राजनीति का राष्ट्रवादीकरण करना ही उसका हिन्दूकरण करना है:शंकराचार्य

(साप्ताहिक साक्षात्कार)

जोधपुर। श्री आदि जगदगुरू शंकराचार्य महासंस्थान सुमेरूपीठ काशी के जगद्गुरू शंकराचार्य अनंत श्री विभूषित स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती जी महाराज भारतीय धर्म और संस्कृति के मर्मज्ञ शंकराचार्य हैं। वह हिन्दुत्व के निडर प्रस्तोता और एक सफल व्याख्याकार हैं। पिछले दिनों जोधपुर में 8 जून 2014 को अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री पदमराम जांगिड़ के यहां आयोजित DSCN4414एक कार्यक्रम में उनके साथ कुछ समय व्यतीत करने का अवसर मिला। पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं, उनके साथ ‘उगता भारत’ के मुख्य संपादक श्री राकेश कुमार आर्य की हुई बातचीत के कुछ अंश:-

‘उगता भारत’ : स्वामी जी, मोदी  अपनी जीत को ‘विकास’ की जीत कह रहे हैं, आपका क्या मत है?

स्वामी जी : मोदी जी का अपना राजनीतिक आंकलन हो सकता है, परंतु यह जीत किसी विकास के मॉडल की जीत नही है। यह विशुद्घ हिंदुत्व की जीत है। इस्लामिक तुष्टिकरण से देश का बहुसंख्यक समाज दुखी हो चुका था और वह रोज-रोज के साम्प्रदायिक दंगों से मुक्ति चाहता था, इसलिए उसने मोदी को चुना। अब हम सभी अपेक्षा करते हैं कि मोदी विकास से पहले लोगों को शांति पूर्ण परिवेश देंगे और कानून के समक्ष समानता की अनिवार्यता को लागू करेंगे।

‘उगता भारत’ : अभी तक मोदी कैसा कार्य कर रहे हैं?

स्वामी जी: अभी मोदी सरकार के विषय में कोई भी टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी। अभी शुभकामनाओं के आदान-प्रदान का समय है और हम भी अभी इस नयी सरकार को केवल शुभकामनाएं ही दे सकते हैं। परंतु इतना अवश्य कहना चाहता हूं कि जैसे मोदी ने मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात में मंदिर तोड़ हैं, उसे विकास के मॉडल के रूप में देश में लागू ना करें।

‘उगता भारत’ : आप हिंदू महासभा के मार्गदर्शक मण्डल के अध्यक्ष हैं, तो राजनीति का हिंदूकरण और हिंदूओं का सैनिकीकरण करने को आप कितना उचित मानते हैं?

स्वामी जी : देखिए आर्य जी! राजनीति का राष्ट्रवादीकरण करना राजनीति का हिंदूकरण करना है। राष्ट्रवादीकरण करने से अभिप्राय है कि किसी का तुष्टिकरण ना हो, न्याय सबके लिए हो। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समता सभी को बिना किसी द्वेष-भाव के उपलब्ध हो। राजनीति राग और द्वेष से मुक्त हो, यही वास्तविक पंथनिरपेक्षता है और यही राजनीति का हिंदूकरण है। हमारे वेदादि धर्मशास्त्र ही नही प्राचीन राजनीति शास्त्र की पुस्तकें भी इसी सोच पर आधारित रही हैं। इसलिए हम राजनीति के हिंदूकरण को अनिवार्य मानते हैं।

‘उगता भारत’ : और हिंदुओं के सैनिकीकरण को?

स्वामी जी : हां वह भी आवश्यक है। अपने राजनीतिक मूल्यों को और सामाजिक परंपराओं को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए प्रत्येक हिंदू को अपनी संस्कृति के प्रति वही प्रहरी भाव उत्पन्न करना होगा जो एक सैनिक अपने देश की सीमाओं के प्रति रखता है। ऐसी उत्कृष्टभावना के आते ही हिंदुओं का सैनिकीकरण हेा जाएगा।

‘उगता भारत’ : स्वामी जी, क्या ऐसी भावना में कोई उग्रता नही है?

स्वामी जी: जी, बिल्कुल नही। संपूर्ण वसुधा को ईसाइयत और इस्लाम ने अपने डंडे से हांकने का सैकड़ों वर्ष  तक कार्य किया है और आज भी कर रहे हैं। जबकि प्राणिमात्र के शांति पूर्ण कल्याण का मार्ग उनके पास है ही नही, तब हिंदुत्व के मानवीय मूल्यों का बढ़-चढक़र प्रचार करने या उनकी सुरक्षा के प्रति स्वयं को समर्पित करने में कौन सी उग्रता है। एक पड़ोसी दुकानदार अपने माल को बेचने की आवाज लगा सकता है, तो आप क्यों नही लगा सकते? लगाइए,  पर सामान ऐसा हो जो सबके लिए उपयोगी हो।…और वह हिंदुत्व के रूप में आपके पास है, तो उसे अपनाते क्यों नही हो?

‘उगता भारत’ : स्वामी जी! अहिंसा और राजधर्म क्या साथ-साथ चलने वाली विचारधाराएं हैं, या दोनों अलग अलग है?

स्वामी जी: आपका प्रश्न बड़ा उचित है। आजकल अहिंसा को राजधर्म की अनिवार्यता बना दिया गया है। ऐसा संकेत दिया जाता है कि जैसे दुष्टसे दुष्टव्यक्ति के विरूद्घ ही राजनीति को अस्त्र प्रयोग से परहेज करना चाहिए। राष्ट्रहित में यह सोच गलत है। दुष्टों का संहार और सज्जनों का उद्घार करना राजनीति का धर्म है। इसलिए दुष्टों के संहार के लिए राजनीति को कभी भी पीछे नही हटना चाहिए। भगवान राम ने सवा लाख देशद्रोहियों का संहार किया था। भगवान कृष्ण ने तो दुष्टों के संहार के लिए पुन: पुन: जन्म लेने की इच्छा प्रकट की है। इसलिए जो व्यक्ति देश और समाज की मुख्यधारा को दुर्गन्धित और प्रदूषित करते हों, उनका संहार करने में कोई हिंसा नही होती है। ऐसी हिंसा भी अहिंसा ही कही जाती है। आज भी इसी सोच के साथ कार्य करने की आवश्यकता है।

उगता भारत’ : धर्म और राजनीति का क्या संबंध मानते हैं आप?

स्वामी जी : धर्म और राजनीति दोनों ही अन्योन्याश्रित हंै। ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। राजनीति यदि देह है तो धर्म उसकी आत्मा है। हमें चाहिए कि हम अपने देश का कोई धर्म (कत्र्तव्य पथ) निश्चित करें। दुनिया के कुल 214 देशों का अपना-अपना कोई धर्म है, आदर्श है, नीति, न्याय-पथ है, आदर्श जीवन प्रणाली है, तो भारत में ऐसा क्यों नही किया गया? यह दुखपूर्ण तथ्य है कि बीते 67 वर्षों में देश की कोई भाषा और कोई एक धर्म निर्धारित नही किये गये। जिससे देश में राष्ट्रवाद की सोच को विकसित करने में सहायता मिलती।

‘उगता भारत’ : आपका देश के क्रांतिकारी आंदोलन के विषय में क्या मानना है?

स्वामी जी : देश में जब स्वाधीनता संघर्ष चल रहा था, तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे महान क्रांतिकारियों ने आजाद हिंद फौज के माध्यम से सशस्त्र सैनिक क्रांति के मार्ग को अपनाकर देश को आजाद कराने की रणनीति पर काम किया। जिससे देश की सेना में भी क्रांति की सिहरन पैदा हुई और अंग्रेजों ने भी इस सिहरन को बड़ी शिद्दत से अनुभव किया। अंग्रेजों ने बाद में स्वीकार किया कि वह गांधीवादी आंदोलन के कारण नही बल्कि सुभाष के सशक्त सशस्त्र आंदोलन से विचलित होकर भारत छोडऩे पर विवश हुए थे। आज हमें अपनी देश की सेना का नाम ही ‘जयहिंद सेना’ रखना चाहिए। अपने क्रांतिकारियों को हम सम्मान दें।

‘उगता भारत’ : स्वामी जी राम मंदिर निर्माण पर आप क्या कहना चाहेंगे?

स्वामी जी : राम मंदिर निर्माण के विषय में हम माननीय सर्वोच्च न्यायालय से शीघ्र निर्णय करने की मांग करते हैं। वैसे राममंदिर निर्माण संबंधी एक प्रस्ताव देश की संसद में आना चाहिए। जिसे सभी राजनीतिक दल पास कराने में सहयोग दें, ताकि देश में एक सकारात्मक माहौल बनाने में सहायता मिल सके। इससे समस्या का और भी शीघ्र समाधान हो सकता है। अब यह कहना निरर्थक है कि रामजन्मभूमि को लेकर केाई विवाद है। बहुत से प्रमाणों और  साक्ष्यों से स्पष्टहो चुका है कि ये रामजन्मभूमि है, इसलिए प्रमाणों और साक्ष्यों का मूल्य हमारी संसद को भी समझना चाहिए। ढुलमुल नीतियों को अपनाकर कोई भी सरकार अपने देश और समाज का भला नही कर सकती। स्पष्टनीतियां ही देश और समाज में शांति स्थापित कराती हैं। इसलिए केन्द्र सरकार सहित राज्य सरकार को भी ढुलमुल नीति का परित्याग कर स्पष्टनीति का अनुकरण करना चाहिए।

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