क्या वेदों में मुहम्मद साहिब का वर्णन नराशंस के रूप में मिलता है?

#डॉ_विवेक_आर्य

आजकल इस्लामिक लेखकों में एक होड़ लगी है। वेदों के आधार पर मुहम्मद साहिब को वेदों में सिद्ध करने का प्रयास। ऐसा प्रयास अबू मुहम्मद इम्माउद्दीन ने श्री वेद दिग्दर्शन , मुहम्मद फारूकखां ने वेद और क़ुरान, डॉ वेद प्रकाश उपाध्याय ने कल्कि अवतार और मुहम्मद आदि पुस्तकों के माध्यम से किया हैं। इन पुस्तकों में वेदों के कुंताप सूक्त में आये नराशंस शब्द से मुहम्मद साहिब की तुलना की गई हैं। पाठकों को जानकर आश्चर्य होगा कि वेदों के अर्थों से यह खींचतान सबसे पहले अब्दुल हक विद्यार्थी (अहमदियाँ सम्प्रदाय) ने अपनी पुस्तक विश्व धर्मग्रंथों में मुहम्मद साहिब में की थी। चूँकि हक साहिब कादियानी थे। इसलिए उनका नाम लिए बिना अन्य फ़िरकापरस्त मुस्लिम लेखक अपने नाम से मक्खी पर मक्खी मार रहे हैं। इन लेखकों की भ्रान्ति का इस लेख के माध्यम से निवारण किया जायेगा।
सर्वप्रथम नराशंस शब्द पर विचार करते है। डॉ वेदप्रकाश उपाध्याय ऋग्वेद 2/3/2, 5/5/2 एवं अथर्ववेद 20/127/1 में नराशंस शब्द दिखलाकर उसका अर्थ लिखते है- “ऐसा मनुष्य जो प्रशंसित हो।” अथर्ववेद 20/127/2,3 के आधार पर आपने लिखा है- सवारी के रूप में ऊंट का प्रयोग करने वाला ,बारह पत्नियों वाला, सौ निष्कों (स्वर्ण मुद्राओं) से युक्त, दस मालाओं वाला (गले का हार), तीन सौ अर्वन से युक्त, दस हज़ार गौ से युक्त। इस प्रकार से उपाध्याय जी के अनुसार यह सिद्ध करते है कि नराशंस शब्द अरबी में मुहम्मद शब्द से अभिहित व्यक्ति के लिए प्रयुक्त हुआ है।
उपाध्याय जी ने अथर्ववेद नराशंस शब्द को लेकर जो खींचतान की हैं। यह उनकी अनभिज्ञता का स्पष्ट प्रमाण है। सर्वप्रथम तो उपाध्याय जी की कोरी कल्पना में दो बड़ी गलतियां हैं। वेद ईश्वरीय ज्ञान है जिनका आविर्भाव सृष्टि के आदि में हुआ था। वेद कोई बाइबिल या क़ुरान के समान कोई इतिहास पुस्तक नहीं हैं। इसलिए वेदों में मुहम्मद का वर्णन होना नितांत कल्पना है।
दूसरी वेदों में एक पत्नी से विवाह करने के अनेक प्रमाण हैं। बहुविवाह का स्पष्ट निषेध है। वेदों का कोई भी भद्रपुरुष बारह स्त्रियों को नहीं रख सकता है। वेदों में भी केवल एक पत्नी रखने का विधान है।
ऋग्वेद १०/८५ को विवाह सूक्त के नाम से जाना चाहता है। इस सूक्त के मंत्र ४२ में कहा गया है कि तुम दोनों इस संसार व गृहस्थ आश्रम में सुख पूर्वक निवास करो। तुम्हारा कभी परस्पर वियोग न हो। सदा प्रसन्नतापूर्वक अपने घर में रहो।
ऋग्वेद १०/८५/४७ मंत्र में हम दोनों (वर-वधु) सब विद्वानों के सम्मुख घोषणा करते हैं की हम दोनों के ह्रदय जल के समान शांत और परस्पर मिले हुए रहेंगे।
अथर्ववेद ७/३५/४ में पति पत्नी के मुख से कहलाया गया है कि तुम मुझे अपने ह्रदय में बैठा लो , हम दोनों का मन एक ही हो जाये।
अथर्ववेद ७/३८/४ पत्नी कहती है तुम केवल मेरे बनकर रहो। अन्य स्त्रियों का कभी कीर्तन व व्यर्थ प्रशंसा आदि भी न करो।
ऋग्वेद १०/१०१/११ में बहु विवाह की निंदा करते हुए वेद कहते हैं जिस प्रकार रथ का घोड़ा दोनों धुराओं के मध्य में दबा हुआ चलता है, वैसे ही एक समय में दो स्त्रियाँ करनेवाला पति दबा हुआ होता है। अर्थात परतंत्र हो जाता है। इसलिए एक समय दो व अधिक पत्नियाँ करना उचित नहीं हैं।
इसलिए 12 पत्नियों का होना वेदविरुद्ध कल्पना है।
तीसरे वेदों के सभी शब्द यौगिक होते हैं। नराशंस शब्द का प्रयोग निरुक्त 8/7 में हुआ हैं।
यजुर्वेद में स्वामी दयानन्द नराशंस का अर्थ करते है-
स्वामिन- यजुर्वेद 21/31, योग्य व्यवहार करने वाला-29/27, विद्वान जन-यजुर्वेद 27/13, ऐश्वर्या इच्छुक जीव-यजुर्वेद 28/19, विदुष जन-यजुर्वेद 21/55, विद्वत्जन-यजुर्वेद 20/37
ऋग्वेद में स्वामी दयानन्द नराशंस का अर्थ करते है-
अग्निम- ऋग्वेद 1/13/3, सभाध्यक्ष- ऋग्वेद 1/106/4, अन्नपानादिकस्य- ऋग्वेद 7/2/2, विद्वतजन- ऋग्वेद 1/142/3, मेधावी मनुष्य-ऋग्वेद 5/5/2, अग्नि- ऋग्वेद 3/29/11
पंडित क्षेमकरण जी अपने अथर्ववेद 20/127/1 में नराशंस का अर्थ मनुष्यों में प्रशंसा वाला पुरुष इस प्रकार से करते है। जबकि अथर्ववेद 20/127/2-3 में राजा ने उद्योगी पुरुष को सौ स्वर्ण मुद्रा, दस मालायें , तीन सौ घोड़े और दस सहस्त्र गौयें दान दी। ऐसा अर्थ किया है।
उपाध्याय जी की संस्कृत के प्रति अनभिज्ञता एवं जबरदस्ती खींचातानी का प्रमाण देखिये। आपने द्विदर्श का अर्थ बारह किया है जबकि इसका अर्थ 20 होता हैं। चूँकि मुहम्मद साहिब की 12 बीवियां थी। इसलिए उन्होंने ऐसा असत्य कथन जुगाड़ बैठाने के लिए किया होगा। वेद मंत्र में ऊंटनियों की चर्चा है जबकि उपाध्याय जी ने स्त्रियां अर्थ कर दिया है। जहाँ दस सहस्त्र गौओं के दान देने की चर्चा है। वहाँ मुहम्मद साहिब के सहयोगी अर्थ कर दिया है। कुल मिलाकर कुछ भी लिख दो। अनपढ़ गुलाम भेड़ों को तो आप ऐसे हाक लेंगे। मगर आर्यों का तो कार्य ही बुद्धिपूर्वक परीक्षा कर सत्य को ग्रहण करना है।
निष्कर्ष यह है कि नराशंसी उन मन्त्रों के नाम है जो यज्ञपरक है। नराशंस नाम यज्ञ का है। मनुष्य प्रशंसा परक मन्त्रों का अर्थ नराशंसी हैं।
अंततः अथर्ववेद के मन्त्रों के आधार पर वेदों में मुहम्मद साहिब का वर्णन एक कोरी कल्पना सिद्ध होता हैं।
सलंग्न चित्र- नराशंस और अंतिम ऋषि पुस्तक का मुखपृष्ठ लेखक डॉ वेदप्रकाश उपाध्याय।

Comment: