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संपादकीय

लड़ाई पूरे पाकिस्तान को लेने की है

पाकिस्तान इस्लाम की ‘दारूल इस्लाम और दारूल हरब’ की मूल सोच का परिणाम था जिसे जिन्नाह ने हवा दी और करोड़ों मुस्लिमों ने उसकी आवाज पर पाकिस्तान जाने का निर्णय ले लिया। यदि जिन्नाह पाकिस्तान का निर्माता और भारत का विभाजक नही था और मुसलमानों ने भारत में सदा इस देश की संस्कृति में, इतिहास में और धर्म में विश्वास रखा है तो फिर करोड़ों लोग भारत छोडक़र क्यों पाकिस्तान गये? उन्हें जिन्नाह को नकार देना चाहिए था। इन करोड़ों लोगों के लिए गांधी और नेहरू भी काफिर ही थे। उनका यहां से पलायन इस देश की संस्कृति से, धर्म से, इतिहास से, परंपराओं से और ज्ञान विज्ञान आदि से पलायन करने के समान था। वह सीधे-सीधे कह रहे थे कि हम इन्हें नही मानते और हमारा उद्देश्य है :-

हंसके लिया पाकिस्तान, लडक़र लेंगे हिंदुस्तान।

इसका अर्थ था कि जो हिंदुस्तान बचा है उसे भी लिया जाएगा। पाकिस्तान इस हिंदुस्तान को हड़पने के लिए तैयारी करने का एक अड्डा होगा। अंतिम लक्ष्य संपूर्ण भारतवर्ष पर इस्लामिक शासन स्थापित करना होगा। 1947 ई. से ही हम देख रहे हैं कि पाकिस्तान ने इसी दिशा में कार्य किया है और भारत को अस्थिर करने का हर संभव प्रयास किया है। पाकिस्तान में उस समय जो हिंदू रह रहे थे उनकी संख्या लगभग ढाई करोड़ थी जो आज घटकर 20-25 लाख रह गयी है। वहां से भारत के लिए पलायन करने वाले हिंदू परिवारों की संख्या पिछले दो साल से निरंतर बढ़ रही है। वह अपने यहां तो हिंदू को मिटाना चाहता है और दुनिया से हिंदुस्तान को मिटाना चाहता है।

संसार की पांच बड़ी शक्तियां (जोकि सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं) अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस के पास लगभग 23000 परमाणु बम अमेरिका की एक गुप्तचर संस्था के द्वारा बताये गये हैं। जबकि 375 परमाणु बम अन्य देशों के पास हैं। इनमें पाकिस्तान के पास 70 से 90 तथा भारत के पास 60 से 80 माने गये हैं। पाकिस्तान ने यह शक्ति भी चीन के सहयोग से प्राप्त की है।

यदि पाकिस्तानी लोग भारत को अपना पूर्वज मानते (जैसा कि हमने जर्मनी के विभाजन के काल में दोनों जर्मनियों के लोगों के भीतर देखा था) तो यह विभाजन भी समाप्त हो गया होता। परंतु भारत ने पाकिस्तान को अपना भाई माना जबकि पाकिस्तान ने भारत को सदा ही ‘शत्रु राष्ट्र’ की मान्यता दी है। इसका अर्थ है कि ‘लडक़र लेंगे हिंदुस्तान’ वाली बात आज भी उसके अंतर्मन में उतनी ही दृढ़ है जितनी कि विभाजन के समय थी। इसलिए पाकिस्तान का अस्तित्व भारत की सुरक्षा के दृष्टिगत सदा ही खतरनाक रहेगा।

भारत का विभाजन अतार्किक और अप्राकृतिक था। इसे समाप्त किया जाना चाहिए। किसी भी आधार पर किसी राष्ट्र की विरासत को आप ऐसे लोगों को नही दे सकते कि जिनका उस राष्ट्र की विरासत से कोई संबंध नही है। पाकिस्तान भारत की स्वतंत्रता अवैध संतान है। जिसका अस्तित्व और पितृत्व मूल भारत के साथ एकाकार होने में ही सुरक्षित है। उसके लोग अलग मजहब के नाम पर इस देश की विरासत को बांटने और इस देश के भूभाग पर अपना अधिकार करने के अधिकारी नही हो सकते। किंतु किसी भी स्थिति में इस देश के भूभाग को वह अलग देश की मान्यता नही दिला सकते। भारत के नेतृत्व को यह समझना चाहिए कि भारत को घेरने के लिए तथा तोडऩे के लिए पाकिस्तान की रणनीति क्या है? वह चीन की कठपुतली है। बांग्लादेश का भाई है और श्रीलंका का मित्र है। चारों ओर भारत के शत्रु हैं जो चोर-चोर मौसेरे भाई का खेल-खेल रहे हैं। उसमें पाकिस्तान की भूमिका अहम है। भारत में हुई सारी आतंकी घटनाओं में उसी का हाथ रहा है।

सन 1945 में जब यून.एन.ओ. की स्थापना हुई थी तो उसी समय यूरोप में कई राष्ट्र राज्यों का पुनर्गठन इस आधार पर किया गया था कि उन्हें उनके युद्घ से पूर्व के भूखण्डों को वापिस दिया गया कि जिन पर आबादी किसी अन्य देश की बसती थी पर उन्हें किसी कारण से दूसरे देश ने हथिया लिया था।ऐसे भूभागों पर आबादी किसी अन्य की होते हुए भी उन्हें अपने मूल देश का भाग माना गया। यही बात पाकिस्तान पर भी लागू होनी चाहिए।

हमारा भूभाग हमारा अपना है। लड़ाई कश्मीर की नही है, लड़ाई पूरे पाकिस्तान को लेने की है। क्योंकि ‘आसिंधु सिंधु पर्यन्ता…….’ वाले श्लोक को उद्घृत कर वीर सावरकर ने जिस हिंदुस्तान की बात कही है वह तभी सकार होगी जब सिंधु नदी और सिंधु प्रांत पुन: भारत के अंग बनेंगे। तभी हमारे इस महान नेता की वसीयत और विरासत के हम सच्चे उत्तराधिकारी भी कहे जा सकेंगे।

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