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वैदिक संपत्ति

वैदिक सम्पत्ती तृतीय – खण्ड अध्याय – मुसलमान और आर्यशास्त्र

गतांक से आगे…
इन आगाखानी गुरुओं के पूर्वज बड़े ही चालाक थे। इन्होंने अपनी चालाकी से दूर-दूर तक अपने धर्म का प्रचार किया।इन्होंने मिश्रियों में, ईसाइयों में और दूसरे फिर्को में बड़ी ही चातुरी से प्रचार किया। इनकी प्रचार सम्बन्धी चालाकीयों का पता खोजों के एक मुकदमे का फैसला देखने से लगता है। यह फैसला सन 1866 ईस्वी में हाईकोर्ट के जजों ने लिखा है। इसमें लिखा है कि, जब किसी शिया को इमामी इस्माइली धर्म में लाना होता है, तो इस्माइली उपदेशक पहिले शिया धर्म की शिक्षा को दिलोजान से स्वीकार करता है, अली और उसके पुत्र पर हुए जुल्मों पर दु:ख प्रकाश करता है, हुसैन के शहीद होने पर दया दिखलाता है और उसके कुटुम के साथ कुछ सहायता करने के लिए विचार दर्शाता है तथा बनी, उमैया औ अब्बाशी के लिए तिरस्कार प्रकट करता है। इस तरह से अपने लिए रास्ता तैयार करता है और फिर धीरे से इशारह करता है कि, शियाधर्म जानने और पालने की अपेक्षा इस्लामी धर्म के गुप्त भेदों को जानना चाहिए। इसी तरह जब किसी यहूदी को अपने धर्म में लाना होता है, तो इनका उपदेशक खिती और मुसलमानी धर्म के विरुद्ध बोलता है और जिसको अपने धर्म में लाना होता है उसके साथ मिलकर कहता है कि, यह विश्वास रखना चाहिए कि, मसीहा आने वाला है। परन्तु धीरे-धीरे उसके मन में यह बात जमाता है कि, जो मसीहा आने वाला है वह अली के सिवा और दूसरा कोई नहीं है। इसी तरह जब किसी ईसाई को अपने धर्म में लाना होता है, तो यहूदियों की हठ और मुसलमानों की अज्ञानता का वर्णन करता है और ईसाई धर्म के मुख्य अंशों को मान दन का ढोंग रचता है। किन्तु धीरे-धीरे ऐसा इशारह भी करता है कि, यह सब ठीक है, पर इसके भीतर बड़ा भेद है और यह भेद प्रकट करने वाला एकमात्र इस्लामी धर्म ही है। फिर उसको सूचना करता है कि, ईसाइयों ने पारकीट (Paraclete=The Holy Ghost Or Spiris ) की तालीम का अर्थ उलट दिया है। मतलब यह है कि, ये लोग अपने धर्म के विचार गुप्त रखते हैं और जिसको अपने धर्म में लाना होता है, उसके धर्म का एक बड़ा भाग खुद कुबूल कर लेते हैं।
इसी ढंग से शिक्षा देने के लिये इन्होंने मिश्र में एक विद्यालय भी खोला था। उस विद्यालय की वार्षिक आमदनी 2,57,000 ड्यूकेट थी।उस विद्यालय में धर्म शिक्षा के नौ दर्जे थे और शिक्षा का क्रम यह था।
प्रथम श्रेणी – शिक्षक के वचनों पर विश्वास रखना। धर्म पर भरोसा रखने के लिए प्रेरणा करना। धर्म के गुप्त भेदों में बाधा न डालने और उनमें श्रद्धा रखने के लिए कसम खाना। धर्म और बुद्धिवाद में जहां अंतर आवें, वहां उल्टी-सीधी बातें बनाकर जिज्ञासु को संदेह में डालना। इन समस्त बातों को काम में लाने के लिए कोई कसर बाकी ने रखना।

द्वितीय श्रेणी – परमेश्वर के बनाए हुए इमाम जो विद्याप्रचार के मूल थे, उनकी पहचान कराना, उनकी बढ़ाई करना और उन पर विश्वास पक्का कराना।

तृतीय श्रेणी – इमाम पर विश्वास हो जाने पर उनकी संख्या के विषय में बातचीत करना और कहना कि, इमामीं की संख्या सात ही थी। क्योंकि सात की संख्या पवित्र होती है। परमेश्वर ने जिस प्रकार सात की पवित्रता को ध्यान में रखकर सात दुनिया, सात आसमान, सात दरिया ,सात ग्रह, सात रंग, सात स्वर और सात धातुओं को बनाया है, उसी प्रकार प्राणियों में श्रेष्ठ सात ही इमामो को भेजा है। इसके बाद उन साथ इमामों के नाम अली, हसन, हुसैन, अली जेनलाबदीन, मोहम्मद बाकर, जाफरसादिक और इस्माइल बताना।

चौथी श्रेणी – पहले यह सीखलाना कि, संसार के आरम्भ के बाद ईश्वरीय कायदों का प्रचार करने वाले परमेश्वर की ओर से सात पैगंबर बोलने वाले – लेक्चरर्स हुए। उन्होंने खुदा की आज्ञा से अपना मत फैलाया। इसके बाद यह सिखलाना कि उन सातों के साथ बिनाबोलने वाले भी सात थे, जो उन बोलनेवालों के आचार्य की भांति प्रतीत होते थे। पहले सातों को सूस कहते थे। इन सातों के नाम – आदम, नूह, इब्राहिम, मूसा, ईसा, महम्मद, और जाफर का लड़का इस्माईल है। बिना बोलनेवाले उनके सात मददगारों के नाम – सेथ, शेम, इब्राहिम का लड़का इस्माईल, आइरन, सीमियन अली और इस्माइल का लड़का मुहम्मद है।

पांचवीं श्रेणी – जिज्ञासु को खुली रीति से ईमान आ जाय, इसलिए प्रथम से ही ऐसा कहना कि, हर एक गूंगे पैगंबर के साथ 12 – 12 मददगार थे। दलील यह देना कि,सात के बाद बारह का ही अंक श्रेष्ठ है। क्योंकि राशियां बारह हैं और अंगूठे को छोड़कर चारों उंगलियों के पोर भी बारह ही हैं। बारह ईमामों के धर्म के सिद्धान्त सिखलाना।

छठी श्रेणी – इस श्रेणी में अपने नवीन धर्म के कायदे थोड़े सिखलाना और तत्वज्ञान के नियम अधिक पढ़ाना। इस दर्जे में प्लेटो, आरिस्टॉटल, पैथागोरस के सिद्धांतों का प्रमाण स्वीकार करना।

सातवीं श्रेणी – सातवीं श्रेणी में इस्माइली धर्म के गुप्त व सिद्धांतों के सीखने का अवसर देना और धर्म की वास्तविक आज्ञाओं को समझाना।

आठवीं श्रेणी – सभी पैगंबरों ने अपने से पूर्व पैगम्बरों की बात को काटकर नेस्तनाबूद कर दिया है, इसलिए इस श्रेणी में इस्माइली धर्म की इस कमजोरी को रफा करने के लिए स्वर्ग – नर्क का वर्णन करने जिज्ञासु के मन को भयभीत कर देना।

नवीं श्रेणी – इस श्रेणी में अपना पूरा अभीष्ट प्रकट रूप से सिखला लेना।

क्रमशः

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