कश्मीरी आतंकवाद ,अध्याय 7 , जब मिटाया गया कश्मीर का हिंदू स्वरूप 2
कश्मीर की तत्कालीन परिस्थितियां
वास्तव में यह इतिहास का वह दौर था जब मुस्लिम शासकों को कश्मीर की जनता पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए कुछ ऐसे हाथों की आवश्यकता थी जो उनके लिए काम करते हों और जनता को बड़ी सावधानी से बहला-फुसलाकर इस्लाम के झंडे के नीचे लाकर उनके प्रति निष्ठावान बनाने की कला में पारंगत हों। उधर सैय्यदों को भी अपने किसी राजनीतिक संरक्षक की आवश्यकता थी। जो उन्हें अपने देश से दूर भारत भूमि पर सुरक्षा प्रदान कर सके और वे जो कुछ भी करें उसको अपना समर्थन व संरक्षण भी दे सके । ऐसे में कश्मीर का मुस्लिम शासक और ये सैयद लोग दोनों एक दूसरे के पूरक होकर काम करने लगे। सैय्यदों ने इस्लाम के लिए काम करते हुए बहुत सावधानी का परिचय दिया। उन्होंने कश्मीरी ब्राह्मणों को प्रलोभन देकर मुस्लिम बनाने का काम करना आरंभ किया। उस समय यह प्रक्रिया बड़े प्यार से चलाई गई । जिससे कि कश्मीर का ब्राह्मण वर्ग इस्लाम को स्वीकार करने के लिए सहज ही तैयार हो जाए। अपनी योजना को सिरे चढ़ाने के दृष्टिकोण से गरीब ब्राह्मणों को वस्त्र , भोजन ,दवाई आदि नि:शुल्क वितरित किए जाने लगे। जिससे कि निर्धन वर्ग के हिंदू धर्म परिवर्तन के लिए सहजता से प्रभावित हो सकें।
मुस्लिम इतिहासकार एम0डी0 सूफी ने अपनी ‘कश्मीर’ नामक पुस्तक में लिखा है कि – ‘सैय्यदों ने मुस्लिम राजाओं में बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की । इनका प्रभाव राजाओं पर बढ़ता चला गया। इन्होंने अनेक प्रचार केंद्र स्थापित किए । जहां लोगों को नि:शुल्क भोजन दिया जाता था और तत्पश्चात उन्हें इस्लाम में कबूल कर लिया जाता।’
वास्तव में कश्मीर के इस्लामीकरण की यह प्रक्रिया बहुत ही सावधानी से आरंभ की गई थी । हमारे इतिहासकारों ने जानबूझकर इस्लाम के धर्म प्रचारकों के इस रूप को इस प्रकार प्रस्तुत करके दिखाया है कि जैसे उन्होंने बहुत मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाकर अपने मत का प्रचार किया और भारत के लोग स्वेच्छा से उनके साथ जुड़ते चले गए। सूफी लोगों को भारत की भक्ति परंपरा के संत लोगों के जैसा दिखाने का भी प्रयास किया गया है। जबकि हमारे संतों की भक्ति परंपरा में और इन सूफियों की भारत को नष्ट करने की परंपरा में जमीन आसमान का अंतर है । हमारे देश के संतों की भक्ति परंपरा में जहां संतों का उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति के लिए समाज को आंदोलित करना होता था वहीं सूफियों का उद्देश्य कोरा राजनीति की ही होता था। उसमें आध्यात्मिकता दूर-दूर तक भी नहीं होती थी।
कश्मीर के इस्लामीकरण के इस काल में इस्लाम को मानने वाले प्रचारकों ने बड़ी गंभीरता से इस तथ्य को समझा कि भारत के लोगों पर पंडित वर्ग का बहुत अधिक प्रभाव है। यही कारण रहा कि उन्होंने कश्मीर के ब्राह्मणों को ही अपना निशाना बनाया। इस प्रकार उन्होंने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि यदि कश्मीरी ब्राह्मण हिंदू से मुसलमान बन गए तो अन्य बिरादरियों के लोग बड़ी सरलता से इस्लाम में दीक्षित हो जाएंगे। उन्होंने ब्राह्मण से मुस्लिम बने लोगों को वहां भी धर्म के प्रचार-प्रसार का कार्य दिया। इस प्रकार उन्हें ‘इस्लामिक ब्राह्मण’ के रूप में प्रस्तुत कर उनका प्रयोग भारत के धर्म के विनाश के लिए किया जाने लगा।
कश्मीर में धार्मिक विकृतिकरण
कश्मीर के अनेकों स्थानों पर मदरसों की स्थापना की गई। इन मदरसों को इस्लाम की शिक्षाओं के प्रचार – प्रसार के लिए प्रयोग किया गया। इस प्रकार शांत जहर के माध्यम से सूफियों, सैय्यदों और मदरसों ने कश्मीर में धार्मिक विकृतिकरण ( जिसे सामान्य रूप से लोग धर्मांतरण कहा करते हैं) की प्रक्रिया को तेज कर दिया। सैयद अली हमदानी ने उस समय के एक हिंदू संत लल्लेश्वरी से भी अपनी निकटता स्थापित की । संत लल्लेश्वरी को अपने प्रभाव में लेकर हिंदू समाज का बहुत भारी अहित किया । हमदानी ने उस हिंदू संत के साथ मिलकर धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करने आरंभ किए। दोनों इस बात पर सहमत थे कि मूर्ति पूजा किसी भी दृष्टिकोण से मनुष्य समाज के लिए उचित नहीं है । इसी को आधार बनाकर हिंदू समाज के लोगों को मूर्ख बनाने के उद्देश्य से प्रेरित होकर सैय्यद ने योग और दर्शन की प्रशंसा करनी आरंभ कर दी । जिससे लल्लेश्वरी के शिष्य उसके प्रभाव में आ गए।
सैयद हमदानी की इस चाल में फंस कर बड़ी संख्या में हिंदू संत और 37000 हिंदू इस्लाम में दीक्षित हो गए। उस समय का मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन भी सैयद हमदानी के प्रभाव में था। उसने सुल्तान से राजनीति का पूर्ण इस्लामीकरण करवा दिया था । अब जबकि बड़ी संख्या में इस्लाम को मानने वाले कश्मीर में पैदा हो गए थे तो सैय्यद हमदानी ने कुतुबुद्दीन को उकसाकर जबरन तलवार के बल पर कश्मीर के हिंदुओं का धर्मांतरण करने के लिए उसे तैयार कर लिया। यद्यपि हिंदुओं की संख्या के कारण कुतुबुद्दीन ऐसा निर्णय नहीं ले पाया, जिससे नाराज होकर सैयद हमदानी अपने देश लौट गया। कुल मिलाकर इस काल में कश्मीर का धार्मिक विकृतिकरण करने पर अधिक बल दिया गया । जिससे हिंदू समाज को भारी क्षति उठानी पड़ी। हिंदू समाज के लोगों का धार्मिक, मानसिक, आर्थिक, राजनीतिक सब प्रकार से दोहन और शोषण किया गया।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत