इस्लाम १४०० साल पुराना है जिन्हें आप मुस्लिम समझते
हैं वे सब पूर्व में आर्यावर्त से भागे हुए थे .ये सब पूर्व में
शुक्राचार्य के समर्थक थे जो हमेशा सनातन हिंदी धर्म के
विरोधी रहे ..वही शिक्षा उनहोंने अपने
शिष्यों को भी दी .जब भारत में उनकी दाल नहीं गली तो वे
अपने चेलों को लेकर रेगिस्तान की तरफ भाग गए थे ..बाद
में मोहम्मद साहब ने इनको इस्लाम के संघठन में बाँध
दिया, अपने देखा होगा की इनका सब काम सनातन
विरोधी है …ये सब शुक्राचार्य की देन है .
अरब देश का भारत, भृगु के पुत्र शुक्राचार्य तथा उनके
पोत्र और्व से ऐतिहासिक संबंध प्रमाणित है, यहाँ तक
कि “हिस्ट्री ऑफ पर्शिया” के लेखक साइक्स का मत है
कि अरब का नाम और्व के ही नाम पर पड़ा, जो विकृत
होकर “अरब” हो गया। भारत के उत्तर-पश्चिम में इलावर्त
था, जहाँ दैत्य और दानव बसते थे, इस इलावर्त में
एशियाई रूस का दक्षिणी-पश्चिमी भाग, ईरान
का पूर्वी भाग तथा गिलगित का निकटवर्ती क्षेत्र
सम्मिलित था।
अरब में शुक्राचार्य का इतना मान-सम्मान हुआ कि आज
जिसे ‘काबा’ कहते है, वह वस्तुतः ‘काव्य
शुक्र’ (शुक्राचार्य) के सम्मान में निर्मित उनके आराध्य
भगवान शिव का ही मन्दिर है। कालांतर में ‘काव्य’ नाम
विकृत होकर ‘काबा’ प्रचलित हुआ। अरबी भाषा में ‘शुक्र’
का अर्थ ‘बड़ा’ अर्थात ‘जुम्मा’ इसी कारण किया गया और
इसी से ‘जुम्मा’ (शुक्रवार) को मुसलमान पवित्र दिन मानते
है।
शुक्राचार्य की एक आँख फूट जाने के बाद उन्होंने अपने
शिष्य असुरों को अपना मुहं दिखाना बांध कर दिया| शिव
पुराण के अनुसार जब असुर उनसे मिलने आते तब वे पीठ
फेर कर बैठ जाए थे| असुर उनसे मुहं दिखाने का अनुरोध
करते थे फिर भी वो सामने नहीं आते थे, शुक्राचार्य ने
अपनी मूर्तियां तुड़वा डाली और कहा की मेरी कभी भी मूर्ती नहीं बनेंगी (हिंदू धर्म में काणेकी मूर्ती नहीं बनती है)| इस छटपटाहट ने शुक्राचार्य को मूर्ती ध्वंसक बना दिया| परिणामतः जो धर्ममूर्ती ध्वंसक है वो शुक्राचार्य द्वारा स्थापित किये है।
ये प्रव्रत्ति इस्लाम और ईसाईयों के इतिहास में भरी हुई हैं ।
मुहम्मद पैगम्बर खुद जन्मजात हिंदु था और काबा एक
हिन्दू मन्दिर काबा के प्रवेश-द्वार पर काँच का एक भव्य
द्वीप समूह लगा है जिसके उपर भगवत गीता के श्लोक
अंकित हैं.अंदर दीवार पर एक बहुत बड़ा यशोदा तथा बाल-
कृष्ण का चित्र बना हुआ है, जिसे वे ईसा और
उसकी माता समझते हैं. अंदर गाय के घी का एक पवित्र
दीप सदा जलता रहता है. ये दोनों मुसलमान धर्म के
विपरीत कार्य (चित्र और गाय के घी का दिया) यहाँ होते
हैं.. एक अष्टधातु से बना दिया का चित्र में यहाँ बता रहा हूँ
जो ब्रिटिश संग्रहालय में अब तक रखी हुई है..ये दीप अरब
से प्राप्त हुआ है जो इस्लाम-पूर्व है. इसी तरह का दीप
काबा के अंदर भी अखण्ड दीप्तमान रहता है .
ये सारे प्रमाण ये बताने के लिए पर्याप्त हैं कि क्यों मुस्लिम
इतना डरे रहते हैं इस मंदिर को लेकर..इस मस्जिद के
रहस्य को जानने के लिए कुछ हिंदुओं ने प्रयास किया तो वे
क्रूर मुसलमानों के हाथों मार डाले गए और जो कुछ बच कर
लौट आए वे भी पर्दे के कारण ज्यादा जानकारी प्राप्त
नहीं कर पाए…..भाषा की दृष्टि से तो अनगिणत प्रमाण हैं
यह सिद्ध करने के लिए कि अरब इस्लाम से पहले वैदिक
संस्कृति के प्रभाव में थे, जैसे कुछ उदाहरण-मक्का-मदीना, मक्का संस्कृत शब्द मखः से बना है जिसका अर्थ
अग्नि है तथा मदीना मेदिनी से बना है जिसका अर्थ
भूमि है..मक्का मदीना का तात्पर्य यज्य की भूमि है.,ईद
संस्कृत शब्द ईड से बना है जिसका अर्थ
पूजा होता है.नबी जो नभ से बना है..नभी अर्थात
आकाशी व्यक्ति.पैगम्बर “प्र-गत-अम्बर”का अपभ्रंश है
जिसका अर्थ है आकाश से चल पड़ा व्यक्ति..
क्या कभी आपने सोचा है की जब
मक्का की परिक्रमा की जाती है तो हिन्दुओ की तरह से
वस्त्र धरण क्यू किये जाते है ….. क्यू यह लोग दाढ़ी ओर
मूछे कटा देते है ओर हिन्दुओ की तरह सिर्फ एक
कपड़ा (बिना सिला ) हुआ पहनते है ..??
अत: यदि इस्लाम वास्तव में यदि अपनी पहचान की खोंज
करना चाहता है तो उसे इसी धरा ,संस्कृति व
प्रागैतिहासिक ग्रंथों में स्वयं को खोजना पड़ेगा……

सोशल मीडिया से साभार

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