन्हें अगले 16 वर्ष में ही तलवार के बल पर मुसलमान बनाने में इस मजहब को सफलता प्राप्त हो गई। पारसी लोगों के साथ मुसलमानों ने अत्याचार करते हुए वह सारे काम किए जो एक लुटेरा दल कर सकता है। खून खराबा, मारकाट, बलात्कार और ऐसे अमानवीय अत्याचारों से पारसी लोगों को गुजरना पड़ा जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
इस्लाम की नंगी और खूनी तलवार निरंतर आगे बढ़ रही थी और अपने अत्याचारों से मानवता को आतंकित करती हुई जोर जबरदस्ती लोगों का धर्मांतरण कराती जा रही थी। उसकी यह खूनी तलवार जब 640 में मिस्र में पहली बार प्रविष्ट हुई तो वहां पर भी अत्याचारों की सारी सीमाएं लांघते हुए मात्र 15 वर्ष में ही मिस्र के लोगों को उनकी प्राचीन सभ्यता से काट दिया गया और जबरन उनका धर्मांतरण कर इस्लाम का परचम वहां लहरा दिया गया।
बड़ी संख्या में लोगों का नरसंहार कर सारे मिस्र के लोगों को इस्लाम में दीक्षित कर लिया गया।
640 ई0 के पश्चात इस्लाम ने नार्थ अफ्रीकन देश जैसे अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को आदि देशों और अपने लुटेरे दल भेजने आरंभ किए। उन लोगों ने इस्लाम की आंधी का अपनी क्षमताओं के अनुसार भरपूर विरोध किया। परंतु अंत में उनको इस्लाम की नंगी खूनी तलवार के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा। अगले 70 वर्ष में ही इन देशों का पूर्ण इस्लामीकरण करने में इस्लाम के खूनी आक्रमणकारियों को सफलता प्राप्त हो गई। वहां के लोगों को भी पूर्ण रूप से इस्लाम धर्म में जबरदस्ती दीक्षित कर दिया गया! प्रकार इन देशों की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को नष्ट करने के साथ-साथ उनकी आजादी को भी छीन लिया गया। उनकी निजता, उनकी अस्मिता, उनका सम्मान, उनकी राष्ट्रीयता आदि सभी पर पहरे लगा दिए गए। यह अलग बात है कि देर सबेर आगे चलकर उन लोगों ने नई व्यवस्था के साथ जीना सीख लिया और अपने अतीत को भूल गए।
परंतु क्या उनके भूल जाने से इतिहास के अत्याचारों को भुला दिया जाए या उन्हें आज के परिवेश में उचित मान लिया जाए। यदि ऐसा किया जाएगा तो जिन लोगों को उस समय इस्लाम के आक्रमणकारियों के अत्याचारों का सामना करना पड़ा था और निर्ममता से जिनकी हत्या की गई थी उनके उस अपराध को क्या मानवता की परिभाषा दी जानी चाहिए?
अब चलते हैं आज के तुर्किस्तान की ओर। इस देश ने कभी अपने पैतृक देश आर्यावर्त अर्थात भारतवर्ष के साथ गद्दारी की थी। महाभारत के युद्ध में इस देश की संस्कृति को मिटाने के लिए इसने दुर्योधन का साथ देते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। उसके पश्चात भी इसका दृष्टिकोण भारत के प्रति ठीक नहीं रहा। अपने किए की सजा भुगतने के लिए अब यह भी इस्लाम के निशाने पर आ चुका था। तुर्कों के विरुद्ध जिहाद 651 ईस्वी में आरंभ हुआ, और 751 ईस्वी तक सारे तुर्क जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!
इण्डोनेशिया अपने आपको आज तक भी भारत के साथ जोड़ने में गर्व और गौरव की अनुभूति करता है। भारतीयता के साथ इसका संबंध युगों पुराना है। इस देश के लिए जब इस्लाम के आक्रमणकारी निकले तो मात्र 40 वर्ष में ही इसके मौलिक स्वरूप को परिवर्तित करने में उन्हें सफलता प्राप्त हो गई। यद्यपि इसके उपरांत भी वहां के मुसलमानों ने अपने पूर्वजों के सम्मान के साथ समझौता नहीं किया। यही कारण है कि आज तक भी वहां के लोग अपने पूर्वज देश भारत के साथ अपने संबंधों को बहुत ही मित्रता पूर्ण बनाए रखने में सफल रहे हैं। सन 1260 में मुसलमानों ने इण्डोनेशिया में मारकाट मचाई, और 1300 ईस्वी तक सारे इण्डोनेशियाई जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!
फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान, जॉर्डन आदि देशों को 634 से 650 के बीच जबरदस्ती मुसलमान बना दिया गया!
इस्लाम को मानने वाले लोगों ने छल, कपट, बेईमानी, चालाकी और काफिरों को सबक सिखाने के लिए हर उस गिरे हुए हथकंडा को अपनाया जो भारतीय धर्म और युद्ध परंपरा में पूर्णतया वर्जित माने गए हैं। समय आने पर इस्लाम को मानने वाली महिलाओं ने भी अपने मर्दों का साथ दिया। उन्होंने हर उस गिरी हुई हरकत को करने में तनिक भी संकोच नहीं किया जो सभ्य समाज के लिए उचित नहीं कही जा सकती। हमारी इस बात की पुष्टि सीरिया की दर्द भरी कहानी को समझ कर स्पष्ट हो सकती है। जब इस्लाम के आक्रमणकारी इस देश में पहुंचे तो उन्होंने अपनी जीत को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रेरित होकर ईसाई सैनिकों के आगे अपनी महिलाओं को कर दिया! मुस्लिम महिलाएं ईसाई सैनिकों के पास गईं और उनसे अपील करने लगी कि मुसलमानों से हमारी रक्षा करो! इनकी इस प्रकार की झूठी अपील को ईसाई सैनिकों ने सच माना और वह इनकी धूर्तता में फंस गए। फलस्वरूप ईसाई सैनिकों ने इन मुस्लिम महिलाओं को अपने यहां शरण देने की गलती कर दी। मुस्लिम सैनिक बस इसी अवसर की प्रतीक्षा में थे। फलस्वरूप इन मुस्लिम महिलाओं ने अपने मर्दों के साथ मिलकर ईसाई सैनिकों को रातों-रात समाप्त करवा डाला।
यह लेख हमने मात्र हल्की सी झलक दिखाने के लिए ही यहां पर लिखा है। इस्लाम के अत्याचारों को स्पष्ट करने हेतु ग्रंथ के ग्रंथ लिखे जा सकते हैं।

देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन : उगता भारत समाचार पत्र

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