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हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

बुद्ध के अस्तित्व के बारे में भ्रम और षडयंत्र

डा. राधेश्याम द्विवेदी
बुद्ध का शाब्दिक अर्थ है,जागृत होना, सतर्क होना तथाजितेन्द्रिय
होना। वस्तुतः बुद्ध एक व्यक्ति विशेष का परिचायक न होकर स्थितिविशेष का परिचायक है। वर्तमान समय में बुद्ध शब्द का व्यापकप्रयोग राजकुमार सिद्धार्थ के परिव्राजक रूप के लिए किया जाता हैजो सत्य नहीं है। सनातन धर्म की प्रवृत्ति प्रारम्भ से ही बड़ी उदार है।हमारे यहाँ किसी भी विषय, सिद्धांत और मत पर व्यापक चर्चा एवं विमर्श का स्थान सदा उपलब्ध रहा है। इसीलिए हमारे धर्मशास्त्रों में एक अंग दर्शनग्रन्थ का भी है। दर्शन का अर्थ है, देखना। यहाँ दर्शन का अर्थ है, धर्म को देखने का नजरिया। आस्तिक दर्शन और नास्तिक दर्शन, दोनों की व्यवस्था हमारे यहाँ की गयी है। आस्तिक दर्शन में पूर्व मीमांसा, उत्तर मीमांसा, सांख्य, योग, न्याय तथा वैशेषिक दर्शन का नाम आता है, तथा नास्तिक दर्शन में बौद्ध, जैन तथा चार्वाक दर्शन का नाम आता है।
सहस्रों बुद्धों के साथ कलियुग में तीन बुद्ध
बुद्ध एक नहीं हुए हैं। सहस्रों बुद्धों का आगमन हो चुका है, तथा
सहस्रों बुद्ध आयेंगे। इसीलिए वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड में बौद्ध को चोरों की भांति दंड देने कि बात आई है। इससे सिद्ध होता है कि वाल्मीकि के आगमन से पूर्व भी बौद्ध मत था। प्रवीण,निपुण, अभिज्ञ, कुशल, मैत्रेय, गौतम, कश्यप, शक्र, अर्यमा, शाक्यसिंह , क्रतुभुक, कृती, सुखी, शशांक, निष्णात, सत्व, शिक्षित, सर्वज्ञ, सुनत, रुरु, मारजित, बुद्ध, प्रबुद्ध आदि कई बुद्ध का वर्णन आता है। इनमें वर्तमान कलियुग में बुद्ध के तीन अवतार हुए। भगवान् बुद्ध ,सिद्धार्थ बुद्ध और गौतम बुद्ध तीनों अलग अलग हैं। भगवान् बुद्ध 2102-1982 ई पू में हुए , सिद्धार्थ बुद्ध 1887-1807 ई पू में हुए और गौतम बुद्ध 563-483 ई पू में हुए। अर्थात, गौतम ही नहीं, गौतम भी बुद्ध हैं। लोगों में यह भ्रम है कि गौतम ही बुद्ध थे । एक दूसरा भ्रम यह भी व्याप्त है कि गौतम बुद्ध नहीं थे, बल्कि बुद्ध कोई और थे। जबकि सत्य यह है कि गौतम ही नहीं, गौतम भी बुद्ध थे।
वस्तुतः बुद्ध एक नहीं बहुत हैं। जैसे कि पूर्व में बताया गया कि बुद्ध मात्र एक स्थिति विशेष का नाम है, तो उस स्थिति में पहुँचने वाला हर प्राणी बुद्ध कहलाया। ग्रंथों में गर्ग मुनि इत्यादि के मत का वर्णन आता कि तीन अवतार ऐसे हैं, जो हर द्वापर तथा कलियुग में होते है। ये तीन अवतार हैं, व्यास, बुद्ध तथा कल्कि है। शेष सभी अवतार कल्प में एक बार होते हैं। इनमें व्यास का कार्य है, वेदों का विभाजन, पुराणों का संकलन, तथा ग्रंथों का संरक्षण। बुद्ध का कार्य है, समाज में जो लोग धर्म के नाम पर पाखंड तथा पशु हिंसा आदि करें, ऐसी आसुरी सम्पदा से युक्त पुरुषों को मायामय उपदेश के द्वारा सनातन से विमुख करना। कल्कि अवतार का उद्देश्य है, बौद्ध, जैन तथा म्लेच्छों का विनाश करके पुनः विशुद्ध सनातन को स्थापित करना तथा व्यवस्था परिवर्तन करना।
भगवान् बुद्ध के वर्तमान प्रमुख अवतरणः-
भगवान् बुद्ध के दो प्रमुख अवतारों का उल्लेख मिलता है। पहला
पौराणिक विष्णु के समान्य अवतारों में तेईसवें क्रम में रहने वाले
भगवान बुद्ध और प्रमुख दशावतार का नवें क्रम में रहने वाले
पौराणिक बौष्णव बुद्ध अवतार और दूसरा एतिहासिकशाक्यमुनि
गौतम बुद्ध का अवतार है जो व्यवहारिक रुप में ज्यादा प्रचलन में है।
आधुनिक मान्यता के अनुसार गौतम बुद्ध को ही बुद्धावतार माना
जाता है परन्तु पुराणों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि गौतमतथा
बुद्ध दोनो भिन्न व्यक्ति थे। कृष्णावतार के बाद बुद्धावतार की
भविष्यवाणी भगवान वेदव्यास जी ने की है। विडंबना है कि लुम्बिनी में जन्म लिए युवराज गौतमबुद्ध को ही इतिहासकारों ने भगवान बुद्ध बना दिया और सनातन हिन्दू वैदिक अवतार के रूप में जो मूल पुरातन भगवान बुद्ध हुए उनके बारे में प्रर्याप्त प्रचार प्रसार नहीं हुआ। इस पुरातन बुद्ध ने बोध गया में जो ज्ञान पाया वह वास्तविक भगवान बुद्ध से ही पाया लेकिन इतिहास के अल्पज्ञानियों और सनातन के विरुद्ध षड्यंत्र करने वालों ने गौतम बुद्ध को ही भगवान बुद्ध घोषित कर दिया। वास्तविक भगवान बुद्ध से ही अहिंसा का पाठ लेकर अपने नए पंथ मत के प्रसार करने वाले गौतम बुद्ध और वास्तविक भगवान बुद्ध में अंतर को लेकर अभी तक भारत के विद्वानों या शोधकर्ताओं ने कोई निर्णायक कार्य भी नहीं किया।
सभी पंथों में मतेकता
पौराणिक, वैदिक और शास्त्री जन एक मत को व्यक्त करते हंै।
इनमें कोई भेद नहीं क्योंकि धर्ममय वृक्ष के वेद मूल हैं, शास्त्र शाखा है, पुराण पत्ते हैं, काव्य और प्रकरण ग्रन्थ ही पुष्प हैं, अभ्युदय फल हैतथा कल्याण ही उसका रस है। मूल के बिना वृक्ष का अस्तित्व नहीं।
अतः रुद्रयामल तन्त्र, श्रीमद्देवीभागवत महापुराण, स्मृतिग्रन्थ, भविष्य पुराण आदि में वेदों को स्वतः प्रमाण तथा अन्य को परतः प्रमाण की संज्ञा दी गयी है। वेदमूल धर्म की शाखा व्याकरण, निरुक्त आदि वेदांग शास्त्र हैं जो इसे समझने में सहायता करते हैं। पुराण वेदवाक्यों को अपनाने का सुपरिणाम और उल्लंघन के दुष्परिणाम के दृष्टान्त देकर समझाते हैं। काव्य उनके प्रचार का प्रत्यक्षीकरण करते हैं। अतः “अधीतिबोधाचरण  प्रचारणैः ” में क्रमशः वेद, शास्त्र, पुराण तथा काव्य का ही संकेत है। भगवान् विष्णु के सामान्य अवतारों में बुद्धअवतार को 23वां और प्रमुख अवतारों में नौंवा अवतार बताया जाता है। बुद्ध अवतार रूप में विष्णु का यह अंतिम अवतार है। वैदिक बुद्ध
अवतार कर्मकांड व यज्ञ से होने वाली बलि हिंसक कृत्य को दूर करने के लिए विष्णु ने बुद्ध के रूप में अवतार लिया था। लेकिन भगवान बुद्ध के निर्वाण के मात्र 100 वर्ष बाद ही बौद्धों में मतभेद उभरकर सामने आने लगे थे। वैशाली में सम्पन्न द्वितीय बौद्ध संगीति में थेर भिक्षुओं ने मतभेद रखने वाले भिक्षुओं को संघ से बाहर निकाल दिया। अलग हुए इन भिक्षुओं ने उसी समय अपना अलग संघ बनाकर स्वयं को महासांघिक और जिन्होंने निकाला था उन्हें हीनसांघिक नाम दिया। जिसने कालांतर में महायान और हीनयान का रूप धारण कर किया।
गौतम बुद्ध भगवान विष्णु के नौवें अवतार के प्रमाण इन ग्रंथों में
वर्णित है – हरिवंश पर्व (1.41) , विष्णु पुराण (3.18), भागवत
पुराण (1.3.24, 2.7.37, 11.4.23) , गरुड़ पुराण (1.1, 2.30.37, 3.15.26) , अग्निपुराण (16), नारदीय पुराण (2.72) , लिंगपुराण (2.71) और पद्म पुराण (3.252) आदि।
बुद्ध भगवान के अवतार
इसका प्रमाण भी पुराणों में प्राप्य इस रुप में व्यक्त है।
एतस्मिनैव काले तु कलिना संस्मृतो हरिः।
काश्यपादुद्भवो देवो गौतमो नाम विश्रुतः।
बौद्धधर्मं समाश्रित्य पट्टणे प्राप्तवान्हरिः।
(भविष्य पुराण)
कलियुग की प्रार्थना पर काश्यप गोत्र में भगवान विष्णु ने गौतम के नाम से अवतार लेकर बौद्धधर्म का विस्तार करते हुए पटना चले गये। पुनः लोग यह शंका करेंगे कि हमें राजा शुद्धोदन का भी नाम चाहिये, तो इसका प्रमाण भी उपलब्ध होता है।
शुद्धोदनस्तमालोक्य महासारं रथायुतैः प्रावृतं तरसा
मायादेवीमानेतुमाययौ ३. बौद्धा शौद्धोदनाद्यग्रे कृत्वा तामग्रतः पुनःयोद्धुं समागता म्लेच्छकोटिलक्षशतैर्वृताः (कल्कि पुराण,)
इस प्रसंग में वर्णन है कि जब कल्कि जी बौद्धों और म्लेच्छों का
विनाश करने लगेंगे तो बुद्ध, उनके पिता शुद्धोदन तथा माता मायादेवी पुनः प्रकट होंगे तथा म्लेच्छों के साथ मिलकर कल्कि जी से युद्ध करेंगे। इसी युद्ध के वर्णन के अंतर्गत वर्णन है कि जब शुद्धोदन हारकर मायादेवी को बुलाने चला गया तो बौद्धों ने शुद्धोदन के पुत्र का आश्रय लेकर लाखों करोड़ों म्लेच्छों कि सहायता से युद्ध करना आरम्भ किया। इस प्रकार से सभी प्रमाणों को एक साथ देखा जाय तो बुद्ध कई हैं, तथा सभी अवतार ही हैं जो उद्देश्य विशेष से यथासमय आते हैं। यदि प्रकाश में व्यक्ति हत्या कर रहा हो तो जान बचाने वाला अन्धकार कर देता है। वैसे ही जब धर्म का नाम लेकर
म्लेच्छों में ब्राह्मण बन कर अधर्म प्रारम्भ किया तो उन्हें ठीक करने के लिए भगवान ने बुद्ध के रूप में आकर कहा कि जिस ईश्वर और धर्म के नाम पर तुम ये सब कर रहे हो, उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। बाद में जयदेव कवि आदि ने भी कारुण्यमातान्वते, निन्दसि यज्ञविधे,सदय पशुघातम् आदि शब्दों के द्वारा इसी बात को प्रमाणित किया कि श्रीहरि का ही अवतार भिन्न भिन्न समयों में बुद्ध को रूप में हुआ था ।
काश्यप गोत्र में भगवान विष्णु ने गौतम के नाम से अवतार लेकर
बौद्धधर्म का विस्तार करते हुए पटना चले गये। पुनः लोग यह शंका करेंगे कि हमें राजा शुद्धोदन का भी नाम चाहिये, तो इसका प्रमाण भी उपलब्ध होता है।
“शुद्धोदनस्तमालोक्य महासारं रथायुतैः प्रावृतं तरसा
मायादेवीमानेतुमाययौ ३. बौद्धा शौद्धोदनाद्यग्रे कृत्वा तामग्रतः पुनः योद्धुं समागता म्लेच्छकोटिलक्षशतैर्वृताः” (कल्कि पुराण,)
इस प्रसंग में वर्णन है कि जब कल्कि जी बौद्धों और म्लेच्छों का
विनाश करने लगेंगे तो बुद्ध, उनके पिता शुद्धोदन तथा माता मायादेवी पुनः प्रकट होंगे तथा म्लेच्छों के साथ मिलकर कल्कि जी से युद्ध करेंगे। इसी युद्ध के वर्णन के अंतर्गत वर्णन है कि जब शुद्धोदन हारकर मायादेवी को बुलाने चला गया तो बौद्धों ने शुद्धोदन के पुत्र का आश्रय लेकर लाखों करोड़ों म्लेच्छों कि सहायता से युद्ध करना आरम्भ किया। इस प्रकार से सभी प्रमाणों को एक साथ देखा जाय तो बुद्ध कई हैं, तथा सभी अवतार ही हैं जो उद्देश्य विशेष से यथासमय आते हैं। यदि प्रकाश में व्यक्ति हत्या कर रहा हो तो जान बचाने वाला अन्धकार कर देता है। वैसे ही जब धर्म का नाम लेकर
म्लेच्छों में ब्राह्मण बन कर अधर्म प्रारम्भ किया तो उन्हें ठीक करने के लिए भगवान ने बुद्ध के रूप में आकर कहा कि जिस ईश्वर और धर्म के नाम पर तुम ये सब कर रहे हो, उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। बाद में जयदेव कवि आदि ने भी कारुण्यमातान्वते, निन्दसि यज्ञविधे,सदय पशुघातम् आदि शब्दों के द्वारा इसी बात को प्रमाणित किया कि श्रीहरि का ही अवतार भिन्न भिन्न समयों में बुद्ध को रूप में हुआ था ।
काश्यप गोत्र में भगवान विष्णु ने गौतम के नाम से अवतार लेकर
बौद्धधर्म का विस्तार करते हुए पटना चले गये। पुनः लोग यह शंका करेंगे कि हमें राजा शुद्धोदन का भी नाम चाहिये, तो इसका प्रमाण भी उपलब्ध होता है।
“शुद्धोदनस्तमालोक्य महासारं रथायुतैः प्रावृतं तरसा
मायादेवीमानेतुमाययौ ३. बौद्धा शौद्धोदनाद्यग्रे कृत्वा तामग्रतः पुनः योद्धुं समागता म्लेच्छकोटिलक्षशतैर्वृताः” (कल्कि पुराण,)
इस प्रसंग में वर्णन है कि जब कल्कि जी बौद्धों और म्लेच्छों का
विनाश करने लगेंगे तो बुद्ध, उनके पिता शुद्धोदन तथा माता मायादेवी पुनः प्रकट होंगे तथा म्लेच्छों के साथ मिलकर कल्कि जी से युद्ध करेंगे। इसी युद्ध के वर्णन के अंतर्गत वर्णन है कि जब शुद्धोदन हार कर मायादेवी को बुलाने चला गया तो बौद्धों ने शुद्धोदन के पुत्र का आश्रय लेकर लाखों करोड़ों म्लेच्छों कि सहायता से युद्ध करना आरम्भ किया। इस प्रकार से सभी प्रमाणों को एक साथ देखा जाय तो  बुद्ध कई हैं, तथा सभी अवतार ही हैं जो उद्देश्य विशेष से यथासमय आते हैं। यदि प्रकाश में व्यक्ति हत्या कर रहा हो तो जान बचाने वाला अन्धकार कर देता है। वैसे ही जब धर्म का नाम लेकर
म्लेच्छों में ब्राह्मण बन कर अधर्म प्रारम्भ किया तो उन्हें ठीक करने के लिए भगवान ने बुद्ध के रूप में आकर कहा कि जिस ईश्वर और धर्म के नाम पर तुम ये सब कर रहे हो, उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। बाद में जयदेव कवि आदि ने भी कारुण्यमातान्वते, निन्दसि यज्ञविधे,सदय पशुघातम् आदि शब्दों के द्वारा इसी बात को प्रमाणित किया कि श्रीहरि का ही अवतार भिन्न भिन्न समयों में बुद्ध को रूप में हुआ था ।
नास्तिक बौद्ध दर्शन का आश्रय लेकर विष्णु भक्तों को भ्रमित करनाः-
वर्तमान में तथाकथित नवबौद्ध आदि बुद्ध के मूल सिद्धांत को न जानने के कारण घोर अनर्थ करते हैं। क्योंकि बुद्ध ने समाज में व्याप्त कुरीतियों के फोड़े को काट कर हटाया और शेष को सुरक्षित किया। लेकिन कथित बौद्धगण स्वस्थ देह का गला ही काट दे रहे हैं। वस्तुतः यह सब कुछ पूर्व नियोजित था कि सनातन में घुसपैठ किये म्लेच्छों को नास्तिक बौद्ध दर्शन का आश्रय लेकर विष्णु भगवान भ्रमित करके उन्हें सनातन से वापस दूर करेंगे तथा इस प्रक्रिया में जो भी कुछ सनातनियों में भ्रम व्याप्त होगा उसे बाद में उचित अवसर पाकर कुमार कार्तिकेय तथा भगवान शिव क्रमशः आचार्य कुमारिल भट्ट तथ
आदिगुरू शंकराचार्य के रूप में आकर ठीक करेंगे। निष्कर्ष यह निकलता है कि बुद्ध निःसंदेह नारायण के अवतार हैं तथा उनका उद्देश्य तथा कर्तव्य सही था। बुद्ध सही थे, बौद्ध नहीं।
अजिन पुत्र बौष्णव बुद्धः-
धर्मसम्राट् करपात्री स्वामी आदि ने इसलिये गौतम बुद्ध को अवतरण नहीं माना क्योंकि अम्बेडकर के बौद्ध बन जाने से अंग्रेजों ने सवर्ण तथा दलित नाम का जो कथित विभाजन किया था, उसमे दलित जन सनातन विरोधी हो रहे थे। साथ ही वे यह भी मानते थे कि गौतम ही एक मात्र बुद्ध हैं। उससे पहले कोई बुद्ध नहीं हुआ। इसीलिए करपात्री जी ने गौतम को अवतरण नहीं मानने की दूरगामी नीति अपनायी ताकि लोग बाद में भ्रमित न हों। साथ ही उन्होंने अजिन पुत्र पर भी जोर दिया। यदि गौतम से विरोध होता तो आचार्य शंकर, आचार्य कुमारिल तथा आचार्य उदयन आदि, जो गौतम से कुछ ही
समय बाद हुए थे, कभी न कभी कहीं न कहीं यह जरूर कहते कि अजिन पुत्र ही वास्तव में बुद्ध अवतार हैं। यह गौतम नाम का आदमी फर्जी बुद्ध था। लेकिन एसा कभी नहीं हुआ। क्योंकि वे इस बात को अच्छे से जानते थे। आदिगुरु ने कभी गौतम के अवतार न होने की बात कही ? या ये कि वो फर्जी बुद्ध है। एक मात्र अंजन पुत्र ही बुद्ध हैं। और केवल वे ही
अवतार हैं। कुमारिल भट्ट या आचार्य उदयन ने भी नहीं कहा। जबकि गौतम के सबसे निकट समकालीन बौद्ध खंडक तो वही लोग थे। इसका कारण अम्बेडकर के बौद्ध बनने से सनातनियों का बड़ा वर्ग जो अंग्रेजों की कूटनीति का शिकार था, बुद्ध की ओर आकर्षित हुआ। यदि धर्मसम्राट जी जैसा अतिमान्य व्यक्तित्व यह कहता कि गौतम बुद्ध विष्णु के अवतार हैं तो बाकी सुधरे हुए सनातनियों में यह भ्रम होता
कि विष्णु के कृष्ण और बौद्ध अवतार के उपदेश में इतनी विसंगति क्यों है। मूल उद्देश्य जो अवतारों का था, उससे वे परिचित तो थे नहीं। अब बुद्ध का मत भौतिकवादी है। मायाप्रधान है। बहुत लुभावना है, बहुत आकर्षक है। अतः यदि उन्हें विष्णु का अवतार कह देते तो लोग और तेजी से बुद्ध की ओर भागते। ये कह कर कि बौद्ध बनने से हमें भौतिकवाद का लाभ मिलेगा और लोग हमें गलत भी नहीं कहेंगे क्योंकि बुद्ध तो विष्णु के अवतार थे। अतः उन्होंने सीधा कह दिया कि
गौतम बुद्ध विष्णु के अवतार ही नहीं है। यहाँ ध्यान दें कि नीति
उन्होंने वही अपनायी जो विष्णु भगवान् ने बौद्धवतार में लगायी थी।
ईश्वर के नाम पर अधर्म करने वालों को यह कह कर रोका कि ईश्वर ही नहीं है। इस प्रकर धर्मसम्राट करपात्री स्वामी जी ने सनातन का बहुत बड़ा वर्ग बचा लिया जो बौद्ध बनने जा रहे थे। अब जैसे हमारे हजारों जन्मों में हजारों माता पिता हुए, पर हमने उसी को प्रधानता दी, उसी से प्रभावित हुए जो सबसे अर्वाचीन है। वैसे ही सभी लोग अंजन पुत्र की अपेक्षा गौतम से अधिक प्रभावित हुए। अब गौतम का विरोध करने से एसे लोग, जो यह सोच रहे थे कि बौद्ध मत का लाभ लेंगे लेकिन धर्मभीरु होने से बौद्ध मत को भी सनातन ही मान रहे थे,यह कह कर कि गौतम बुद्ध विष्णु के अवतार हैं, अतः हम सही हैं,ऐसे लोगों पर विराम लग गया।
आधुनिक मान्यता के अनुसार गौतम बुद्ध को ही बुद्धावतार माना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार बौद्धधर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध भी भगवान विष्णु के ही अवतार थे। पुराणों में वर्णित भगवान बुद्धदेव का जन्म गया के समीप कीकट में ब्राहमण परिवार में हुआ बताया गया है। उनके माता का नाम अंजना और पिता का नाम हेमसदन बताया गया है।
पुराणों में भगवान् विष्णु के चैबीस समान्य अवतार बतलाए गए हैं। इनमें बुद्ध का स्थान तेइसवां है। 24 अवतार में से 10 अवतार विष्णु जी के मुख्य अवतार माने जाते है। इस समूह में बुद्ध का नवां स्थान रहा है।
दैत्यों के वैदिक आचरण एवं महायज्ञों को रोकने के लिए    हुआ थापौराणिक विष्णु का बुद्धावतार –
गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध एक नहीं हैं। वे भगवान क्षीरोदशायी विष्णु के अवतार हैं। बलि प्रथा की अनावश्यक जीव हिंसा को बंद करने के लिए ही इनका अवतार हुआ था। एक समय दैत्यों की शक्ति बहुत बढ़ गई। देवता भी उनके भय से भागने लगे। राज्य की कामना से दैत्यों ने देवराज इंद्र से पूछा कि हमारा साम्राज्य स्थिर रहे, इसकाउपाय क्या है ? तब इंद्र ने शुद्ध भाव से बताया कि बताया कि सुस्थिर शासन के लिए यज्ञ एवं वेद विहित आचरण आवश्यक है। तब दैत्य
वैदिक आचरण एवं महायज्ञ करने लगे, जिससे उनकी शक्ति और बढने लगी। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने देवताओं के हित के लिए बुद्ध का रूप धारण किया। उनके हाथ में मार्जनी (झाड़ू) थी और वे मार्ग को बुहारते हुए चलते थे। इस प्रकार भगवान बुद्ध दैत्यों के पास पहुंचे और उन्हें उपदेश दिया कि यज्ञ करना पाप है। यज्ञ से जीव हिंसा होती है। यज्ञ की अग्नि से कितने ही प्राणी भष्म हो जाते हैं। भगवान बुद्ध के उपदेश से दैत्य प्रभावित हुए। उन्होंने यज्ञ व वैदिक आचरण करना छोड़ दिया। इसके कारण उनकी शक्ति कम हो गई और देवताओं ने उन पर हमला कर अपना
राज्य पुनः प्राप्त कर लिया।
पौराणिक प्रमाणों का विश्लेषण:-
श्रीमद् भागवत स्कन्ध 1 अध्याय 6 के श्लोक 24 अनुसार कहा गया  है –
ततः कलौ सम्प्रवृत्ते सम्मोहाय सुरद्विषाम्।
बुद्धोनाम्नाजनसुतः कीकटेषु भविष्यति॥
अर्थात – कलयुग में देवद्वेषियों को मोहित करने नारायण कीकट प्रदेश (बिहार या उड़ीसा) में अंजन के पुत्र के रूप में प्रकट होंगे। जबकि गौतम का जन्म वर्तमान नेपाल में राजा शुद्धोदन के घर हुआ था। बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है.।इसके संस्थापक महात्मा बुद्ध शाक्यमुनि (गौतम बुद्ध) थे। वे 563 ईसा पूर्व से 483 ईसा पूर्व तक रहे। ईसाई और इस्लाम धर्म से पहले बौद्ध धर्म की उत्पत्ति हुई थी। दोनों धर्म के बाद यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। इस धर्म को मानने वाले ज्यादातर चीन, जापान,कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और भारत जैसे कई देशों में रहते हैं।
गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध एक नहीं –
गौतम बुद्ध शुद्धोदन व माया के पुत्र थे,

जबकि शाक्यसिंह यानी
भगवान गौतम बुद्ध बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति थे, कठिन तपस्या के बाद जब उन्हें तत्त्वानुभूति हुई तो वे बुद्ध कहला। यही भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार हैं। इसकी प्रमाणिकता एतिहासिक ग्रंथों में मिलती है।1807 में रामपुर से प्रकाशित अमरकोश में एच टी कोलब्रुक ने इस प्रमाणित किया है। ललित विस्तार ग्रन्थ के 21 वें अध्याय के 178 पृष्ठ पर बताया गया है कि यह मात्र संयोग ही है कि गौतम बुद्ध(शाक्यसिंह) ने उसी स्थान पर तपस्या की थी, जिस स्थान पर भगवान बुद्ध ने तपस्या करने की लीला किया था। यही कारण है कि लोगों ने दोनों को एक ही मान लिया। जर्मन के वरिष्ठ स्कॉलर मैक्स मुलर जी
के अनुसार शाक्यसिंह बुद्ध यानी गौतम बुद्ध, कपिलवस्तु के लुम्बिनी के वनों में 477 ईप.ू में जन्मे थे। गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोदन तथा माता का नाम मायादेवी है। एक और बात श्रीमद्भागवत महापुराण (1.3.24) तथा श्रीनरसिंह पुराण (36/29) के अनुसार भगवान बुद्ध आज से लगभग 5000 साल पहले इस धरातल पर आए जबकि मैक्समूलर के अनुसार गौतम बुद्ध 2491 साल पहले आए। कहने का तात्पर्य यह है कि गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध एक नहीं हैं।
भागवत के श्लोक भगवान के अवतार का जन्म स्थान और माता का नाम अवतरण से 2500 वर्ष पहले ही बता दिया गया है जो की शत प्रतिशत सही प्रतीत होता है। इससे श्रीमद भागवतम की सत्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है। बुद्ध भगवान को विष्णु का 21वां अवतार भी कहीं कहीं कहा गया है। फिर श्रीमद भागवतम 2.7.37में भगवान के बुद्ध अवतार का प्रयोजन समझाया गया है।
देवद्विषां निगमवर्त्मनि निष्ठितानां
पूर्भिर्मयेन विहिताभिरदृश्यतूभिर्रू।
लोकान् घ्नतां मतिविमोहमतिप्रलोभं
वेषं विधाय बहु भाष्यत औपधर्म्यम् ॥
अर्थात जब सभी नास्तिक वेदिक वैज्ञानिक ज्ञान में पारंगत होने के बाद दूसरे लोकों में रहने वालों का संघार करेंगे, बिना दिखे बड़े-बड़े अंतरिक्ष यानों में उड़ेंगे जो की माया द्वारा निर्मित होंगे तब भगवान ऐसा आकर्षक बुद्ध रूप लेकर धरती पर अवतरित होंगे जिससे नास्तिक भ्रमित हो जाए और फिर वे उन्हें उप धार्मिक सिद्धांतों यानिकम महत्व वाले सिद्धांतों का पाठ पढ़ाएंगे। और यदि देखा जाए तो भगवान बुद्ध ने अधर्मी नास्तिकों को धर्म के मार्ग पर लाने का ही तो काम किया और सारी नास्तिकों से भरी दुनिया को जो वेदों का
हवाला देकर जानवरों का बेमतलब संहार कर रही थी उससे वेदों कोन मानने को कहकर भ्रमित कर दिया। गरुड़ पुराण 3.15.26 में बताया गया है भगवान बुद्ध क्या करेंगे।
ततः कलौ संप्रवृत्ते हार्रिस्तु। संमोहनार्थं चासुरणां खगेन्द्र।
नाम्ना बुद्धो कीकटेषु प्रजातो। वेदप्रमाणम निराकर्तुमेव।
अर्थात फिर कालियुग में भगवान, बुद्ध के रूप में कीकटों में पैदा हुए थे। उन्होंने असुरों को भड़काया और वेदों की धज्जियाँ उड़ा दीं। अन्य बहुत सारी जगहों पर भगवान के बुद्ध अवतार का वर्णन मिलता है जैसे हरिवंश पुराण (1.41), विष्णु पुराण (3.18), नारद पुराण (2.72), पद्म पुराण (3.252) इत्यादि। इस प्रकार भगवान बुद्ध, भगवान के अवतार हैं।
धर्म ग्रंथों के अनुसार बौद्धधर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध भी भगवान विष्णु के ही अवतार थे परंतु पुराणों में वर्णित भगवान बुद्धदेव का जन्म गया के समीप कीकट में हुआ बताया गया है और उनके पिता का नाम अंजन बताया गया है। यह प्रसंग पुराण वर्णित बुद्धावतार का ही है। एक समय दैत्यों की शक्ति बहुत बढ़ गई। देवता भी उनके भय से भागने लगे। राज्य की कामना से दैत्यों ने देवराज इंद्र से पूछा कि हमारा साम्राज्य स्थिर रहे, इसका उपाय क्या है। तब इंद्र ने शुद्धभाव से बताया कि सुस्थिर शासन के लिए यज्ञ एवं वेद विहितआचरण आवश्यक है। तब दैत्य वैदिक आचरण एवं महायज्ञ करने
लगे, जिससे उनकी शक्ति और बढने लगी। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने देवताओं के हित के लिए बुद्ध का रूप धारण किया। उनके हाथ में मार्जनी थी और वे मार्ग को बुहारते हुए चलते थे।इस प्रकार भगवान बुद्ध दैत्यों के पास पहुंचे और उन्हें उपदेश दिया कि यज्ञ करना पाप है। यज्ञ से जीव हिंसा होती है। यज्ञ की अग्नि से कितने ही प्राणी भस्म हो जाते हैं। भगवान बुद्ध के उपदेश से दैत्य
प्रभावित हुए। उन्होंने यज्ञ व वैदिक आचरण करना छोड़ दिया। इसकेकारण उनकी शक्ति कम हो गई और देवताओं ने उन पर हमला कर अपना राज्य पुनः प्राप्त कर लिया।
श्रीमद भागवतम 1.3.1 में बताया गया हैं कैसे भगवान अपने आप को विस्तृत करते हैं ताकि संसार कि रचना की जा सके।
जगृहे पौरुषं रूपं भगवान्महदादिभिः।
सम्भूतं षोडशकलमादौ लोकसिसृक्षया ॥ 1 ॥
अर्थात सूत ने कहा सृष्टि की शुरुआत में, भगवान ने सर्वप्रथम अपनेआप को सर्वव्यापी पुरुष अवतार के रूप में विस्तारित किया और भौतिक निर्माण के लिए सभी आवश्यक सामग्री को प्रकट किया और इस प्रकार सबसे पहले भौतिक क्रिया के सोलह सिद्धांतों का निर्माण हुआ। यह सामग्री ब्रह्मांड बनाने के उद्देश्य से थी। ये हैं भगवान का प्रथम अवतार, सर्वव्यापी पुरुष जिसे करणोदकशाई विष्णु कहते हैं
श्रीमद भागवतम 1.3.2 में बताया गया है भगवान के दूसरे अवतार विष्णु भगवान हैं, जिनकी नाभि से निकले कमल से ब्रह्मा जी का जन्म हुआ।
यस्याम्भसि शयानस्य योगनिद्रां वितन्वतरू।
नाभिह्रदाम्बुजादासीद्ब्रह्मा विश्वसृजां पतिरू ॥ 2 ॥
अर्थात पुरुष का एक भाग ब्रह्मांड के पानी के भीतर स्थित है, उसके शरीर की नाभि झील से एक कमल का तना निकलता है और इस तने के ऊपर कमल के फूल से ब्रह्मा, ब्रह्मांड के सभी इंजीनियरों के गुरु प्रकट होते हैं। हम सभी भी इसी व्यक्ति को विष्णु जी (गर्भोदकशायी विष्णु) जानते और समझते हैं जिसकी नाभि से कमल का फूल निकलता हैं, जिससे
ब्रह्मा का जन्म होता हैं और ये भगवान का दूसरा अवतार हैं। अब ये भी स्थापित हो गया हैं कि विष्णु जी भी भगवान के अवतार हैं।
शंकराचार्य ने भगवान बुद्ध व गौतम बुद्ध                      को अलग-अलग व्यक्ति बताया
श्रीगोवर्धन मठ पुरी के पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने कहा है कि भगवान बुद्ध और गौतम बुद्ध अलग-अलग व्यक्ति थे। दोनों का जन्म अलग-अलग काल में हुआ था। जिस गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का अंशावतार घोषित किया गया था, उनका जन्म कीकट प्रदेश (मगध) में ब्राह्मण कुल में हुआ था। उनके सैकड़ों साल बाद कपिलवस्तु में जन्मे गौतम बुद्ध क्षत्रिय राजकुमार थे।
ब्राह्मण काल के थे भगवान बुद्ध
कर्मकांड में जिस बुद्ध की चर्चा होती है वे अलग हैं। इनकी चर्चा वेदों में भी हुई है। भगवान के ये अंशावतार हैं। इनकी चर्चा श्रीमद्भागवत में है। इनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था।
दोनों का गोत्र था गौतम शंकराचार्य ने कहा कि दोनों का गोत्र गौतम था। यह भी एक कारण था कि इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया। अग्निपुराण में लंब कर्ण कहकर भगवान बुद्ध की चर्चा की गई है। गौतम बुद्ध के लंबे कान प्रतिमाओं में बनाए जाने लगे। बौद्ध स्वयं को वैदिक नहीं मानते।दलाई लामा कहते हैं कि हम हिंदू नहीं हैं। दोनों के अनुयायियों में विभेद है। तथापि जैन, बौद्ध एवं सिख जन्म, पुनर्जन्म, दाह संस्कार, वेद, बीज ओम या प्रणव, गाय एवं गंगा पर आस्था रखते हैं। वट को मानें और उसके बीज को न मानें यह तो अद्भुत है।

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